(राम कथा का चौथा दिन:)
आंखें मन का दर्पण: साध्वी ऋतम्भरा
पारम्परिक संगीत के साथ हुआ श्रीराम विवाह
उदय राज
डी डी इंडिया न्यूज
लखनऊ।
मंगलवार को सीतापुर रोड स्थित रेवथी लान में भारत लोक शिक्षा परिषद के तत्वावधान में चल रही राम कथा के चौथे दिन साध्वी ऋतम्भरा ने दशरथ पुत्रों के नामकरण, गुरुकुल जाने, ताड़का वध, जनकपुर यात्रा व श्रीरामविवाह का प्रसंग सुनाया। कथा आरम्भ होने के पूर्व मुख्य यजमान डा. नीरज बोरा ने सपत्नीक व्यास पूजा की।
पारम्परिक लोक संगीत के बीच राम विवाह की झांकी पर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो नाचने लगे।
साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि जब भाव प्रबल होता है तो शब्द छोटे पड़ जाते हैं। आनन्द अनिर्वचनीय है। शब्द ब्रह्म भी न्याय नहीं कर पाते।
इसी प्रकार चित्त की दशा आंखों से पता चलती है। आंखें मन का दर्पण होती हैं और उसमें वात्सल्य, करुणा, प्रेम, वासना, निमंत्रण, उपेक्षा आदि स्पष्ट दिखते हैं। वाणी तोड़ देती है तो आंखों का पानी उसे जोड़ देता है। रामचरित मानस को अद्वितीय ग्रन्थ बताते हुए साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि इसमें जो भाव हैं उसका बखान कहां तक किया जाय।
आचरण की शुद्धता सिखाने वाला यह अद्भुत ग्रन्थ है। हम चाहतें हैं कि हजार मुख हो जायें तो मैं उनसे इसका बखान करुं। रोम रोम आंख बन जायें तो उससे धर्म का दर्शन करुं। यहां राम प्रातः काल उठकर माता पिता और गुरु को प्रणाम करते हैं। आशीर्वाद की फसल प्रणाम की भूमि पर ही उगती है। उन्होंने नई पीढ़ी से माता पिता का सम्मान करने की नसीहत देते हुए कहा कि माता पिता चिन्मय सत्ता हैं।
मृणमय ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करने से बेहतर है कि गजानन की भांति उनके पास रहो। अपनी कमाई लेकर बेडरुम में घुसने की बजाय उसे माता पिता को दो। माता पिता वह धन अपने पास नहीं रखेंगे, तुम्हें वापस करेंगे। जब यह धन खर्च करोगे तो इसमें माता-पिता का आशीर्वाद जुड़ा मिलेगा।
यही सनातन का सुमंगल भाव है जिसे रामधारी सिंह दिनकर ने रामत्व धारण कर जियें कविता में व्यक्त किया है।
साध्वी ने लोगों से अपने भीतर झांकने का उपदेश देते हुए कहा कि दोष को एक दूसरे में देखेंगे तो क्लेश होगा किन्तु यदि दोष अपने में देखें तो शान्ति रहेगी। साध्वी ने गुरुकुल प्रणाली की प्रशंसा करते हुए कहा कि हमारे ऋषि मनुर्भव का आशीष देते हैं।
शिक्षा उदरपूर्ति का माध्यम न बनकर संस्कार और संस्कृति की पोषक होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राम और कृष्णावतार मे भगवान ताड़का और पूतना नामक अविद्या का वध करते हैं।
साध्वी ऋतम्भरा ने अहिल्या उद्धार प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि पापी इन्द्र थे किन्तु शापित अहिल्या हुई। अहिल्या ने अपमान झेलते हुए प्रतीक्षा की तो प्रभु ने उसका उद्धार कर दिया। उन्होंने उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आन्दोलन के दौरान रामपुर चौराहे पर पुलिस द्वारा महिला आन्दोलनकारियों के साथ की गई बर्बरता की याद दिलाई।
तत्कालीन सरकार ने बलात्कार पीड़िताओं को मुआवजा दिया जिसके चलते अपमानित स्त्रियों ने आत्महत्याएं कीं थीं। उन्होंने कहा कि दण्ड बलात्कारी को मिलना चाहिए न कि पीड़िता को। उन्होंने लव जिहाद को भी आड़े हाथ लिया। महिलाओं से आह्वान किया कि भारत को परम वैभव तक ले जाने के लिए अपने घर से एक सदस्य को राष्ट्र निर्माण के कार्य में भेजें।
साध्वी ने कहा कि सन्तों के पास होश है और तरुणाई के पास जोश। होश और जोश का मिलन हो तभी कल्याण होगा।
साध्वी ने कहा कि नाम की बड़ी महिमा है। इसका प्रभाव पड़ता है। कलियुग में केवल राम का नाम का नाम ही आधार है। उन्होंने कहा कि राम का जन्म दिन में हुआ, सारे अयोध्या में आनन्द की वर्षा हो रही है। दूर किसी को बिलखता देख प्रभु का भाव संवाद होता है। पता चला कि वहां रात्रि कह रही है कि सूर्य ने अपना रथ रोक लिया है तो मैं कैसे आपका दर्शन करुं। भगवान कहते हैं कि द्वापर में मैं रात में जन्म लूंगा तब दर्शन करना। चन्द्रमा द्वारा भी यही शिकायत करने पर प्रभु कहते हैंे कि मैं आपको अपने नाम का आश्रय देते हूं। तबसे भगवान सूर्यवंशी होते हुए भी रामचन्द्र कहलाते हैं। नाम का आश्रय जब मिल गया तो भगवान शिव भी उन्हें अपने मस्तक पर धारण करते हैं।
साध्वी ने कहा कि उनके गुरुदेव धर्म के प्रचार हेतु ऋतम्भरा नाम से एक मासिक पत्रिका निकालना चाहते थे। उन्हीं दिनों मैंने सन्यास की दीक्षा ली तो गुरुदेव ने मुझे यह नाम दे दिया और मैं आज धर्म प्रचार का काम कर रही हूं।
कथा के दौरान श्रीराम विवाह की मनोरम झांकी का लोगों ने दर्शन किया। इस बीच पारम्परिक लोक संगीत पर भक्त भाव विभोर होकर नाचने लगे। भजनों की सुर लहरी पर श्रद्धालु सखियों समेत बिन्दु बोरा ने डाण्डिया भी खेला। अमित मौर्या के नेतृत्व में पार्षदों ने कथा स्थल पर सुन्दर काण्ड वितरित किये। चौथे दिन की कथा में भी अनेक जनप्रतिनिधि व गणमान्य विभूतियां सम्मिलित हुईं। प्रमुख रूप से नन्दकिशोर अग्रवाल, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, सुमेर अग्रवाल, सुरेश कुमार अग्रवाल, राकेश गुप्ता, प्रदीप अग्रवाल, रवीश कुमार अग्रवाल, गिरिजाशंकर अग्रवाल, उमाशंकर हलवासिया, आशीष अग्रवाल, भूपेन्द्र कुमार अग्रवाल ‘भीम’, राजीव अग्रवाल, पंकज बोरा, भारत भूषण गुप्ता, मनोज अग्रवाल, डा. एस.के. गोपाल, अनुराग साहू आदि उपस्थित रहे।