हरिंद्र सिंह/डीडी इंडिया न्यूज
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को सूचित किया कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने COVID-19 से मरने वालों के संबंध में मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए एक समान दिशानिर्देश तैयार कर लिए हैं।
इससे पहले 3 सितंबर को SC ने दिशानिर्देश तैयार करने में देरी को लेकर केंद्र सरकार की खिंचाई की थी और उसे एक और मौका दिया था.
क्या हैं दिशा निर्देश ?
11 सितंबर को केंद्र सरकार द्वारा दायर एक हलफनामे के हवाले से ‘लाइव लॉ’ ने रिपोर्ट प्रकाशित की कि सरकार की तरफ से कोविड-19 विशेष मृत्यु प्रमाण पत्र तभी जारी किया जाएगा जब मृत व्यक्ति निम्न तरीकों से COVID-19 पॉजिटिव पाया गया हो.
आरटी-पीसीआर टेस्ट या रैपिड-एंटीजन टेस्ट
मोलेक्यूलर टेस्ट
अस्पतालों में जांच के माध्यम से चिकित्सकीय रूप से निर्धारित हो
इलाज करने वाले चिकित्सक के इन-पेसेंट फैसिलिटी में
हालांकि अगर किसी मरीज की मौत जहर, आत्महत्या, हत्या और दुर्घटना से हुई हो ,भले ही वह COVID-19 पॉजिटिव भी हो, तो इसे आधिकारिक तौर पर COVID-19 वायरस से मौत नहीं माना जाएगा.
इसके अतिरिक्त दिशानिर्देश के मुताबिक ऐसे मामलों में जहां रोगी की मौत या तो अस्पताल में या घर पर हुई हो और जहां फॉर्म 4 और 4 ए में ‘मृत्यु के कारण का मेडिकल सर्टिफिकेट’ जारी किया गया हो (जैसा कि जन्म और मृत्यु पंजीकरण (आरबीडी) अधिनियम, 1969 की धारा 10 के मुताबिक आवश्यक है) – उस केस को COVID-19 से मौत माना जाएगा.
दिशानिर्देशों के अनुसार कोविड पॉजिटिव टेस्ट किये जाने या “कोविड -19 मामले के रूप में चिकित्सकीय रूप से निर्धारित होने की तारीख से 30 दिनों के भीतर होने वाली मौतों को ‘COVID -19 के कारण होने वाली मौतों’ के रूप में माना जाएगा, चाहे मौत अस्पताल/इन-पेशेंट सुविधा के बाहर हुई हो”
ऐसे मामलों में जहां मृत्यु के कारण का मेडिकल सर्टिफिकेट उपलब्ध नहीं है या जहां मृतक के परिजन सर्टिफिकेट में मृत्यु के कारण से संतुष्ट नहीं हैं, उस केस में मामले को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश द्वारा गठित जिला स्तरीय समिति के सामने उठाया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी याचिका
एडवोकेट गौरव कुमार बंसल और दीपक कंसल ने कोविड-19 के कारण मरने वालों के परिजनों को 4 लाख रुपये की अनुग्रह राशि प्रदान करने और डेथ सर्टिफिकेट के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. उन्होंने इसमें आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 12 के सबंध में गृह मंत्रालय के पत्र का हवाला दिया था।