चार माह पहले उच्च शिक्षा मंत्री ने रज्जू भैया के जन्म शताब्दी वर्ष में ग्रामीण विज्ञान अनुसंधान केन्द्र की स्थापना की घोषणा की थी
दैनिक इंडिया न्यूज ऐश्वर्य उपाध्याय :
राजेन्द्र सिंह “रज्जू भइया” के शताब्दी वर्ष की स्मृति में 29 जनवरी को लखनऊ विश्वविद्यालय में ग्रामीण विज्ञान अनुसंधान केन्द्र की स्थापना के लिये उच्चतर शिक्षा मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय ने ऐलान किया था । इस समारोह के मुख्य अतिथि रहे उच्चतर शिक्षा मंत्री योगेन्द्र उपाध्या ने यह घोषणा भी कर दी थी कि लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भईया) ग्रामीण विज्ञान अनुसंधान केंद्र की स्थापना में एक “चेयर” भी स्थापित की जाएगी। जिसके बाद ग्रामीण विज्ञान अनुसंधान केंद्र प्रो. राजेंद्र सिंह (रज्जू भईया) का नामकरण करने के लिए एक “चेयर” स्थापित किये जाने का प्रस्ताव विश्वविद्यालय को प्रेषित किया गया।
विदित हो कि इसकी घोषणा 29 जनवरी को लखनऊ विश्वविद्यालय में आयोजित जन्म शताब्दी कार्यक्रम के दौरान माननीय उच्चतर शिक्षा मंत्री योगेन्द्र उपाध्याय ने की थी।
जे.पी.सिंह ने बताया कि रज्जू भैया के आदर्श युवा पीढ़ी को प्रखर बना सकते हैं। इतिहास की पढ़ाई करने वाले कुछ लोग और उस इतिहास की घटनाओं पर आधारित चलने वाले कुछ लोग, लेकिन कुछ लोगों का व्यक्तित्व ही इतिहास बन जाता है। ऐसे तीसरी श्रेणी के लोगों में रज्जू भैया भी शामिल हैं, उनका व्यक्तित्व ही इतिहास बन गया है।
हर व्यक्ति आदर्श की बात कर सकता है, लेकिन आदर्शों पर आचरण करना और लोगों को प्रेरित करना उन्होंने किया है। हम उनके जीवन चरित्र से सीखकर जीवन कौशल प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने पद और प्रतिष्ठा से ऊपर राष्ट्र को सर्वोपरी माना।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में रखते थे दृढ़ विश्वाश
राज्यपाल के विशेष कार्याधिकारी व शिक्षाविद पंकज जानी ने इस अवसर पर रज्जू भैया को एक सच्चा राष्ट्रभक्त बताते हुए बताया कि रज्जू भैया का पूरा जीवन देश के प्रति समर्पित रहा। उन्होंने तन, मन और धन सभी को देश की सेवा में लगा दिया है। हमें उनके व्यक्तित्व के अनुसरण करके मानसिक दबाव के बजाय अपनी प्रतिभा को पहचानने की आवश्यकता है और आगे बढ़ने का संकल्प लेना चाहिए।
कार्यक्रम में पंकज जानी ने आगे कहा कि रज्जू भैया, जो एक राष्ट्रवादी संत, तपस्वी और महान विचारक के रूप में मशहूर हुए, स्वदेशी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के धारणाओं में दृढ़ विश्वास रखते थे। वे सन् 1995 में ही कह चुके थे कि गांव को भूखमुक्त, रोगमुक्त और शिक्षाप्रद बनाने में सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उनके ग्रामीण कार्यक्रमों का आज लोगों द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में अनुसरण किया जा रहा है।
पंकज जानी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि स्वर्गीय राजेन्द्र सिंह “रज्जू भइया” एक विशाल व्यक्तित्व थे और उनके प्रासंगिक दर्शनों के साथ सामाजिक अनुसंधान के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जनसाधारण तक विषय को पहुंचाने और उनके विचारों के प्रचार-प्रसार अभियान को चलाकर जागरूकता पैदा करने में भी बहुत महत्व दिया जाना होगा।
गौष्ठी में जे.पी सिंह अध्यक्ष राजेन्द्र सिंह (रज्जू भइया) ग्रामीण विज्ञान अनुसंधान केन्द्र व पंकज जानी ने विस्तृत समग्र विमर्श किया
आइये जाने कौन थे प्रोफसर राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या)
पिता की सादगी, मितव्ययता का विशेष प्रभाव पड़ा
प्रोफेसर राजेंद्र सिंह का जन्म बुलंदशहर जिले के बनैल गाँव में 29 जनवरी 1922 को हुआ था। उनके माता-पिता श्रीमती ज्वालादेवी (उपाख्य अनंदा) और कुंवर बलवीरसिंह थे। पिताजी उत्तरप्रदेश के प्रथम भारतीय मुख्य अभियंता के पद पर थे जब भारत स्वतंत्र हुआ। उन्हें शालीन, तेजस्वी और ईमानदार अधिकारी के रूप में जाना जाता था और उनकी प्रशंसा होती थी। पिताजी की सादगी, मितव्ययता और जीवन मूल्यों के प्रति सजगता का राजेंद्र सिंह पर भी विशेष प्रभाव पड़ा।
एंग्लोइंडियन से अपना बदला भी पूरा किया
राजेन्द्र सिंह की शुरुआती पढ़ाई और लिखाई बुलंदशहर, नैनीताल, उन्नाव और दिल्ली में हुई थी। इसके बाद उन्होंने प्रयाग से बी.एस.सी. और एम.एस.सी. परीक्षा में पास होकर उत्तीर्ण की। एक दिन कॉलेज में, एक अंग्रेज़ी शिक्षक (एंग्लोइंडियन) के साथ एक वाद-विवाद हुआ जहां उस अंग्रेज़ी शिक्षक ने महात्मा गांधी को गलत ठहराया था, जबकि राजेन्द्र सिंह ने उन्हें सही बताया था। उस पर वाद-विवाद के बाद, अंग्रेज़ी शिक्षक ने उन्हें दो थप्पड़ मार दिए। राजेन्द्र सिंह ने बदले की सोची और उसके बाद से रोज़ व्यायाम शुरू किया। वे हर दिन दो घंटे व्यायाम करते थे। फिर एक दिन, जब वापस उस अंग्रेज़ी शिक्षक के साथ वाद-विवाद हुआ, तो राजेन्द्र सिंह ने उसे एक मजबूत थप्पड़ मारा और उसका बदला पूरी तरह से लिया।
शुरुवात से ही समाज कार्य के प्रति रुझान रहा
नोबेल पुरस्कार विजेता डा. सी.वी.रमन इनकी
प्रतिभा से हतप्रभ थे।
राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) का संघ से संबंध तो 1942 के बाद बना है, लेकिन उनका समाजसेवा के प्रति रुझान पहले से ही था। जब उन्होंने बी.एस.सी. के अंतिम वर्ष में थे, तब उनके परिवार ने 20 वर्ष की आयु में ही उनकी शादी का निर्णय ले लिया। दुल्हन के पिता सेना में एक डॉक्टर थे। उस समय उनकी एम-एस.सी. की प्रयोगात्मक परीक्षा आयोजित की जा रही थी और इस आयोजन के दौरान नोबेल पुरस्कार विजेता डा. सी.वी.रमन उनके पास आए थे। वे उनकी प्रतिभा से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपने साथ बैंगलोर शोध करने का प्रस्ताव दिया। लेकिन रज्जू भैय्या का जीवन लक्ष्य कुछ और ही था।
संघ से जुड़ने के बाद विवाह नही करने की ठानी
राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) का संघ से संपर्क प्रयाग में हुआ और उन्होंने नियमित रूप से शाखा में जाना शुरू कर दिया। संघ के आध्यात्मिक नेता श्री गुरुजी से उन्हें बहुत प्रभावित हुआ। 1943 में रज्जू भैय्या ने काशी से प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वहाँ उन्हें श्री गुरुजी के ‘शिवाजी का पत्र, जयसिंह के नाम’ विषय पर बौद्धिक प्रेरणा मिली, जिससे उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य के लिए समर्पित कर दिया। अब उनका सभी समय अध्यापन कार्य के अतिरिक्त संघ कार्य में लगने लगा। उन्होंने अपने परिवार को बता दिया कि उन्हें विवाह के बंधन में बंधने की इच्छा नहीं है।
सादा जीवन और उच्च विचारों के थे पक्षधर, निर्धन छात्रों की करते मदद
प्राध्यापक होते हुए राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) ने अब पूरे उत्तर प्रदेश में संघ कार्य के लिए प्रवास करना शुरू किया। उन्होंने अपनी कक्षाओं के सम्पर्क में ऐसी सुविधा पेश की, जिससे छात्रों को कोई हानि न हो और वे सप्ताह में दो-तीन दिनों के लिए प्रवास कर सकें। उनकी पढ़ाने की रोचक शैली के कारण छात्र उनकी कक्षाओं में उत्सुक रहते थे। रज्जू भैया सादा जीवन और उच्च विचारों के पक्षधर थे। वे हमेशा तृतीय श्रेणी में ही प्रवास करते थे और अपने प्रवास के खर्च को अपनी जेब से चुकाते थे। इसके बावजूद, जो पैसा बचता था, वे निश्चित रूप से निर्धन छात्रों के शुल्क और पुस्तकों की खरीदारी में खर्च कर देते थे।
1994 में संघ के तीसरे सरसंघचालक बालासाहेब देवरस ने राजेन्द्र सिंह को संघचालक पद पर अभिषेक कर दिया। यह संघ में पहली घटना थी। उनकी प्रसिद्धि और विनम्र व्यवहार के कारण लोग उन्हें प्यार से “रज्जू भैया” कहते थे। उनके संबंध विभिन्न राजनीतिक दलों और विभिन्न विचारधारा के राजनेताओं और लोगों से थे। सभी संप्रदाय के आचार्यों और संतों के प्रति उनके मन में गहरी श्रद्धा थी। इसके कारण सभी वर्ग के लोगों का स्नेह और आशीर्वाद उन्हें प्राप्त था। देश-विदेश के वैज्ञानिकों, खासकर सर सी.वी. रमण जैसे महान वैज्ञानिक के साथ रज्जू भैया का गहरा रिश्ता था।
राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) ने संघ के साथ 60 साल तक जुड़े रहकर विभिन्न प्रकार के कार्यों का संचालन किया। 1943 से 1966 तक, जब वे प्रयाग विश्वविद्यालय में अध्यापन कर रहे थे, उन्होंने अपने प्रचारक के कार्यों का निर्वाह करने के लिए यात्रा की। प्रथम वर्ष का प्रशिक्षण उन्होंने 1943 में पूरा किया। उस समय, उनका नगर कार्यवाह भी संभाल रहा था। द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण उन्होंने 1954 में पूरा किया, और इस दौरान भाऊराव ने उन्हें प्रदेश के लिए यात्रा की तैयारी करने के लिए पूरा दायित्व सौंप दिया था। तृतीय वर्ष का प्रशिक्षण उन्होंने 1957 में पूरा किया और उत्तर प्रदेश के दायित्वों का निर्वाह करने लगे।
राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) की संघ यात्रा
रज्जू भैया की संघ यात्रा विशेष है। उन्होंने अपने युवावस्था में नहीं, बल्कि युवावस्था में ही तेजस्वी और पूर्णता से विकसित मेधा शक्ति के साथ प्रयाग आने का निर्णय लिया। १९४२ में उन्होंने एमएससी के प्रथम वर्ष में संघ के प्रति आकर्षित होकर केवल एक-ढाई वर्ष के संपर्क में एमएससी पास करने के साथ ही प्रयाग विश्वविद्यालय में व्याख्याता पद प्राप्त किया और प्रयाग के नगर कायर्वाह के दायित्व में आगे बढ़े। १९४६ में वे प्रयाग विभाग के कार्यवाह बने, १९४८ में जेल यात्रा की, १९४९ में दो तीन विभागों को मिलाकर संभाग कार्यवाह बने, १९५२ में प्रान्त कार्यवाह बने, और १९५४ में भाऊराव देवरस के प्रान्त छोड़ने के बाद उन्होंने पूरे प्रान्त के दायित्व का संभालना शुरू किया।
१९६१ में भाऊराव के वापस आने के बाद, उन्हें प्रान्त-प्रचारक के दायित्व को फिर से सौंपकर सह-प्रान्त प्रचारक के रूप में उनके सहयोगी बनाया गया। जब भाऊराव के कार्यक्षेत्र का विस्तार हुआ, तो १९६२ से १९६५ तक उन्होंने उत्तर प्रदेश के प्रान्त प्रचारक के पद का निर्वाह किया, फिर १९६६ से १९७४ तक सह-क्षेत्र-प्रचारक और क्षेत्र-प्रचारक के रूप में दायित्व निभाया। १९७५ से १९७७ तक उन्होंने आपातकाल में भूमिगत रहकर लोकतंत्र की वापसी के आन्दोलन को आरंभ किया। १९७७ में सह-सरकार्यवाह बनने के बाद, १९७८ मार्च में माधवराव मुले के सर-कार्यवाह के दायित्व को भी उन्हें ही सौंपा गया। १९७८ से १९८७ तक इस दायित्व का निर्वाह करने के बाद, १९८७ में वे० शेषाद्रि को इस दायित्व को सौंपकर सह-सरकार्यवाह के रूप में उनके सहयोगी बने।
राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैय्या) को बहुत दुख होता था कि देश में क्रांतिकारी ‘बिस्मिल’ के नाम पर कोई भव्य स्मारक नहीं बना सके। उन्हें दिल्ली में तुर्की के राष्ट्रीय स्मारक जैसा स्मारक बनता हुए देखने की प्रबल इच्छा थी। उन्होंने कहा था: “हार्दिक भाषण देकर अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाना एक बात है, लेकिन नेपथ्य में रहकर दूसरों के लिए कुछ करना कुछ और ही बात है।” वे एक चिंतक, मनीषी थे, समाज सुधारक, कुशल संगठनकर्ता और एक सरल और सुलभ महापुरुष थे। ऐसे व्यक्ति को बहुत दैर्घकालिक अवधि में ही कुछ ही बार जन्मा जाता है।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से रहा गहरा जुड़ाव
जे.पी.सिंह, अध्यक्ष ,श्री राजेन्द्र सिंह(रज्जू भइया) स्म्रति संस्थान उत्तर प्रदेश ने बताया कि रज्जू भैया ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से M.Sc. और पीएचडी की पढ़ाई पूरी की है। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और भौतिक विभाग के प्रमुख के रूप में बेहतरीन काम किया। वह परमाणु भौतिकी के विशेषज्ञ भी रहे और इस विषय में लोकप्रिय शिक्षक के रूप में सरल और स्पष्ट अवधारणाओं का उपयोग करते रहे।