दैनिक इंडिया न्यूज लखनऊ
श्री जे पी सिंह अध्यक्ष संस्कृतभारती न्यासअवधप्रान्त ने महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर उनको श्रद्धा पूर्वक स्मरण करते हुए नमन वंदन कर कहा कि
असत्य से सत्य की मार्ग पर चलकर महाज्ञानी बनने वाले महाऋषि वाल्मीकि का जीवन प्रेरणादायक है। जो क्रूरता से दया, सबलता दृढ़ता की ओर जाने वाला है। महृर्षि वाल्मिकि ने संस्कृत में महाकाव्य रामायण की रचना के साथ श्रीराम के संपूर्ण जीवन को चरितार्थ किया और लव-कुछ के संरक्षक गुरु भी रहे।महर्षि वाल्मीकि का जन्म आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। महर्षि वाल्मीकि के जन्म पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के पुत्न के रुप में माना जाता है। भृगु ऋषि इनके बड़े भाई थे।
धार्मिक कथाओं के अनुसार एक पक्षी के वध पर जो श्लोक महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था वह परमपिता ब्रह्मा जी की प्रेरणा से निकला था और यह बात स्वयं ब्रह्मा जी ने उन्हें बताई थी, उसी के बाद ही उन्होने रामायण की रचना की थी। माना जाता है कि रामायण वैदिक जगत का सर्वप्रथम काव्य था। रामायण की रचना कर महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा को देववाणी का स्थान प्रदान किया। संस्कृतभारती न्यासअवधप्रान्त ने उनके प्रति समर्पण भाव से अवधसम्पदा का विशेषांक विगत वर्ष प्रकाशित किया,जिसका विमोचन आदरणीया महामहिम आनंदीबेन पटेल जी के करकमलों द्वारा राजभवन परिसर मे किया गया।