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नवरात्र में हवन करने से माँ दुर्गा की कृपा मिलती है जो प्रकाशपुंज की तरह हमारे जीवन पर आशीर्वाद बन कर आती है। हवन से हम शांति और समृद्धि का आभास करते हैं। यह हमारे मन को शुद्ध और स्वस्थ रखता है। इससे हमारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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नवरात्र में घर पर कैसे करें हवन?
संस्कृत भारती न्यास अवध प्रान्त के अध्यक्ष जेपी सिंह बताते हैं पुराणों के अनुसार हवन अथवा यज्ञ भारतीय परंपरा अथवा सनातन धर्म में शुद्धिकरण का एक कर्मकांड है जो पूर्णतया वैज्ञानिक है। हवन कुंड में अग्नि के माध्यम से देवता के निकट हवि पहुंचाने की प्रक्रिया को ‘यज्ञ’ कहते हैं। हवि, हव्य अथवा हविष्य वे पदार्थ हैं जिनकी अग्नि में आहुति दी जाती है (जो प्रज्वलित अग्नि में डाले जाते हैं।)
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हवन कुंड का अर्थ है हवन की अग्नि का निवास स्थान। हवन कुंड में अग्नि प्रज्वलित करने के पश्चात इस पवित्र अग्नि में फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की आहुति प्रमुख होती है।
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ऐसा माना जाता है कि यदि आपके आसपास किसी बुरी आत्मा इत्यादि का प्रभाव है तो हवन प्रक्रिया इससे आपको मुक्ति दिलाती है। शुभकामना, स्वास्थ्य एवं समृद्धि इत्यादि के लिए भी हवन किया जाता है।
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नवरात्र के पावन पर्व पर अष्टमी-नवमी तिथि को हवन करने का विशेष महत्व है अत: अगर आप घर पर ही सरल रीति से हवन करना चाहते है तो आपको परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। हम आपके लिए लेकर आए हैं आसान तरीके हवन करने की विधि। इस सरल हवन विधि द्वारा आप अपने पूरे परिवार के साथ यज्ञ-हवन करके नवरात्र पूजन को पूर्णता प्रदान कर सकते हैं।
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हवन कुंड का आकार
प्राचीनकाल में कुंड चौकोर खोदे जाते थे। उनकी लंबाई, चौड़ाई समान होती थी। यह इसलिए कि उन दिनों भरपूर समिधाएं प्रयुक्त होती थीं। घी और सामग्री भी बहुत-बहुत होमी जाती थी, फलस्वरूप अग्नि की प्रचंडता भी अधिक रहती थी। उसे नियंत्रण में रखने के लिए भूमि के भीतर अधिक जगह रहना आवश्यक था। उस स्थिति में चौकोर कुंड ही उपयुक्त थे। पर आज समिधा, घी, सामग्री सभी में अत्यधिक महंगाई के कारण किफायत करती पड़ती है।
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ऐसी दशा में चौकोर कुंडों में थोड़ी ही अग्नि जल पाती है और वह ऊपर अच्छी तरह दिखाई भी नहीं पड़ती। ऊपर तक भरकर भी वे नहीं आते तो कुरूप लगते हैं। अतएव आज की स्थिति में कुंड इस प्रकार बनने चाहिए कि बाहर से चौकोर रहें। लंबाई-चौड़ाई, गहराई समान हो।
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हवन के धुएं से प्राण में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। हवन के माध्यम से बीमारियों से छुटकारा पाने का जिक्र ऋग्वेद में भी है।
हवन के लिए आम की लकड़ी, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पीपल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन की लकड़ी, तिल, जामुन की कोमल पत्ती, अश्वगंधा की जड़, तमाल यानी कपूर, लौंग, चावल, ब्राम्ही, मुलैठी की जड़, बहेड़ा का फल और हर्रे तथा घी, शकर जौ, तिल, गुगल, इलायची एवं अन्य वनस्पतियों का पूरा उपयोगी होता है।
हवन के लिए गाय के गोबर से बनी छोटी-छोटी कटोरियां या उपले घी में डुबोकर डाले जाते हैं। हवन से हर प्रकार के 94 प्रतिशत जीवाणुओं का नाश होता है, अत: घर की शुद्धि तथा सेहत के लिए प्रत्येक घर में हवन करना चाहिए। हवन के साथ कोई मंत्र का जाप करने से सकारात्मक ध्वनि तरंगित होती है, शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। नोट-हवन यज्ञ किसी कुशल गुरु के मार्गदर्शन में करना ही उचित है।