राघवाचार्य जी महाराज के भजनों पर मंत्रमुग्ध हुए श्रोता

राघवाचार्य महाराज द्वारा श्रीमद भागवत कथा अमृत वर्षा का समापन

हरिंद्र सिंह दैनिक न्यूज़ लखनऊ। जगतगुरु स्वामी राघवाचार्य जी महाराज द्वारा श्रीमद् भागवत कथा के अमृत वर्षा के अंतिम दिन नव योगेश्वर संवाद, अवधूत उपाख्यान, श्रीमद्भागवत अनुक्रमणिका कथा सुनाई। निराला नगर स्थित माधव सभागार में चल रही कथा के अंतिम दिन श्रीमद् भागवत का रसपान करने भक्तो भीड़ देखते ही बन रही थी। कथा की शुरुआत हनुमान चालीसा के बाद व्यासपीठ की आरती करके की।

स्वामी राघवाचार्य जी महाराज ने कथा में विभिन्न प्रसंगों का वर्णन किया। स्वामी जी ने अंतिम दिन की कथा में अग्र पूजा के दौरान शिशुपाल द्वारा श्रीकृष्ण का अपमान करने के बाद श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र से शिशुपाल वध की कथा सुनाए।

जन्म के समय ऐसा था शिशुपाल

आगे महराज जी कहते हैं शिशुपाल वासुदेवजी की बहन और छेदी के राजा दमघोष का पुत्र था।इस तरह से वह श्रीकृष्ण का भाई था। जब शिशुपाल का जन्म हुआ तो वह विचित्र था। जन्म के समय उसकी तीन आंखे और चार हाथ थे. यह देखकर शिशुपाल के माता पिता बहुत चिंतित हुए. उन्हें लगा कि उनके घर में पुत्र के रूप में कोई राक्षस पैदा हुआ है। इस भय से उन्होंने शिशुपाल को त्यागने का फैसला किया।लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि बच्चे का त्याग न करें, जब सही सयम आएगा तो इस बच्चे की अतिरिक्त आंख और हाथ गायब हो जाएंगे।लेकिन इसके साथ ही यह भी आकाशवाणी हुई कि जिस व्यक्ति की गोद में बैठने के बाद इस बच्चे की आंख और हाथ गायब होंगे वही व्यक्ति इसका वध करेगा। आकाशवाणी से शिशुपाल के माता पिता की चिंता तो चली गई लेकिन उन्हें उसके वध की चिंता सताने लगी।

भगवान श्री कृष्ण ने जब शिशुपाल को गोद में उठाया

महराज जी कहते हैं समय तेजी से बीतने लगा। एक दिन श्री कृष्ण अपने पिता वासुदेव की बहन यानि अपनी बुआ के घर आए। वहां शिशुपाल को देखकर उनके मन में स्नेह जागा और उसे अपनी गोद में बैठा लिया। गोद में बैठाते ही शिशुपाल की अतिरिक्त आंख और हाथ अदृश्य हो गए। तब शिशुपाल को आकाशवाणी याद आ गयी. इस घटना के बाद शिशुपाल की माता परेशान हो गईं और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से शिशुपाल का वध न करने का वचन लिया।भगवान अपनी बुआ को दुख नहीं देना चाहते थे, लेकिन विधि के विधान को वे टाल भी नहीं सकते थे. इसलिए उन्होंने अपनी बुआ से कहा कि वे शिशुपाल की 100 गलतियों को माफ कर देंगे लेकिन 101 वीं गलती पर उसे दंड देना ही पड़ेगा. लेकिन इसके साथ ही उन्होेंने बुआ को ये भी वचन दिया कि यदि शिशुपाल का वध करना भी पड़ा तो वध के बाद शिशुपाल को इस जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण वहां से चले आए।

राजसूय यज्ञ के दौरान भगवान श्रीकृष्ण का किया अपमान,

जब युधिष्ठिर को युवराज घोषित किया तो राजसूय यज्ञ कराया गया। इस अवसर पर सभी संबंधियों और रिश्तेदारों को बुलाया गया।प्रतापी राजाओं को भी आमंत्रण दिया गया. इस मौके पर वासुदेव, श्रीकृष्ण और शिशुपाल आमंत्रित किए गए थे। यहीं पर शिशुपाल का सामना भगवान श्रीकृष्ण से होता है।भगवान श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर ने आदर सत्कार किया। यह बात शिशुपाल को रास नहीं आई और सभी के सामने खड़े होकर इसका विरोध करने लगा। उसका कहना था कि एक मामूली ग्वाले को इतना सम्मान क्यों दिया जा रहा हैं जबकि इस अवसर पर कई वरिष्ठि और सम्मानीय जन मौजूद हैं।

भगवान श्रीकृष्ण शांत मन से पूरे आयोजन को देख रहे थे। लेकिन शिशुपाल उन्हें अपमानित करने लगा और उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग करने लगा।भगवान अपने वचन से बंधे हुए थे, इस कारण उसकी गलतियों को सहन करते जा रहे थे। लेकिन जैसे ही शिशुपाल ने सौ अपशब्द पूर्ण किये और 101वां अपशब्द कहा, श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र को शिशुपाल का वध करने का आदेश दिया. इस प्रकार शिशुपाल की मृत्यु हो गई।

आगे महराज जी कहते हैं गुरू भक्त सुदामा व श्री कृष्ण का द्वारिका में परम स्नेही मिलन, श्री कृष्ण का स्वधाम गमन व अंत में राजा परीक्षित को मोक्ष प्राप्ति के प्रसंगों को सुनाया। महाराज जी ने कहा श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करना और भगवान श्रीकृष्ण का नाम लेना चाहिए। इससे मनुष्य को मोक्ष मिलता है।

उन्होंने कहा त्रेता युग में भगवान विष्णु की भक्ति को सर्वस्व माना है। द्वापर युग में तप को विशेष महत्व दिया है। कलयुग में श्रीमद् भागवत कथा श्रवण को मोक्ष के द्वार का रास्ता माना है। कलयुग में आयु कम है। इसलिए भागवत कथा श्रवण से मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। राजा पारीक्षित को कथा श्रवण के सात दिन बाद मोक्ष मिला था। भगवान की निस्वार्थ भाव से अनन्य भक्ति करना चाहिए। भगवान से कुछ न मांगे। प्रभु भक्ति करते रहे। प्रभु खुद फल देते है। सारे पापों का नाश करते है।

ईश्वर को धन, दौलत व यज्ञों से कोई सरोकार नहीं-राघवाचार्य

महराज जी कहते हैं ईश्वर को धन, दौलत व यज्ञों से कोई सरोकार नहीं है। वह तो केवल स्वच्छ मन से की गई आराधना के अधीन होता है। समय-समय पर भगवान को भी अपने भक्त की भक्ति के आगे झुककर सहायता के लिए आना पड़ा है। भगवान श्रीकृष्ण ने मित्रता, सदाचार, गुण, अवगुण, द्वेष सभी प्रकार के भावों को व्यक्त किया है।

Share it via Social Media

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *