हरिंद्र सिंह दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ।वास्तु शास्त्र में, कैक्टस के बारे में कहा जाता है कि यह घर में नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है और इसलिए इसे घर में नहीं रखना चाहिए। यह मान्यता है कि कैक्टस प्रकृति की तेज ऊर्जा को संचारित करता है जो अनुकूल नहीं होती है और इसलिए यह नकारात्मक प्रभाव देता है।
इस प्रमाण के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि कैक्टस के तीक्ष्ण और कटिबंधी दांत, जो शास्त्रों में नकारात्मक ऊर्जा के संकेत के रूप में माने जाते हैं। इसके अलावा, कैक्टस के कांटों का व्यापारिक इस्तेमाल भी उनकी नकारात्मकता को सुझावित करता है।
संबंधों में विघटन और अस्थिरता को बढ़ावा देना
यदि आप वास्तु शास्त्र के मान्यताओं का पालन करना चाहते हैं, तो कैक्टस को अपने घर में लगाने से बचें। इसके बजाय, आप अन्य पौधों को घर में रख सकते हैं जो पॉजिटिव और शान्तिपूर्ण ऊर्जा को लाते हैं। यह उदाहरण के रूप में पूर्वज के अनुसार शान्ति और उदारता के प्रतीक के रूप में तुलसी पौधा देख सकते हैं।
ध्यान दें कि वास्तु शास्त्र की बातें आधार पर होती हैं और यह धार्मिक या व्यक्तिगत विश्वासों पर निर्भर करती हैं। कुछ लोग इन नियमों का पालन करते हैं, जबकि दूसरे इसे नकारत्मक या विश्वासहीन मानते हैं। यदि आपको वास्तु शास्त्र में विश्वास है और इसे अपनाना चाहते हैं, तो एक प्रोफेशनल वास्तु शास्त्री की सलाह लेना सर्वोत्तम होगा।
वास्तु शास्त्र विशेषज्ञों का मानना है कि घर में कैक्टस को रखने से निम्नलिखित समस्याएं पैदा हो सकती हैं:
घर की ऊर्जा संतुलन को व्यवधान करना।
नकारात्मकता, तनाव और दुख को बढ़ाना।
परिवार के सदस्यों के बीमारी और रोग के आदान-प्रदान को प्रेरित करना।
वित्तीय समस्याओं को बढ़ावा देना इत्यादि।
कैक्टस की मुख्य प्रजातियां
एलोवेरा और कैक्टस दोनों ही सूक्ष्म वनस्पति प्रजातियों का समूह हैं, और इनमें कई प्रजातियां शामिल होती हैं। यहां कुछ प्रमुख एलोवेरा और कैक्टस प्रजातियों के नाम दिए गए हैं:
एलोवेरा (Aloe vera):
एलोवेरा वेरा (Aloe vera) – सबसे आम और प्रयोग में आने वाली एलोवेरा प्रजाति है, जिसके पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं।
एलोवेरा आरबेंसिस (Aloe arborescens) – इस प्रजाति के पत्ते दूसरी प्रजातियों की तुलना में बड़े होते हैं और गहरे हरे रंग के होते हैं।
एलोवेरा सोकोट्रिना (Aloe saponaria) – इस प्रजाति के पत्ते सफेद होते हैं और यह विशेष रूप से साबुन बनाने के उद्योग में उपयोग होती है।
कैक्टस (Cactus):
सेन्सेवियरिया (Sansevieria) – इस प्रजाति के पत्ते लंबे और सुखे होते हैं और वे हरे या हरे रंग के होते हैं।
ईउफोर्बिया (Euphorbia) – यह एक बड़ा परिवार है और इसमें कई प्रजातियां होती हैं। इनमें से कुछ लोकप्रिय प्रजातियां हैं जैसे ईउफोर्बिया ट्रिगोना (Euphorbia trigona) और ईउफोर्बिया मिल्ली (Euphorbia milii) जो बाढ़ेदेवता या क्राउन ऑफ थॉर्न्स के नाम से भी जानी जाती है।
हवोर्थिया (Haworthia) – यह प्रजाति छोटे आकार की होती है और इसके पत्तों पर सफेद या हरे रंग के नक्शे होते हैं।
आस्ट्रोफिटम (Astrophytum) – इन प्रजातियों को “स्टार कैक्टस” के नाम से भी जाना जाता है और इनके गोल आकार और जटिल नक्शे होते हैं।
ओपुंटिया (Opuntia) – यह प्रजाति खासकर बड़े और फूलदार कैक्टस के रूप में मशहूर है। इनमें भोजपत्री जैसी पत्तियां होती हैं
एचीनोकैक्टस (Echinocactus) – इस प्रजाति के पत्ते सुबह सुबह खुल जाते हैं और यह एक बड़ा और गोल कैक्टस होता है।
मामिल्लारिया (Mammillaria) – यह प्रजाति छोटे आकार की होती है और इसके पत्ते छोटे गोल होते हैं जिन पर कांटे होते हैं।
एस्केभारिया (Escobaria) – इन प्रजातियों के पत्ते छोटे होते हैं और इनमें कंकड़ी या कांटे होते हैं।
ग्राप्टोकैक्टस (Graptoveria) – यह हाइब्रिड प्रजाति है, जो एलोवेरा और सुकुलेंट प्रजातियों के संयोजन से बनाई जाती है। इसके पत्ते सबसे अधिकतर रंगीन होते हैं।
रेप्तिलारिया (Rebutia) – यह प्रजाति छोटे आकार की होती है और उबले हुए खरपतवार वाले पत्तों के साथ आती है।
रेप्तिलारिया (Rebutia) – यह प्रजाति छोटे आकार की होती है और उबले हुए खरपतवार वाले पत्तों के साथ आती है।
ये कुछ प्रमुख कैक्टस प्रजातियां हैं, लेकिन इसके अलावा भी और कई प्रजातियां मौजूद हैं जो विभिन्न आकार, रंग और पत्तों के साथ आती हैं।