संस्कृत सिर्फ भाषा नहीं… संस्कृति, विज्ञान, तार्किक क्षमता और अन्य भाषाओं की जननी

दैनिक इंडिया न्यूज,लखनऊ।भारतीय संस्कृति की रक्षा करने के लिए संस्कृत को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। संस्कृत भाषा में ज्ञान विज्ञान का भंडार छिपा हुआ है। यह विचार संस्कृत भारती महानगर, लखनऊ, अवध प्रान्त के जनपद सम्मेलन में प्रो. लक्ष्मी निवास पांडे (दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय) ने संस्कृत भारती कार्यालय शिवामंदिर परिसर महानगर में कहीं।

उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा के प्राचीन ग्रंथों में इतना अधिक ज्ञान छिपा हुआ है कि जिनका शोध विदेशों में बड़े पैमाने पर हो रहा है। भारत में भी प्राचीन ग्रंथों में उपलब्ध ज्ञान का उपयोग जन कल्याण के लिए किया जाना चाहिए। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्व नारायण झा ने कहा कि भारत सरकार संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार के लिए भरसक प्रयास कर रही है। भारत सरकार ऐसे संस्कृत विद्वानों को सम्मान देने की प्रक्रिया आरंभ कर रही है जो कि संस्कृत के विद्वान हो और जिनका संस्कृत भाषा के उत्थान में योगदान रहा हो। उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष,संस्कृत भारती अवध प्रांत के क्षेत्र संयोजक डॉ. कन्हैया लाल झा जी ने कहा कि संस्कृत भारती द्वारा संस्कृत भाषा के विकास के लिए अनेक कदम उठाए जा रहे हैं। संस्कृत भारती संपूर्ण देश में संस्कृत के प्रचार प्रसार के लिए वास्तविक धरातल पर कार्य कर रहा है। आज अनेक विश्वविद्यालयों में संस्कृत में वैज्ञानिक शोधों की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इस जागरूकता के पीछे संस्कृत भारती का भागीरथ प्रयास है।
आज नासा द्वारा भी यह प्रमाणित किया जा चुका है की संस्कृत भाषा कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा है। ऋषियों की भूमि नैमिषारण्य से पधारी साध्वी विश्वभारती जी उद्घाटन समारोह में मुख्य वक्ता रहीं। उन्होंने संस्कारों की चर्चा करते हुए बताया कि संस्कारों को संस्कृत भाषा के माध्यम से सरलता से प्राप्त किया जा सकता है।

साध्वी जी ने कहा कि संस्कृत भाषा देव भाषा होने के साथ-साथ अत्यंत मधुर भाषा भी है। इस भाषा के विषय में यह दुष्प्रचार है कि संस्कृत भाषा बहुत ही कठिन भाषा है। हमारी संस्कृति का मूल आधार संस्कृत भाषा ही है। हमारी प्राचीन ज्ञान विज्ञान का मूलाधार संस्कृत भाषा ही रही है प्राचीन काल में यह भाषा आम जनमानस की भाषा थी।

वहीं पर डॉ. एम.एल.बी भट्ट पूर्व वाइस चांसलर, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी ने स्वास्थ्य और संस्कृत के समन्वय को लेकर कहा कि संस्कृत शास्त्रों में स्वास्थ्यकर दिनचर्या का बखान किया है। ऋषियों ने कहा है कि हितभुक् ऋतुभुक् मितभुक् अर्थात् हमें हितकर ऋतु के अनुसार और भूख से थोड़ा कम ही भोजन करना चाहिए। संस्कृत में लिखित रूटीन को अपनाने से अनेकों समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है। प्रो. भट्ट ने आगे पतंजलि के आठ प्रकार के योग के पालन से भी रोग मुक्त होने के सूत्र बताए। अंत में उन्होंने कहा कि यदि आपको मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक तीनों प्रकार का स्वास्थ्य प्राप्त करना है तो एकमात्र शरण संस्कृत ही है। आधुनिक चिकित्सा पद्धतियां शारीरिक स्वास्थ्य तो देती हैं लेकिन बाकी दोनों प्रकार के स्वास्थ्य को प्राप्त करने की कुंजी संस्कृत भाषा में लिखे शास्त्रों में निहित है। जयतु संस्कृतं जयतु भारतम्

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