हर महानगर में हो भारत की विभिन्न परंपराओं और संस्कृति से जुड़े खानपान की गलीः सीएम योगी 

सीएम योगी ने संस्कृति विभाग और आवास विभाग को अलग-अलग विकास प्राधिकरणों के साथ मिलकर कार्ययोजना बनाने को कहा 

अलग-अलग संस्कृति के बावजूद हम सब एक हैं और यही एकता ही संगमम हैः योगी 

काशी-तमिल संगमम से उत्तर भारत के प्रति दुष्प्रचार करने वालों को किया बेनकाबः मुख्यमंत्री

हरिंद्र सिंह दैनिक इंडिया न्यूज लखनऊ, 25 दिसंबर। भारत के अलग-अलग राज्यों के खानपान भले ही अलग-अलग हों, लेकिन इस खानपान के बाद जो स्वाद और ऊर्जा है वो एक जैसी होती है। मैं चाहूंगा कि संस्कृति विभाग और आवास विभाग अलग-अलग विकास प्राधिकरणों के साथ मिलकर एक व्यवस्था करे कि हर महानगर के अंदर एक गली ही खानपान की होनी चाहिए, जहां लोग जाकर विभिन्न समाजों से जुड़े हुए इस खानपान का आनंद भी ले सकें और परिवार के साथ जाकर देख भी सकें कि अगर उन्हें तमिलनाडु जाना है तो वहां खाने को क्या मिलेगा। पंजाब जाना है तो वहां क्या मिलेगा। केरल, उत्तराखंड जैसी जगहों पर जाएंगे तो क्या खाने को मिलेगा। ये सभी खानपान विशिष्ट हैं। ये बातें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित संस्कृतियों का संगम खानपान कार्यक्रम के अवसर पर कहीं। इससे पहले उन्होंने प्रदेशवासियों को क्रिसमस पर्व, पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई और भारत रत्न मदन मोहन मालवीय की जयंती की बधाई भी दी। 

देश की सभी संस्कृतियां हैं हमारी ताकत 

कार्यक्रम के दौरान खानपान के संगमम को लेकर सीएम योगी ने कहा कि ऐसा प्रयास होना चाहिए कि कुछ विशिष्ट गलियां बनें जो खानपान के लिए ही चिन्हित हों और वो भी अलग-अलग परंपरा से जुड़े हुए। यहां तमिल का खानपान भी हो, मलयालम का भी हो, तेलुगू भी हो, राजस्थानी भी हो, पंजाबी भी हो, सिंधी भी हो, उत्तराखंडी भी हो और उत्तराखंडी में भी गढ़वाल का भी हो, कुमाऊं का भी हो, जौनसार का भी हो। ऐसे ही उत्तर प्रदेश में भोजपुरी का हो, अवधी का हो, बुंदेलखंडी हो, ब्रज का हो। ये सभी संस्कृतियां देश की ताकत हैं। इसके साथ जुड़ा हुआ हमारा इतिहास, हमारा गौरव और गौरव की अनुभूति किसी भी समाज को आगे बढ़ाने का कार्य करता है। इसे निरंतरता के साथ आगे बढ़ाने की आवश्यक्ता है। 

हमारी अनेकता ही है हमारी विशेषता 

हम सब जानते हैं कि भारत के बारे में एक सामान्य सी बात देखने को मिलती है और वो है हमारी अनेकता है। हमारी विशेषता है कि उसमें अनेकता है। खानपान, वेशभूषा, भाषा, इन सबमें अनेकता है। लेकिन भाव और भंगिमा हम सबकी एक है। उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक हम सब एक हैं। यह एकता ही संगमम है। संगम की परंपरा हमारे यहां अति प्रचीन काल से है। देश का सबसे बड़ा महासंगम प्रयागराज में है जहां गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों के साथ अदृश्य सरस्वती नदी का संगम भी है। यहां दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक आयोजन कुंभ के रूप में हम सबको देखने को मिलता है। अगर आप उत्तराखंड से चलेंगे तो अनेक प्रयाग आपको मिलेंगे। विष्णु प्रयाग, नंद प्रयाग, कर्ण प्रयाग, रुद्र प्रयाग, देव प्रयाग और फिर ये प्रयाग और ये संगमम आगे बढ़ते-बढ़ते हमारे वर्तमान प्रयागराज के रूप में देखने को मिलता है। 

दुष्प्रचार बेनकाब हुआ, एकता प्रगाढ़ हुई 

काशी-तमिल संगमम का जिक्र करते हुए सीएम ने कहा कि समाज की संस्कृति ही उसकी आत्मा है जो हम सबको एक सूत्र में पिरोती है। एकता के सूत्र को पिछले दिनों आप सबने काशी-संगमम के रूप में देखा है। तमिलनाडु से 12 ग्रुप एक महीने तक काशी में आए। उनमें छात्रों का ग्रुप था, शिक्षक थे, धर्माचार्य थे, कलाकार थे, हस्तशिल्पी थे, ग्राम्यविकास से जुड़े हुए किसान थे, श्रमिक थे। यहां इनके साथ एक और ग्रुप जुड़ता था और एक महीने तक यह कार्यक्रम चला। काशी के बाद उनका आगमन प्रयागराज में होता है और प्रयाग के बाद अयोध्या जाते हैं और फिर उनकी वापसी होती है। बहुत कुछ देखने और सुनने को मिला। इस प्रकार के संवाद और संगमम में जो तमाम प्रकार के विरोधाभाषी दुष्प्रचार था उसको दूर करने में एक बड़ी भूमिका का निर्वहन किया। तमिलनाडु में जिस प्रकार का दुष्प्रचार कुछ निहित स्वार्थी तत्वों को द्वारा फैलाया जाता था। यहां आकर उन्होंने जो देखा, जो महसूस किया वो संदेश अपने आप में बहुत बड़ा था। काशी-तमिल संगमम में आने वाला हर तमिलवासी अभिभूत होकर गया और उसे लगा कि वास्तव में जो लोग दुष्प्रचार करके तमिलनाडु के मन में उत्तर भारत के प्रति एक विष फैलाने का काम करते थे वो सभी बेनकाब हुए हैं। जब हम उस दुष्प्रचार को बेनकाब करते हैं तो एकता और प्रगाढ़ होती है। 

धरती माता की सेहत सुधारने के लिए आवश्यक है प्राकृतिक खेती 

2023 को मिलेट वर्ष के रूप में चिन्हित करने के प्रधानमंत्री मोदी के निर्णय पर बात करते हुए सीएम योगी ने कहा कि आदरणीय प्रधानमंत्री जी की इस पहल को यूनेस्को ने मान्यता दी है। यानी जो हमारा परंपरागत खानपान था, जिसे हम मोटे अनाज के रूप में मान्यता देते थे। हमने उससे धीरे-धीरे पल्ला छुड़ाया तो उसका दुष्परिणाम बीमारियों के रूप में देखने को मिला। किसी को शुगर, किसी बीपी व अन्य प्रकार की पेट से जुड़ी बीमारियां लग गईं। हम अगर अपनी परंपरा के साथ जुड़ेंगे तो दो चीजें हमें जरूर माननी होंगी। पहली हमारे महापुरुषों, ऋषियों, मुनियों ने खानपान की जो विशिष्ट शैली अलग-अलग राज्यों में वहां के क्षेत्र की बनावट और वहां की प्राकृतिक व सामाजिक बनावट के हिसाब से जो भी खानपान अनुमन्य किया था, वह एक विशिष्ट वैज्ञानिक सोच पर आधारित था। दूसरा उस समय एक प्रकार की प्राकृतिक खेती होती थी। केमिकल, फर्टिलाइजर, पेस्टीसाइड उसमें नहीं पड़ता था। आज केमिकल, फर्टिलाइजर, पेस्टीसाइड ने तमाम तरह की विकृतियां दी हैं। हमें प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देते हुए उसे परंपरागत खेती को फिर से आगे बढ़ाना होगा। इस तरह की खेती में कम पानी भी खर्च होता है और प्राकृतिक आपदाओं का कोई प्रभाव भी नहीं पड़ता है। कम मेहनत में अगर हम थोड़ी भी आधुनिकता अपना लेते तो हम कई गुना उत्पादकता बढ़ा सकते थे। हम उससे अलग रहे, जिसका परिमाण ये रहा कि आधुनिकता ने फिर एक नई होड़ प्रारंभ की और इस होड़ में केमिकल, फर्टिलाइजर, पेस्टीसाइड डालकर स्वस्थ धरती माता को जहरीला बना दिया। इससे उत्पन्न होने वाला खाद्यान्न कैसे स्वादिष्ट और विषमुक्त हो सकता है। इसलिए धरती माता की सेहत को सुधारने के लिए प्राकृतिक खेती और उस परंपरागत खेती को अपनाना होगा। मुझे विश्वास है कि ये मुहिम यहीं तक सीमित नहीं रहेगी। इस अवसर पर जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, राज्यमंत्री दानिश आजाद अंसारी भी उपस्थित रहे।

Share it via Social Media

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *