
दैनिक इंडिया न्यूज़, उज्जैन। महाकाल की नगरी उज्जैन में धर्म, अध्यात्म और सनातन संस्कृति का एक दिव्य दृश्य देखने को मिला, जब जगतगुरु योगेश्वराचार्य के समक्ष 11 महामंडलेश्वर का भव्य पट्टाभिषेक सम्पन्न हुआ। यह ऐतिहासिक अवसर न केवल पट्टाभिषेक की परंपरा का निर्वाह था, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा और वेद-वेदांत के तत्वबोध के प्रचार का भी संदेशवाहक बना।
पट्टाभिषेक से पूर्व राष्ट्रीय सनातन महासंघ के दिल्ली प्रांत के अध्यक्ष जगतगुरु अवधेश प्रपन्नाचार्य महाराज का महामंडलेश्वर संतों ने साष्टांग दंडवत कर पूजन किया और विधिवत उनकी आरती उतारी। वैदिक मंत्रोच्चार, शंखध्वनि और घंटानाद से गूंजता हुआ वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण हो उठा। गुरु पूजन के इस मंगल अवसर पर अनेक विद्वानों ने गुरु महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि गुरु ही साक्षात परब्रह्म स्वरूप हैं, जिनके आशीर्वाद से शिष्य का जीवन दिशा पाता है। गुरु की आराधना के बिना कोई भी साधना पूर्ण नहीं मानी जाती।
उपनिषदों में भी कहा गया है —
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।”
यह श्लोक इस बात को रेखांकित करता है कि गुरु की सेवा और पूजन साक्षात ब्रह्म की सेवा के समान है। इस अवसर पर उपस्थित श्रद्धालु भावविभोर होकर गुरु पूजन में सम्मिलित हुए और इस दैवीय दृश्य को नमन किया।
समारोह संपन्न होने के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए जगतगुरु अवधेश प्रपन्नाचार्य ने कहा कि वेद, वेदांत, उपनिषद और पुराण केवल ग्रंथ नहीं, बल्कि मानवता के कल्याण और आत्मकल्याण का प्रकाशपुंज हैं। वेदों के अध्ययन से आत्मा का बोध होता है, वेदांत हमें ब्रह्म और जीव की एकता का ज्ञान देता है, और उपनिषद जीवन को सत्य, करुणा और धर्म के मार्ग पर ले जाने की प्रेरणा देते हैं।
उन्होंने कहा कि आज समय की मांग है कि समाज वेद-वेदांत के तत्वबोध को केवल शास्त्रार्थ तक सीमित न रखे, बल्कि उसे आचरण में उतारे। उपनिषदों में उल्लिखित महावाक्य ‘तत्त्वमसि’, ‘अहं ब्रह्मास्मि’ और ‘सर्वं खल्विदं ब्रह्म’ आत्मज्ञान की चरम अवस्था की ओर संकेत करते हैं और हमें यह स्मरण कराते हैं कि सम्पूर्ण जगत में वही एक ब्रह्म व्यापक है।
पट्टाभिषेक के माध्यम से अभिषिक्त संतों को समाज को अज्ञानता के अंधकार से बाहर निकालने और सनातन धर्म की ज्योति प्रज्वलित करने का दायित्व सौंपा गया। वेद वेदांत और उपनिषदों के प्रचार-प्रसार के लिए यह एक नया संकल्प बनकर उभरा, जिससे न केवल संत समाज बल्कि सामान्य जनमानस भी लाभान्वित होगा।
इस आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि महाकाल की नगरी उज्जैन आज भी सनातन धर्म की परंपराओं, गुरु-शिष्य की अटूट कड़ी और वेद वेदांत के ज्ञान को जीवंत रखने का केंद्र बनी हुई है