
पूर्व कमिश्नर अजय दीप सिंह और राष्ट्रीय सनातन महासंघ के प्रवक्ता केके तिवारी की गरिमामयी उपस्थिति

दैनिक इंडिया न्यूज़ | लखनऊ, राजाजीपुरम
सनातन परंपरा में भक्ति, सेवा और समर्पण को जीवन का मूल माना गया है। यही मूल भाव राजाजीपुरम के श्री आनंद किशोर सक्सेना के आवास पर आयोजित भव्य भंडारे में स्पष्ट रूप से परिलक्षित हुआ, जहाँ श्रद्धा और सेवा का ऐसा संगम देखने को मिला जिसने उपस्थित जनसमूह को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया।
श्री हनुमान जी की अनुकंपा से सम्पन्न इस आयोजन में भक्ति रस का वातावरण प्रारंभ से ही दृष्टिगोचर हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत विधिपूर्वक दीप प्रज्वलन एवं पूजन से हुई। इस अवसर पर पूर्व कमिश्नर (अलीगढ़) अजय दीप सिंह और राष्ट्रीय सनातन महासंघ के प्रवक्ता केके तिवारी ने आरती कर उपस्थित श्रद्धालुओं को हनुमान जी के पावन नाम की महिमा से परिचित कराया।
पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अजय दीप सिंह ने अपने ब्याख्यान में सनातन दर्शन की गहराई को स्पर्श करते हुए कहा –
“हनुमान जी के दरबार में जब भंडारा होता है, तब उसमें कोई भी मुख्य अतिथि नहीं होता। वहाँ केवल प्रभु ही सर्वश्रेष्ठ हैं। उनकी कृपा से ही हम सभी अपने-अपने कार्य में सफल हो पाते हैं।”
उन्होंने इस संदर्भ में ईशावास्य उपनिषद् का प्रसिद्ध श्लोक उद्धृत किया –
“ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥”
और व्याख्या करते हुए कहा,
“ब्रह्म पूर्ण है, शाश्वत है, उसकी कभी पराजय नहीं होती। वह न तो घटता है, न ही नष्ट होता है – वह सदा विजयी है।”
यह ब्याख्यान न केवल श्रोताओं को भक्ति से जोड़ने वाला था, बल्कि विचारों में गूढ़ दर्शन के बीज भी बो गया।
राष्ट्रीय सनातन महासंघ के प्रवक्ता केके तिवारी ने हनुमान जी के स्वरूप को सामूहिक चेतना का प्रतीक बताते हुए कहा –
“हनुमान जी शक्ति और भक्ति के समन्वय हैं। उनके आयोजनों में केवल धार्मिक उद्देश्य नहीं होता, अपितु यह समाज को एकत्र करने, सत्वगुण की ओर प्रेरित करने और आत्मिक उन्नति के भाव को मजबूत करने का कार्य करते हैं।”
उन्होंने ऐसे आयोजनों को धर्म से जुड़ाव का माध्यम बताते हुए युवाओं से अपील की कि वे सेवा और श्रद्धा के इस समन्वय में सहभागी बनें।
कार्यक्रम में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लेकर सात्त्विक प्रसाद ग्रहण किया। आयोजन समिति ने स्वच्छता, व्यवस्था और अनुशासन का विशेष ध्यान रखा। प्रसाद वितरण केवल भोजन नहीं था – यह आत्मा को स्पर्श करने वाली अनुभूति थी।
इस अवसर पर स्थानीय समाजसेवियों, शिक्षाविदों, सनातन धर्म के प्रचारकों और विभिन्न क्षेत्रों से आए श्रद्धालुओं की सहभागिता ने आयोजन को विशिष्ट गरिमा प्रदान की।
आनंद किशोर सक्सेना की इस सतत पहल को जनमानस ने सराहा और अपेक्षा की कि भविष्य में भी ऐसे आयोजन निष्ठा और सेवा के साथ होते रहें।