हनुमान भक्ति से संस्कार और सेवा का अद्भुत संगम

वारियर डिफेंस एकेडमी में पंचम ज्येष्ठ मंगल पर हुआ विशाल भंडारा

जितेंद्र प्रताप सिंह बोले — “हनुमान जी हमारे आदर्श शिष्य, सेवक और सनातन संस्कृति के अमर दीप हैं”

दैनिक इंडिया न्यूज़ ,लखनऊ।पंचम ज्येष्ठ मंगल के पावन अवसर पर वारियर डिफेंस एकेडमी के परिसर में एक विशाल भंडारे का भव्य आयोजन किया गया। यह आयोजन अकादमी के निदेशक गुलाब सिंह के नेतृत्व और राष्ट्रीय सनातन महासंघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष जितेंद्र प्रताप सिंह के आध्यात्मिक मार्गदर्शन में संपन्न हुआ।
भंडारे से पूर्व सामूहिक सुंदरकांड का पाठ हुआ, जिसमें विद्यार्थियों, शिक्षकों और अतिथियों ने भक्ति भाव से भाग लिया।

कार्यक्रम में वारियर डिफेंस एकेडमी के समस्त शिक्षकगण, सभी छात्रगण एवं राष्ट्रीय सनातन महासंघ के पदाधिकारीगण उपस्थित रहे। सभी ने मिलजुलकर प्रेम और उत्सव की भावना के साथ इस भव्य भंडारे को संपन्न कराया।

सांस्कृतिक चेतना का केंद्र बन रही है अकादमी
वारियर डिफेंस एकेडमी केवल शिक्षा का नहीं, बल्कि संस्कार और संस्कृति का केंद्र बन रही है। राष्ट्रीय सनातन महासंघ के अध्यक्ष जितेंद्र प्रताप सिंह के मार्गदर्शन में यहाँ न केवल होली, दीपावली, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती जैसे भारतीय पर्व मनाए जाते हैं, बल्कि छात्रों को उनके गूढ़ सांस्कृतिक अर्थ भी समझाए जाते हैं। इसी प्रयास में यह भव्य आयोजन भी किया गया।

हनुमान जी हैं आदर्श शिक्षार्थी और मार्गदर्शक
मीडिया से वार्ता में जब जितेंद्र प्रताप सिंह से पूछा गया कि “भंडारे जैसे आयोजनों से विद्यार्थियों को क्या प्रेरणा मिलती है?”, तो उन्होंने कहा—

“हनुमान जी केवल एक पूज्य देवता नहीं, हमारे लिए आदर्श शिष्य, दिव्य मार्गदर्शक और प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण के प्रतीक हैं। उनकी भक्ति, विनम्रता, पराक्रम और ज्ञान अद्वितीय है। यदि हमारे विद्यार्थियों में इन गुणों का अंश भी उतर जाए, तो वे राष्ट्र की अमूल्य धरोहर बन सकते हैं।”

उन्होंने आगे कहा—

“हनुमान जी ने कभी अपने बल का प्रदर्शन नहीं किया, उन्होंने केवल प्रभु के कार्य को महत्व दिया। यही भावना हमारे छात्रों को अपने जीवन में आत्मसात करनी चाहिए — कर्तव्य के प्रति समर्पण और सेवा के प्रति श्रद्धा।”

सेना की तैयारी में संस्कारों की आवश्यकता
यहाँ पढ़ने वाले छात्र भविष्य में सेना, अर्धसैनिक बलों, पुलिस और अन्य सेवा क्षेत्रों में जाते हैं। ऐसे में केवल शारीरिक प्रशिक्षण नहीं, उन्हें मानसिक और सांस्कृतिक अनुशासन भी आवश्यक है — जो ऐसे आयोजनों के माध्यम से प्राप्त होता है।


भंडारे के आयोजन में शिक्षकों, छात्रों और स्वयंसेवकों ने जिस अनुशासन और भक्ति से सहभागिता की, उसने यह प्रमाणित किया कि शिक्षा और संस्कृति जब एक साथ चलती हैं, तब राष्ट्र निर्माण का मार्ग स्वतः प्रशस्त होता है।

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