
दैनिक इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली। Incretin hormone मानव शरीर की ऊर्जा-विनियमन प्रणाली का वह मौन नियंत्रक है, जो भोजन सेवन के तुरंत बाद सक्रिय होकर अग्न्याशय को संकेत देता है कि रक्त में बढ़ते हुए ग्लूकोज़ स्तर को संतुलित किया जाए। आंतों द्वारा स्रावित यह हार्मोन इतनी सूक्ष्म परंतु प्रभावशाली भूमिका निभाता है कि साधारण व्यक्ति को इसका एहसास तक नहीं होता, फिर भी यह हर भोजन के बाद शरीर को चयापचयिक अव्यवस्था से बचाता रहता है। यही कारण है कि इसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में metabolic stability का आधार स्तंभ माना जाता है।
जब भोजन पेट और आंतों तक पहुँचता है, तो incretin प्रणाली दो विशेष पेप्टाइड—GLP-1 और GIP—के माध्यम से इंसुलिन स्राव को बढ़ाती है और ग्लूकागॉन स्राव को कम करती है। इस प्रभाव को insulinotropic action कहा जाता है, जो भोजन के बाद होने वाले glucose spikes को नियंत्रित करने में निर्णायक है। जितनी जटिल यह प्रक्रिया है, उतना ही रोचक यह तथ्य भी है कि हार्मोन की यह गतिविधि शरीर में हर दिन, हर भोजन के बाद निरंतर जारी रहती है, परन्तु लगभग अनदेखी रह जाती है। यही अनदेखापन इसे और अधिक रहस्यमय बनाता है और पाठक को इसके वैज्ञानिक आधार की ओर आकर्षित करता है।
Incretin सिद्धांत को विकसित करने की कहानी भी उतनी ही रोचक है जितनी इसकी जैविक क्रियाएँ। 1930 के दशक में वैज्ञानिक Jean La Barre ने इस विचार को वैज्ञानिक समुदाय में पहली बार प्रस्तुत किया कि आंतों से निकला कोई रासायनिक संदेशवाहक इंसुलिन स्राव को प्रभावित करता है। बाद के दशकों में Daniel J. Drucker, Joel Habener और Stephen Bloom जैसे वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत को ठोस रूप दिया और GLP-1 तथा GIP की संरचना, कार्य-विधि और चिकित्सीय महत्व को विस्तार से सिद्ध किया। उनकी खोजों ने न केवल चिकित्सा जगत को एक नया दिशा-निर्देश दिया बल्कि ग्लूकोज़ विनियमन की हमारी समझ को पूरी तरह बदल दिया। यही कारण है कि incretin-based therapy आज विश्व-स्तर पर मधुमेह प्रबंधन की सबसे उन्नत विधियों में गिनी जाती है।
फिर भी यह अत्यंत आश्चर्यजनक है कि आहार-विज्ञान के क्षेत्र में इतने महत्वपूर्ण हार्मोन पर उतनी चर्चा नहीं होती जितनी होनी चाहिए। बहुत कम dieticians ऐसे हैं जो incretin गतिविधि और उसके metabolic परिणामों को गहराई से समझते हैं। भोजन और हार्मोन के इस वैज्ञानिक संबंध का उपयोग यदि बेहतर ढंग से किया जाए, तो सामान्य लोगों को भी मधुमेह और मोटापे जैसी स्थितियों से बड़ा लाभ मिल सकता है। इसी उपेक्षा के कारण यह विषय और भी रोचक हो जाता है, क्योंकि पाठक के मन में यह प्रश्न उठता है कि इतने प्रभावशाली हार्मोन को आहार-विशेषज्ञों ने आखिर क्यों अनदेखा कर दिया है।
कुछ समुदायों, जैसे rich वर्ग में, पारंपरिक भोजन में प्रोटीन-समृद्ध और ऊर्जा-घन आहार लंबे समय से लिया जाता रहा है। ऐसे भोजन पैटर्न स्वाभाविक रूप से incretin response को प्रभावित कर सकते हैं और चयापचयिक संतुलन में भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि अभी इस क्षेत्र में पर्याप्त वैज्ञानिक शोध उपलब्ध नहीं, परन्तु यह तथ्य अवश्य स्थापित है कि संतुलित भोजन, उचित फाइबर सेवन और नियंत्रित कार्बोहाइड्रेट की मात्रा incretin क्रियाशीलता को बेहतर बनाती है। यह विचार पाठक को यह समझने के लिए प्रेरित करता है कि कैसे पारंपरिक भोजन-पद्धतियाँ आधुनिक विज्ञान से जुड़ सकती हैं।
वर्तमान में incretin hormones पर विश्व-स्तर पर व्यापक शोध हो रहा है, विशेषतः मधुमेह और मोटापे के उपचार में GLP-1 आधारित दवाओं के कारण। इसके बावजूद मूल हार्मोन की गतिविधि और उसकी प्राकृतिक सक्रियता समाज में अब भी लगभग अनजानी है। चिकित्सा जगत incretin को “silent metabolic guardian” कहता है—क्योंकि यह बिना किसी शोर या स्पष्ट लक्षण के, परन्तु अत्यंत आवश्यक रूप से, शरीर में चयापचय का संतुलन बनाए रखता है। यही अदृश्य भूमिका इसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का सबसे आकर्षक, परंतु अब भी अपेक्षाकृत कम समझा गया विषय बना देती है।
