खुफिया रिपोर्ट पर शासन सतर्क, बृजलाल के सवाल पर सरकार हुई अलर्ट — हजारों सफाईकर्मियों पर जांच की आंच

लखनऊ नगर निगम में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों की पैठ, 10 बड़े शहरों में फैला नेटवर्क
नेताओं के संरक्षण में बने फर्जी दस्तावेज़, सरकारी जमीनों पर कब्ज़े से खलबली

दैनिक इंडिया न्यूज़, लखनऊ।राजधानी लखनऊ में नगर निगम के सफाई विभाग से जुड़ी खुफिया रिपोर्ट ने शासन-प्रशासन को सतर्क कर दिया है। रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि नगर निगम में हजारों की संख्या में बांग्लादेशी और रोहिंग्या नागरिकों को सफाईकर्मी बनाकर तैनात किया गया है। पूर्व डीजीपी और मौजूदा राज्यसभा सांसद बृजलाल द्वारा कुछ दिन पहले उठाए गए सवाल के बाद सरकार पूरी तरह अलर्ट मोड में आ गई है। खुफिया विभाग से मिले इनपुट के आधार पर नगर आयुक्त गौरव कुमार ने सभी आउटसोर्सिंग एजेंसियों के कर्मचारियों की पुलिस जांच और सत्यापन के आदेश दिए हैं।

अब राजधानी में हजारों सफाईकर्मियों पर जांच की आंच शुरू हो चुकी है। प्रशासन ने कागज़ी कर्मचारियों और फर्जी पहचान वालों की छानबीन का अभियान तेज़ कर दिया है। हर वार्ड से संदिग्ध कर्मियों की सूची मांगी गई है, और अब किसी भी नाम को बिना पुलिस रिपोर्ट के मंज़ूरी नहीं मिलेगी। यह जांच सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि एक व्यापक ऑपरेशन के रूप में देखी जा रही है जिसने नगर निगम और ठेकेदारों में खलबली मचा दी है।

यही नहीं, प्रदेश के दस बड़े नगर निगमों — कानपुर, वाराणसी, प्रयागराज, अयोध्या, गाजियाबाद, आगरा, मेरठ, बरेली और नोएडा — में भी ऐसे ही नेटवर्क की गहरी जड़ें होने की आशंका है। बताया जा रहा है कि आउटसोर्सिंग एजेंसियां और ठेकेदार झोपड़पट्टियों में रहने वाले संदिग्ध लोगों को कम वेतन पर सफाईकर्मी बनाकर नगर निगम में तैनात कर रहे हैं। प्रति व्यक्ति नौ हजार रुपये के वेतन में से दो से तीन हजार रुपये तक ठेकेदार की जेब में चला जाता है। स्थानीय वाल्मीकि समाज के लोग इतने कम वेतन पर काम नहीं करते, इसलिए ठेकेदार इन विदेशी नागरिकों को रख रहे हैं।

नगर निगम के अभिलेखों में अधिकांश सफाईकर्मी खुद को असम या बंगाल का बताते हैं, लेकिन जांच में पता चल रहा है कि वे बांग्लादेशी और रोहिंग्या हैं। खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, इस पूरे नेटवर्क को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। कुछ स्थानीय पार्षदों और नेताओं ने इन्हें वोट बैंक में तब्दील करने के लिए आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड तक बनवाए। नगर निगम चुनाव से पहले इन नेताओं के पत्रों के माध्यम से इन्हें “असम निवासी” बताकर पहचान पक्की कराई गई थी।

पिछले वर्ष नगर निगम के दो अधिकारियों के साथ सफाईकर्मियों ने मारपीट और अभद्रता की थी। उस समय महापौर सुषमा खर्कवाल ने इस मामले को गंभीरता से उठाया था, लेकिन पुलिस का सहयोग न मिलने के कारण मामला ठंडे बस्ते में चला गया। अब जब पूर्व डीजीपी बृजलाल का वीडियो वायरल हुआ है, तो शासन के साथ-साथ जांच एजेंसियां भी अलर्ट मोड में आ गई हैं।

फिलहाल लखनऊ की करीब दो हजार एकड़ सरकारी जमीन पर इन लोगों का अवैध कब्जा है। गोमती नगर विस्तार, इंदिरा नगर बाहरी क्षेत्र, जानकीपुरम और बीकेटी तक इनकी झोपड़ियां फैली हैं। बिजली और पानी के कनेक्शन तक इनके पास उपलब्ध हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले दो वर्षों से नगर निगम के अधिकारियों के पास इस विषय में जानकारी थी, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

राज्यसभा सांसद और पूर्व डीजीपी बृजलाल ने तीन दिन पूर्व लखनऊ में आयोजित सेवा भारती के एक कार्यक्रम में इस विषय पर तीखी चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था, “सरकार को अब बिना देर किए कठोर कार्रवाई करनी होगी। आज जो बांग्लादेशी और रोहिंग्या नगर निगमों में घुसपैठ कर चुके हैं, वे केवल मजदूरी नहीं कर रहे — वे ‘गजवा-ए-हिंद’ जैसे खतरनाक एजेंडे की तैयारी में हैं। यदि इन्हें अभी नहीं रोका गया, तो आने वाले समय में यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए विस्फोटक स्थिति बन सकती है।”

नगर निगम की कार्रवाई पर महापौर सुषमा खर्कवाल ने कहा कि, “पिछले वर्ष हमने रोहिंग्या और बांग्लादेशियों को बाहर निकालने का अभियान शुरू किया था, लेकिन पुलिस से पूरा सहयोग नहीं मिला। यदि अब पूरा सहयोग मिला, तो एक-एक व्यक्ति को चिह्नित कर बाहर किया जाएगा। निश्चित ही यह भविष्य के लिए बड़ा संकट है।”

नगर आयुक्त गौरव कुमार के आदेश के बाद नगर स्वास्थ्य अधिकारी और संबंधित थानों की टीमों ने जांच शुरू कर दी है। शासन ने सभी नगर निगमों से रिपोर्ट मांगी है और यह निर्देश दिया गया है कि किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को नगर निगम या उसकी आउटसोर्सिंग एजेंसियों में कार्य न करने दिया जाए।

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