
दैनिक इंडिया न्यूज़ 4 जुलाई 2025 लखनऊ।राष्ट्रीय सनातन महासंघ एवं अखिल विश्व गायत्री परिवार के संयुक्त तत्वावधान में गुप्त नवरात्रि की नवमी तिथि के पावन अवसर पर एक दिव्य गायत्री महायज्ञ एवं हवन पूजन का आयोजन किया गया। यह आयोजन केवल धार्मिक अनुष्ठान न होकर वेदांत-सम्प्रेषित राष्ट्र प्रेम और आध्यात्मिक चेतना की सामूहिक अभिव्यक्ति था, जिसमें राष्ट्रहित के संकल्पों के साथ भक्तों ने मां भगवती के श्रीचरणों में आहुति समर्पित की।

महायज्ञ के अंतर्गत श्रद्धालुओं ने भाग लिया और एक स्वर में यह प्रार्थना की कि मां भगवती का दिव्य आशीर्वाद भारतवर्ष पर सदैव बना रहे। उपस्थित श्रद्धालुओं का कहना था कि यह यज्ञ हमारी आत्मा के भीतर शुद्धता और संकल्प की ज्वाला जलाने वाला क्षण है, जिसमें राष्ट्र सर्वोपरि है और धर्म उसकी आत्मा।
राष्ट्रीय सनातन महासंघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष ने इस अवसर पर सम्पूर्ण राष्ट्र को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि मां भगवती की कृपा हम सबके ऊपर बनी रहे, यही हमारी कामना है। उन्होंने कहा कि यह यज्ञ केवल पूजन नहीं, वरन् एक ऐसी चेतना है जो हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे और हमें अपने जीवन को राष्ट्रसेवा और धर्मरक्षा में समर्पित करने का संकल्प दे।
यज्ञ के दौरान वेद मंत्रों का उच्चारण और विशेष रूप से गायत्री महामंत्र की ध्वनि ने वातावरण को दिव्यता से भर दिया। गायत्री मंत्र का भावार्थ स्वयं राष्ट्र के लिए मंगलकारी है – “ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥” – अर्थात् हम उस दिव्य तेज का ध्यान करते हैं जो संपूर्ण सृष्टि को प्रकाशित करता है, और हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करता है। यही वह चेतना है जो यदि प्रत्येक नागरिक के भीतर जागे, तो राष्ट्र पुनः अपने वैदिक वैभव की ओर अग्रसर हो सकता है।
कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि गुप्त नवरात्रि केवल आंतरिक साधना की कालावधि नहीं है, बल्कि यह आत्मनिरीक्षण, आत्मबल और आत्मनिष्ठा को जाग्रत करने का पर्व है। जब हम अपने भीतर की आसुरी वृत्तियों को त्यागकर दिव्य चेतना से जुड़ते हैं, तभी सच्चे अर्थों में धर्म और राष्ट्र की रक्षा संभव होती है।
इस आयोजन में राष्ट्र और धर्म की समग्रता के साथ यह भावना स्पष्ट रूप से उभरकर सामने आई कि हम केवल पूजा करने वाले नहीं, बल्कि अपने कर्म, संकल्प और सेवा से राष्ट्र को समर्पित करने वाले साधक हैं। मां भगवती के श्रीचरणों में की गई यह सामूहिक प्रार्थना संपूर्ण भारत की आत्मा का प्रतिनिधित्व करती है—जो वेद, उपनिषद और सनातन के मूल में प्रतिष्ठित है।
यह आयोजन एक चेतना-यात्रा थी—धर्म, भक्ति और राष्ट्र सेवा की त्रिवेणी में स्नान जैसा। यहां न केवल मंत्रों की ध्वनि थी, बल्कि आत्मा की पुकार भी थी; न केवल आहुति की अग्नि थी, बल्कि एक नव-भारत के निर्माण की आकांक्षा भी।