ट्रम्प की हार, संविधान की जीत: नील कात्याल ने अदालत में पलटा खेल

भारतीयवंशी कानूनी दिग्गज नील कात्याल ने ट्रम्प के टैरिफ को फेडरल अदालत में दी थी चुनौती

हरेंद्र सिंह,दैनिक इंडिया न्यूज़ नई दिल्ली।अमेरिकी राजनीति और न्यायपालिका के इतिहास में एक नया अध्याय तब जुड़ा, जब भारतीय मूल के जाने-माने वकील नील कुमार कात्याल ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैरिफ फैसले को अदालत में चुनौती देकर असंवैधानिक सिद्ध किया। अमेरिकी संघीय अपीलीय अदालत ने अपने ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट कहा कि टैरिफ लगाने की शक्ति केवल अमेरिकन कांग्रेस को है (संसद), राष्ट्रपति को नहीं। इस निर्णय ने न केवल अमेरिकी संविधान की गरिमा को बचाया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि कानून के सामने कोई भी व्यक्ति, चाहे वह राष्ट्रपति ही क्यों न हो, सर्वोपरि नहीं है।

कहानी की शुरुआत होती है ट्रम्प प्रशासन के उस विवादास्पद कदम से, जब उन्होंने “आपातकालीन शक्तियों” का हवाला देकर ‘जवाबी टैरिफ’ लगाने का आदेश जारी किया। यह फैसला छोटे कारोबारियों और आम जनता के लिए बोझिल साबित हुआ। सवाल उठने लगे कि क्या राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का असीमित प्रयोग कर सकते हैं? इसी बीच एक समूह, जिसमें कई छोटे व्यापारी शामिल थे, अदालत पहुँचा। इस संघर्ष में उन्होंने अपना कानूनी प्रतिनिधि चुना नील कात्याल को—वह वकील, जिसने पहले भी सुप्रीम कोर्ट में कई ऐतिहासिक मामलों में अपनी छाप छोड़ी थी।

नील कात्याल ने अदालत में दलील दी कि ट्रम्प द्वारा इस्तेमाल किया गया कानून—International Emergency Economic Powers Act (IEEPA)—वाणिज्यिक टैरिफ लगाने के लिए नहीं बना है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा जैसी असाधारण परिस्थितियों के लिए है। उन्होंने साबित किया कि यह कदम संविधान और कानून की स्पष्ट सीमाओं का उल्लंघन है। अदालत ने उनके तर्कों को स्वीकार करते हुए कहा कि राष्ट्रपति की शक्तियों का दायरा सीमित है और टैरिफ या टैक्स लगाने का अधिकार विशेष रूप से कांग्रेस को है।

इस पूरी सुनवाई के दौरान सस्पेंस यही था कि क्या अदालत राष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने की हिम्मत दिखाएगी? आखिरकार, निर्णय सामने आया—ट्रम्प का आदेश अवैध। यह खबर आते ही अमेरिकी राजनीति में हलचल मच गई। ट्रम्प ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि अगर टैरिफ हटाए गए तो अमेरिका की अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाएगी। लेकिन दूसरी ओर, छोटे व्यापारियों और संवैधानिक विशेषज्ञों ने राहत की सांस ली कि न्यायपालिका ने संतुलन बनाए रखा।

यह फैसला केवल एक कानूनी जीत नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूती का प्रतीक है। नील कात्याल ने दिखा दिया कि कानून की शक्ति व्यक्ति की शक्ति से कहीं ऊपर है। उनके तर्कों ने न केवल छोटे व्यापारियों को न्याय दिलाया, बल्कि दुनिया को यह संदेश भी दिया कि चाहे सत्ता कितनी भी बड़ी क्यों न हो, उसे संविधान की सीमा में ही रहना होगा। यह कहानी हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है, जो मानता है कि न्याय अंततः सत्य के पक्ष में ही खड़ा होता है।

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