डायबिटीज़ : मीठा ज़हर जो घर-घर में फैल चुका है ,अब आयुर्वेद दे रहा जीवन का नया रास्ता–डॉ. टी.पी. तिवारी

दैनिक इंडिया न्यूज़, लखनऊ।मधुमेह अर्थात डायबिटीज़ आज भारत में एक मौन किन्तु घातक महामारी का रूप ले चुका है। यह केवल रक्त में शर्करा की मात्रा का असंतुलन नहीं, बल्कि एक गहन जीवनशैली विकार है, जो शरीर की सभी प्रमुख क्रियाओं—हृदय, यकृत, गुर्दे, नेत्र, मस्तिष्क एवं तंत्रिका तंत्र—को प्रभावित करता है।

राजधानी लखनऊ में आयोजित चिकित्सक संगोष्ठी में डॉक्टर नेचर वैलनेस के निदेशक एवं आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. टी.पी. तिवारी ने संबोधित करते हुए कहा कि मधुमेह अब केवल रोग नहीं, बल्कि सामाजिक चेतावनी है। उन्होंने कहा कि यदि हमने आज भी रासायनिक औषधियों पर ही निर्भरता बनाए रखी, तो यह रोग और गहराता जाएगा। अब समय है कि हम पुनः आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा की ओर लौटें।

उन्होंने बताया कि आजकल अधिकतर लोगों का भोजन पोषक नहीं, केवल ऊष्मा (कैलोरी) प्रधान हो गया है। प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ, परिष्कृत तेल, मीठे पेय, फास्ट फूड और कृत्रिम स्वादवर्धक पदार्थ शरीर में विषाक्तता फैलाते हैं। इससे अग्न्याशय की कार्यक्षमता प्रभावित होती है और अंततः इंसुलिन की सक्रियता घटने लगती है।

एक बड़ी भ्रांति यह है कि केवल स्थूलकाय लोग ही मधुमेह के शिकार होते हैं। जबकि अनुसंधानों से यह स्पष्ट हुआ है कि अनेक लोग जो बाहरी रूप से दुबले दिखाई देते हैं, उनके शरीर में आंतरिक वसा की मात्रा अधिक होती है। यह स्थिति अधिक जोखिम भरी होती है और मधुमेह को आमंत्रण देती है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन के आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान में देश में लगभग दस करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। वैश्विक महामारी कोविड-19 के पश्चात यह संख्या तेज़ी से बढ़ी है। यदि यही प्रवृत्ति बनी रही, तो भारत विश्व में मधुमेह का सबसे बड़ा केंद्र बन सकता है।

किन्तु समाधान भी हमारे ही भीतर है। डॉ. तिवारी ने बताया कि डॉक्टर नेचर वैलनेस की विशेषज्ञ टीम ने वर्षों के शोध के आधार पर एक समग्र आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति विकसित की है, जिसमें औषधीय पौधों, सात्त्विक आहार, नियमित दिनचर्या और मानसिक संतुलन पर बल दिया जाता है। इससे शारीरिक संतुलन पुनर्स्थापित होता है और रोगी की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी सुदृढ़ होती है।

हज़ारों रोगियों ने अनुभव किया है कि इस पद्धति से कुछ ही समय में उनकी रक्त शर्करा की स्थिति सुधरी, औषधियों पर निर्भरता घटी और जीवन में पुनः ऊर्जा का संचार हुआ।

डॉ. तिवारी ने अंत में कहा कि भारत प्राचीन काल से योग, आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा का विश्व स्रोत रहा है। आज, जब पूरी दुनिया आधुनिक चिकित्सा पद्धति के दुष्परिणामों से जूझ रही है, भारत अपने पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक अनुसंधान के समन्वय से पुनः विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर है।

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