
दैनिक इंडिया न्यूज़, लखनऊ, उत्तर प्रदेश — प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश डिजिटल क्रांति के जिस स्वर्णिम द्वार पर खड़ा है, वह आशा और प्रगति का प्रतीक है। सरकार ने ऑनलाइन सुविधाएँ देकर और जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाकर छोटे और मझोले व्यापारियों को आर्थिक अनुग्रह देने की हर संभव कोशिश की है। लेकिन क्या होगा जब यह पता चले कि इसी प्रगतिशील भारत का एक प्रमुख स्तंभ—पंजाब नेशनल बैंक (PNB)—इस सपने को खंडित करने पर तुला है? क्या सार्वजनिक क्षेत्र के ये बैंक, जो जनता के अगाध विश्वास पर टिके हैं, वास्तव में एक सुनियोजित ‘आर्थिक नरभक्षी’ तंत्र के रूप में काम कर रहे हैं?
देश का एक बड़ा पब्लिक सेक्टर बैंक, PNB, अब सुविधा का केंद्र नहीं, बल्कि आर्थिक उत्पीड़न का जाल बन चुका है। बैंक की नीतियाँ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि वे हजारों करोड़ के फ्रॉडस्टर्स को अनदेखा कर रहे हैं, लेकिन एक छोटे व्यापारी की गाढ़ी कमाई पर जुर्माना लगाने में क्रूरता की पराकाष्ठा पार कर रहे हैं। यह महज बैंकिंग विफलता नहीं है; यह लोक-धन की आपराधिक अवमानना है।
सवाल यह है कि PNB इतनी निर्भीकता से अपने ग्राहकों को क्यों लूट रहा है? इसका उत्तर बैंक के चरित्र-दोष में छिपा है, जो उसके लोन पोर्टफोलियो में स्पष्ट रूप से झलकता है। बैंक का झुकाव छोटे ग्राहकों की ओर नहीं, बल्कि उन बड़े मगरमच्छों की ओर है जो हजारों करोड़ रुपये लेकर आसानी से चंपत हो जाते हैं।
जब हम PNB के वित्तीय अपराधों के दस्तावेज़ देखते हैं, तो आँकड़े भयानक होते हैं। ₹15,000 करोड़ से अधिक की देनदारियाँ! Kudos Chemie, Winsome Diamonds, Kingfisher Airlines, और DHFL (जिसके लगभग ₹3,689 करोड़ के ऋण को बैंक ने फ्रॉड घोषित किया) जैसे नाम इस बात की पुष्टि करते हैं कि PNB का ध्यान कहाँ है—बड़े शिकार पर! यह एक विषाक्त पूंजीवादी कुचक्र है: फ्रॉड करने वाले बड़े नामों को क्षमादान मिले, और ईमानदार करदाता को दंडित किया जाए।
इसी भयानक पृष्ठभूमि में, PNB छोटे व्यापारियों को ऋण देने से घृणा करता है। उनका स्पष्ट, अहंकारी तर्क होता है: “हम प्राइवेट सेक्टर वालों को लोन नहीं देते।” यह सीधे तौर पर राष्ट्र निर्माण और MSME क्षेत्र को मज़बूत करने की सरकारी योजनाओं के विरुद्ध युद्ध है। जिस बैंक की तिजोरी को बड़े डिफ़ॉल्टरों ने खाली कर दिया है, वह अब छोटे व्यापारी को ही सबसे बड़ा जोखिम मानता है।
यह बैंक अब केवल शुल्क-उगाही की एक सरकारी मशीन बन चुका है। PNB की यह कार्यशैली न केवल आरबीआई के मानदंडों का उल्लंघन करती है, बल्कि मानवीय गरिमा को भी ठेस पहुँचाती है। आगे जो खुलासे किए जा रहे हैं, वे PNB के अनैतिक आचरण की गहराई दर्शाते हैं—सावधान, क्योंकि यह आपके भी पैसे का मामला हो सकता है!
उत्पीड़न की पराकाष्ठा
PNB के क्रूर शुल्क और कर्मचारियों का निकृष्ट बर्ताव
PNB ने अपने ग्राहकों को आर्थिक दण्ड देने में किसी भी निजी बैंक को पीछे छोड़ दिया है। उनकी शोषणकारी शुल्क-नीति एक व्यवस्थागत लूट बन चुकी है
- अवैध कटौती और मिलीभगत
ग्राहकों का गंभीर आरोप है कि आरबीआई के मानदंडों की खुली अवहेलना करते हुए, बैंक के कुछ पदस्थ अधिकारियों की मिलीभगत से, करंट अकाउंट में न्यूनतम शेष क्राइटेरिया पूरा होने के बावजूद, जानबूझकर पैसे काटे जा रहे हैं। यह सीधे पारदर्शिता के अधिदेशों का उल्लंघन है।
- दंडात्मक अधिभार
जीएसटी में रियायत के सरकारी वादों के बावजूद, PNB करंट अकाउंट पर ₹708 तक का दंडात्मक जुर्माना, ₹118 का सेवा शुल्क, ₹27 का एसएमएस चार्ज, और हर एटीएम निकासी पर ₹24 का शुल्क ठोक रहा है। - बचत पर भी डाका
राम राम बैंक चौराहा शाखा की एक शर्मनाक घटना ने बैंक की असंवेदनशीलता को उजागर किया है। एक ग्राहक के आरडी (रिकरिंग डिपॉजिट) अकाउंट में भी ईसीएस मैंडेट के पैसे काट लिए गए, और कई महीने बीत जाने के बाद भी बैंक ने अवैध रूप से काटी गई राशि को वापस नहीं किया है। यह बैंक की धोखाधड़ी और गलती न सुधारने की हठधर्मिता को दिखाता है।
लखनऊ का अपमान: याचक’ बना ग्राहक
PNB का राम राम बैंक चौराहा शाखा का रवैया जन सेवा के प्रति तिरस्कार को दर्शाता है। यदि ग्राहक अपना अकाउंट नंबर भूल जाता है, तो बैंककर्मी उसे सहायता देने से मना कर देते हैं और अहंकार से कहते हैं कि “पासबुक लेकर आओ तभी तुम्हारा नंबर बताया जाएगा।” यह असहनीय व्यवहार सिद्ध करता है कि PNB में ग्राहक को समान नागरिक नहीं, बल्कि पदानत (Subservient) भिखारी के रूप में देखा जाता है।
PNB की यह शोषक और अनैतिक कार्यशैली बैंक की साख को मटियामेट कर रही है। यदि PNB ने इन मनमानी पूर्ण कटौतियों और भ्रष्ट रवैये को तुरंत नहीं सुधारा, तो वह दिन दूर नहीं जब PNB की हालत भी किसी विश्वास खो चुके सहकारी बैंक जैसी हो जाएगी।
व्यापारी वर्ग और आम नागरिक सचेत हो जाएँ। PNB की सेवाएँ आपके लिए नहीं, बल्कि बैंक के राजस्व के लिए हैं। अपनी मेहनत की पूंजी को ऐसे ‘आर्थिक लुटेरों’ के चंगुल से निकालिए!
