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दैनिक इंडिया न्यूज़ ,प्रयागराज। राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने त्रिवेणी संगम में पुण्य स्नान कर राष्ट्र उत्थान और आत्मशुद्धि का संकल्प लिया। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत अब 21वीं सदी में पुनः विश्वगुरु बनने की दिशा में अग्रसर है, और सनातन धर्म की जागरूकता संपूर्ण विश्व में फैल रही है। उन्होंने श्रद्धालुओं से सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार में योगदान देने का आह्वान किया।
कुंभ स्नान का आध्यात्मिक और शास्त्रीय महत्व
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त्रिवेणी संगम में स्नान का उल्लेख वेदों और पुराणों में मिलता है, जिसे मोक्ष प्राप्ति और आत्मशुद्धि का सर्वोत्तम साधन माना गया है।
ऋग्वेद में कहा गया है –
“आपो हि ष्ठा मयोभुवस्ता न ऊर्जे दधातन। महेरणाय चक्षसे॥” (ऋग्वेद 10.9.1)
अर्थ: जल केवल जीवन का आधार नहीं, बल्कि आत्मिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी प्रमुख साधन है।
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स्कंद पुराण में वर्णित है –
“कुम्भे कुम्भे गता नद्यः, तत्र देवाः सहायिता। स्नानं कुर्वंति ये तत्र, ते यान्ति परमां गतिम्॥”
अर्थ: कुंभ में संगम स्थल पर स्नान करने वाले व्यक्ति को परम गति प्राप्त होती है और उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
सनातन धर्म की पुनर्स्थापना और भारत का उत्थान
राष्ट्रीय अध्यक्ष ने अपने संबोधन में कहा कि जहां एक समय भारत की सनातन पहचान धूमिल हो रही थी, वहीं आज यह पुनः वैश्विक मंच पर एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभर रहा है। उन्होंने कहा कि मध्यकाल में विदेशी आक्रांताओं ने सनातन संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास किया, लेकिन अब पूरी दुनिया में सनातन धर्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि भारत के मंदिरों, धार्मिक अनुष्ठानों और कुंभ जैसे आयोजनों में जिस तरह से लोगों की आस्था बढ़ रही है, यह इस बात का संकेत है कि भारत एक बार फिर आध्यात्मिक शक्ति के केंद्र के रूप में स्थापित हो रहा है।
सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार का आह्वान
राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सभी श्रद्धालुओं और सनातन प्रेमियों से आग्रह किया कि वे अपने धर्म और संस्कृति को समझें तथा अगली पीढ़ी को भी इसके महत्व से अवगत कराएं। उन्होंने कहा कि कुंभ स्नान केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह सनातन संस्कृति की महानता और राष्ट्र उत्थान का प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से युवा पीढ़ी वेद, उपनिषद और भागवत कथा की ओर आकर्षित हो रही है, वह सनातन धर्म के पुनर्जागरण का प्रमाण है। यह समय है कि हम अपनी जड़ों की ओर लौटें और भारत को पुनः विश्वगुरु बनाने के इस अभियान में योगदान दें।
सनातन धर्म का स्वर्णिम युग निकट
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उन्होंने अपने संबोधन के अंत में कहा कि सनातन धर्म केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में इसकी जागरूकता बढ़ रही है। सनातन संस्कृति की इस विशाल लहर से वह दिन दूर नहीं जब भारत आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से विश्वगुरु के पद पर पुनः आसीन होगा।
उन्होंने सभी श्रद्धालुओं से अपील की कि वे सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों को आत्मसात करें और इसे जन-जन तक पहुंचाने में सहयोग करें। कुंभ केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह सनातन धर्म की अखंडता और राष्ट्र उत्थान का महापर्व है।