बाल्यकाल की घटनाओं में चारों भाइयों का प्रेम और परिवार की मर्यादा का हुआ मार्मिक वर्णन
भरत पीठाधीश्वर श्री केके तिवारी महाराज ने श्री राम के बाल्यकाल को समाज और परिवार के आदर्शों का प्रतीक बताया
दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ के पंचमुखी हनुमान मंदिर, गुलाचीन मंदिर में आयोजित श्री राम कथा के दौरान भरत पीठाधीश्वर श्री केके तिवारी महाराज ने भगवान श्री राम के बाल्यकाल की घटनाओं का विस्तृत वर्णन किया। कथा में चारों भाइयों—राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न—के आपसी प्रेम और उनकी माता कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी के प्रति आदर और स्नेह को केंद्र में रखा गया।
महाराज ने वाल्मीकि रामायण के बाल कांड का संदर्भ देते हुए कहा:
“तेषां लक्ष्मण-भरतौ शत्रुघ्नश्च परन्तप।
राममेवानुगच्छन्ति सदा प्रीत्या प्रशंसया॥”
(बालकांड 18.24)
अर्थात, चारों भाइयों में ऐसा प्रेम था कि वे एक-दूसरे के सुख-दुख में सहभागी रहते थे। रामचंद्र जी का सभी के प्रति स्नेह और मार्गदर्शन उनके भाइयों के लिए प्रेरणा का स्रोत था। विशेष रूप से लक्ष्मण का श्री राम के प्रति समर्पण और भरत का राम के लिए त्याग भारतीय संस्कृति में भाईचारे की अनुपम मिसाल है।
महाराज ने माता कौशल्या और राम के रिश्ते को भी विस्तार से वर्णित किया। उन्होंने कहा, “माता कौशल्या का श्री राम के प्रति वात्सल्य और राम का उनकी आज्ञा का पालन, हर परिवार में आदर्श स्थापित करता है। माता सुमित्रा और कैकेयी के प्रति राम का समान आदर यह सिखाता है कि परिवार में प्रत्येक सदस्य को प्रेम और सम्मान मिलना चाहिए।” उन्होंने कहा कि श्री राम का बाल्यकाल हमें यह सिखाता है कि परिवार से शुरू होने वाला प्रेम और आदर समाज की नींव को मजबूत करता है। रामायण केवल भगवान राम की कथा नहीं, बल्कि परिवार और समाज को जोड़ने का माध्यम है। जब परिवार में प्रेम, त्याग और सहिष्णुता होती है, तो समाज स्वतः ही समरस बनता है।
कथा में बताया गया कि कैसे राम और उनके भाइयों ने अपने गुरु वशिष्ठ के मार्गदर्शन में धर्म, नीति और मर्यादा के आदर्श सीखे। यह प्रसंग आज के युवाओं को प्रेरित करता है कि वे अपने परिवार और समाज के प्रति जिम्मेदारी को समझें।
कथा सुनने आए श्रद्धालुओं ने महाराज के प्रवचनों से गहरा प्रभाव लिया। कथा के समापन पर हवन और प्रसाद वितरण का आयोजन किया गया। भक्तों ने संकल्प लिया कि वे अपने परिवार और समाज में मर्यादा और प्रेम के आदर्शों को अपनाएंगे।
भरत पीठाधीश्वर श्री केके तिवारी महाराज ने कहा, “आज जब परिवार टूटने की स्थिति में हैं, हमें रामायण से प्रेरणा लेकर अपने संबंधों को सुदृढ़ करना चाहिए। रामायण में वर्णित चारों भाइयों का प्रेम और माता-पुत्र का स्नेह हर युग में प्रासंगिक है। यह केवल कथा नहीं, बल्कि जीवन जीने की पद्धति है।”
इस आयोजन ने न केवल श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक लाभ दिया, बल्कि परिवार और समाज को जोड़ने का संदेश भी दिया। आयोजन समिति ने इसे सफल बनाने में विशेष योगदान दिया।