
हरेंद्र सिंह, दैनिक इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली।पहलगाम का हमला केवल एक आतंकी वारदात नहीं, बल्कि भारत की आत्मा पर किया गया सीधा प्रहार है। उस घाटी में, जो कभी ‘धरती का स्वर्ग’ कही जाती थी, अब निर्दोष नागरिकों की लाशें बिछीं। यह हमला उन सैकड़ों परिवारों की उम्मीदों और सपनों पर गोलियों की बरसात थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट बैठक से यह संकेत साफ है कि अब भारत मौन नहीं रहेगा। अब कूटनीतिक बयानबाजी या सांत्वना के शब्द नहीं, कार्यवाही की गर्जना सुनाई देगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम वाकई उस नीति परिवर्तन के मुहाने पर हैं, जहाँ ‘स्ट्राइक’ केवल बॉर्डर पार की कार्रवाई नहीं, बल्कि आतंक के नेटवर्क की जड़ें उखाड़ने का नाम होगी?
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चेतावनी — “हम सिर्फ गोली चलाने वालों तक नहीं रुकेंगे” — एक सख्त संदेश है, लेकिन अब जनता इसे जुमला नहीं, परिणाम के रूप में देखना चाहती है।
यह पहली बार नहीं जब कश्मीर की जमीन पर मासूमों का खून बहा हो। लेकिन अबकी बार बात केवल कश्मीर की नहीं, पूरे भारत की है। ये हमला जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली के सरकार के दावे पर भी प्रश्नचिह्न लगा गया है। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जो स्थिरता का माहौल बनता दिखा था, क्या वह केवल सतही था?
आतंकियों ने हमला करने से पहले इलाके की एक हफ्ते तक रेकी की। सवाल उठता है — खुफिया एजेंसियों की निगाह कहाँ थी? यह महज़ इंटेलिजेंस फेल्योर नहीं, प्रबंधन विफलता है।
इस हमले में जिस तरह से पर्यटकों को निशाना बनाया गया, वह यह बताता है कि आतंकी अब केवल सैनिकों से नहीं, भारत के आम नागरिक से लड़ाई लड़ रहे हैं। और यह लड़ाई अब या कभी नहीं की स्थिति तक आ पहुंची है।
कश्मीर के स्थानीय नेता, जिनमें उमर अब्दुल्ला शामिल हैं, सर्वदलीय बैठक बुलाकर एकता की बात कर रहे हैं — लेकिन ये एकता कब तक होगी? जब अगला हमला होगा तब तक?
यह सही है कि फ्रांस, अमेरिका, रूस जैसे देशों ने भारत को समर्थन दिया है, लेकिन क्या सिर्फ समर्थन से आतंक मिटेगा?
जनता पूछ रही है — अब भी कितने पहलगाम, पुलवामा, उरी चाहिए सरकार को?
अब समय आ गया है कि भारत आतंकी संगठनों, उनके मददगारों और उन्हें पालने वालों के विरुद्ध ऐसा निर्णायक अभियान चलाए जो आने वाले दशकों के लिए मिसाल बने।
देश अब आश्वासन नहीं, प्रतिशोध की पटकथा देखना चाहता है।