दैनिक इंडिया न्यूज, लखनऊ।जो शाश्वत है वह सनातन है। सूर्य,चंद्र, नक्षत्र,आकाश, सागर, पर्वत,ठोस,द्रव,गैस, विश्व ब्रह्माण्ड में व्याप्त प्राणतत्व से लेकर अणु-अणु आदि सब शाश्वत तत्व हैं। अतः जो कृत्रिमता से मुक्त रहकर प्रकृति के इन शाश्वत मूल सूर्य, चंद्र,आकाश, ब्रह्माण्ड के अणु-अणु के प्रति समर्पित जीवन जीता है वह सनातनी कहलाता है और जिसमें सनातन को भेदने की सामर्थ्य है वह संत कहा जाता है। अर्थात जिसने सूर्य, चंद्र, नक्षत्,आकाश,सागर,पर्वत, ठोस,द्रव, गैस,आदि तत्वों को भेदने की सामर्थ्य अर्जित कर ली है] वह संत कहलाता है। इस प्रकृति व ब्रह्माण्ड के अणु-अणु में प्रवाहित सविता शक्ति,दिव्य चेतन प्राण प्रवाह एवं जीवनी शक्ति को आकर्षित करने,धारण करने का मंत्र है गायत्री।
जीवन को समुचित विधि से संचालित करने के लिए मानव सहित हर प्राणि, वृक्ष-वनस्पतियों को कम ज्यादा मात्र में जिन शाश्वत व सनातन तत्वों की आवश्यकता है उनमें हैं शारीरिक सक्रियता, सजीवता,प्रफुल्लता, स्फूर्ति, रूप-लावण्य, निरोगता,परिपुष्टता, जीवनीशक्ति, उर्वरता, स्मरणशक्ति, सूझ-बूझ, कुशाग्रता, बुद्धिमत्ता,तुलनात्मक निर्णय की क्षमता,एकाग्रता,मनस्विता, तेजस्विता, प्रतिभा जैसी मानसिक विभूतियां तथा शौर्य,साहस,अभय एवं सन्मार्ग पर निरंतर चलते रहने वाला पुरुषार्थ,अहर्निशता,सहृदयता, करुणा, कर्त्तव्यनिष्ठा,संयमशीलता, सहनशीलता, श्रद्धा, सद्भावना आदि हैं। जीवन के विकास के लिए ये सभी गुणों को वैज्ञानिक प्राण शक्ति की उपलब्धियों के रूप में आंकते हैं। यह प्राण सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सहज प्रवाहित है] पर इसका मूल केंद्रक है सूर्य। दूसरी दृष्टि से कहें तो इस सूर्य को भी जहां से ऊर्जा मिलती है] उसे सविता स्रोत कहते हैं। गायत्रीमंत्र जप साधना से साधक इसी सविता तत्व तक पहुंच बनाने में सफल होता है। गायत्री मंत्र उपासना से जीवन में प्राणचेतना व जीवनशक्ति आकर्षित करके साधक इन्हीं तत्वों को आकर्षित एवं धारण करने का अभ्यास करते हैं। विश्व ब्रह्माण्ड में फैला यही प्राण तत्व हमारे अंदर जीवनी शक्ति रूप में स्थापित है। वैज्ञानिक इसे ईथर तत्व कहते हैं, आध्यात्म विज्ञानी साधक,संत, ऋषिगण इसे ऋत व सविता’ नाम से संबोधित करते हैं।
यह ऋत व सविता तत्व शाश्वत है, कभी न समाप्त होने वाली सनातन चेतना है। यह सूर्य से लेकर कण-कण को, मनुष्य से लेकर सम्पूर्ण प्राणि जगत को प्राण शक्ति व सम्पूर्ण जीवनी शक्ति देता है। वृक्ष वनस्पतियों को उत्सर्जन-पोषण की सम्पूर्ण शक्ति इसी से मिलती है। यही सूर्य की चेतन शक्ति है। इस दिव्य प्राण शक्ति, ऋत व सविता’शक्ति के संदोहन की विधि है गायत्री व गायत्री मंत्र। इसे सामान्यतः सूर्य व सविता का मंत्र भी कहते हैं। ऋगवेद अनुसार गायत्री मंत्र के रचयिता ऋषि विश्वामित्र हैं और इस मंत्र का देवता सविता है। अग्नि पिण्ड स्वरूपी सूर्य की सूक्ष्म सत्ता सविता ही तो है] जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जीवनी शक्ति रूप में फैली है और यही महाप्राण शक्ति भी है। गायत्री मंत्र जप द्वारा सूर्य की चेतन शक्ति सविता से जुड़कर साधक महाप्राण का धारण करते हैं। गायत्री मंत्र की साधना प्राण धारण करने प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली बनाता है।
ऋषि याज्ञवल्क्य कहते हैं गायन्तं त्रयते इति वा गायत्री, प्रोच्यते तस्मात् गायन्तं त्रयते यत।’ अर्थात् प्राणों का त्रण,परिष्करण, शोधन, संरक्षण करने वाली शक्तिधारा के कारण इसे गायत्री शक्ति कहा जाता। गायत्री उपासना वास्तव में प्राण शक्ति, जीवनी शक्ति को परिष्कृत व प्रखर बनाने की ही साधना है। गायत्री साधकों ने अनुभूतियों के आधार पर बताया है कि यह मानव जगत के प्राणों की प्रत्यक्ष रक्षण करने वाली प्रयोग शक्ति है। गायत्री के 24 अक्षर का जब साधक उपासनात्मक प्रयोग करता है,तो शरीर के अंदर से दिव्य स्तर की ऊर्जा जनरेट होती है और वह सूर्यतत्व के पीछे कार्य करने वाली सविता स्रोत से कनेक्ट हो उठती है। इस प्रकार साधक अनन्तकाल से प्रवाहित शाश्वत सविता स्रोत से वैसी ही प्राणधारा आकर्षित होकर साधक का हर विधि से संरक्षण करने लगती है। इसीलिए यह गायत्री है, गायत्री माता हैः- गयाः प्राणा उच्यन्ते, गयान् प्राणान् त्रयते सा गायत्री।’ यहां गय का आशय प्राण से है।
देवर्षि नारद भी इसे प्राणों के परिष्कार एवं संवर्धन करने वाली शक्ति बताते हैं
गायतस्त्रयसे देवि तद्गायत्रीति गद्यसे। गयः प्राण इति प्रोत्तफ़स्तत्स्यत्रणादपीति वा।।
इसीलिए प्राणि जगत की सक्रियता का सारा श्रेय प्राणशक्ति की दात्री गायत्री को जाता है। गायत्री ही विश्व ब्रह्माण्ड व्यापी दिव्य चेतन शक्ति है। यही विश्व माता है, वेदमाता है,देवमाता है। यही मां जगदम्बा, दुर्गा, भवानी, पार्वती,सीता,सविता, ऋत भी है। गायत्री ऐसी शक्ति है,जो ब्रह्माण्ड के हर तत्व में मातृचेतना रूप में विराजित है। यह एक छोटे से बीज से लेकर ब्रह्माण्ड के मूल तक में विराजमान होकर प्रतिपल नवीनता जगाती हैऔर पौधे को विकसित वही शक्ति करती है। श्री वेदव्यास जी को यह मातृ शक्ति 24 प्रकार की चेतन धाराओं में अनुभव होती हैं। पं- श्री रामशर्मा आचार्य जी ने इसी को त्रिपदा शक्ति से ओतप्रोत 24 आयामों वाली गायत्री शक्ति कहा है। यही सम्पूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड में प्रवाहित दैवीय चेतन शक्तिधारा है, जो मनुष्य व मनुष्येत्तर प्राणियों, बृक्ष-बनस्पतियों तक के कष्ट हरती,उन्हें जीवनीशक्ति,जीवन जीने की शक्ति देती है। अंततः उपासना के सहारे साधक गायत्री व सवितामय होकर जीवन के लिए आवश्यक दैवीय गुणों से भरने लगता है।
प्राण ही साधक का बीज है। गायत्री मंत्र साधना के दौरान साधक का लघु व सीमित प्राण सूक्ष्मरूप से इस विश्व ब्रह्माण्ड में फैले महाप्राण तत्व से जुड़ता है। इस तरह यह जप,अनुष्ठान और पुरश्चरण साधक की मनोभूमि को पवित्र परिमार्जित करके साधक को सुयोग्य बनाता है, ताकि उपासना के बीज प्राण रूप में उग सकें। साधक के जीवन में शक्ति एवं सिद्धि के रूप में प्रकट हो सकें। ताकि उपासक अपना लोक जीवन व्यवस्थित करने के साथ-साथ ब्रह्मसत्ता की आध्यात्मिक शक्ति के रहस्य को भेद सके। यही गायत्री मंत्र की प्राणविद्या साधना है। इस जप से फेफड़े को मिलने वाले आवश्यक प्राण के अलावा, साधक के शरीर के रोम-रोम से सूक्ष्म प्राणप्रवाह वाले मार्ग भी प्रशस्त हेाते हैंः
अपश्यं गोपामनिपद्यमानमा च परा च पथिभिश््यरन्तम्।
सं सध्नीचीः स विषूचीर्बसान आवरीवर्ति भुवनेष्वन्त।।
तभी ऋग्वेद का ऋषि कहता है मैंने प्राणों को देखा है,साक्षात्कार किया है, यह प्राण सब इन्द्रियों का रक्षक है। यह कभी नष्ट होने वाला नहीं है। यही भि -भि नाड़ियों मुख और नासिका द्वारा क्षण-क्षण में इस शरीर में आता और फिर बाहर चला जाता है। यह प्राण शरीर में तो वायु रूप है, पर आधिदैव रूप में यह सूर्य ही है। ऋषि कहते हैं कि मनुष्य सहित प्राणि जगत, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को गतिशील करने, प्रवाहित रखने की शक्ति धारा इसी सविता में समाहित है। गायत्री मंत्र की साधना ब्रह्माण्ड में प्रवाहित विशाल प्राणतत्व को सूक्ष्म मनोयोग-भावयोग, मंत्रयोग विधि से आकर्षित करने की आध्यात्मिक पद्धति है। गायत्री उपासना द्वारा साधक इसी प्राण को प्रखरता से आकर्षित करके जीवन को दिव्य बना पाता है।
आज की भागदौर के वातावरण में मानव मात्र के प्राणों पर संकट के बादल छा रहे हैं। ऐसे में प्राणों के संरक्षण-संवर्धन के लिए गायत्री मंत्र का जप,गायत्री उपासना से जुड़ने की नियमितता अपनायें, जीवन को प्राणवान बनायें। क्योंकि ब्रह्माण्ड में प्रवाहित सनातन चेतना के मूल में प्रवेश का मंत्र ही तो है गायत्री।