भस्मासुर बनाने और निपटाने की भाजपा की रणनीति

कैसे भाजपा अपने ही गढ़े भस्मासुरों का अंत करती है

दैनिक इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली।भारतीय राजनीति में भाजपा की रणनीतियों को समझना आसान नहीं है। जो इसे केवल एक हिंदुत्ववादी पार्टी के रूप में देखते हैं, वे इसकी गहरी रणनीतिक परतों को नहीं पहचान पाते। यह पार्टी शतरंज के खेल की तरह अपने हर कदम को सावधानीपूर्वक आगे बढ़ाती है। अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी और इससे पहले जय प्रकाश नारायण से लेकर विश्वनाथ प्रताप सिंह तक, भाजपा की रणनीति एक जैसी रही है—भस्मासुर बनाना और फिर उसे खुद ही समाप्त करना।

भाजपा का कांटे से कांटा निकालने का खेल

भारतीय राजनीति में भाजपा ने हमेशा से ही एक खास रणनीति अपनाई है—विरोधी के खिलाफ किसी तीसरी शक्ति को खड़ा करना और बाद में उस शक्ति को समाप्त कर देना। कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टी को पराजित करने के लिए जनसंघ (भाजपा का पूर्व रूप) ने जय प्रकाश नारायण (जेपी) का सहारा लिया। जेपी आंदोलन ने कांग्रेस की नींव हिला दी और 1977 में जनता पार्टी सत्ता में आई, जिसमें जनसंघ एक प्रमुख घटक था।

लेकिन धीरे-धीरे भाजपा को समझ में आया कि जनता पार्टी के साथ ज्यादा दिन तक टिके रहना संभव नहीं होगा, क्योंकि समाजवादी और कांग्रेसी मानसिकता के लोग भाजपा को अंदर से कमजोर कर रहे थे। यही कारण था कि आडवाणी की रथ यात्रा के बाद भाजपा ने जनता दल को छोड़कर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई और हिंदुत्व की राजनीति को आगे बढ़ाया।

अरविंद केजरीवाल: भाजपा का एक और भस्मासुर

अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (AAP) का उदय भी एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था। 2011 का अन्ना आंदोलन कांग्रेस सरकार को कमजोर करने के लिए भाजपा के लिए वरदान साबित हुआ। इस आंदोलन में भाजपा ने पर्दे के पीछे रहकर पूरा समर्थन दिया। रामलीला मैदान में जब लाखों लोग अन्ना हजारे के समर्थन में जुटे थे, तब भाजपा के कई नेता सक्रिय रूप से इस आंदोलन को हवा दे रहे थे।

लेकिन इस आंदोलन के गर्भ से निकले अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ने भाजपा के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी। शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार को हटाने के लिए भाजपा ने केजरीवाल को समर्थन दिया, लेकिन जब केजरीवाल ने अपनी ताकत बढ़ा ली और भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, तब वही भाजपा जिसने उन्हें उभारा था, उन्हें नष्ट करने में जुट गई।

2024 तक आते-आते भाजपा ने अपने ‘कांटे से कांटा निकालने’ की रणनीति के तहत केजरीवाल को भ्रष्टाचार के मामलों में इतना उलझा दिया कि वे राजनीतिक रूप से कमजोर पड़ गए।

ममता बनर्जी: एक और भस्मासुर की तैयारी?

अगर हम पश्चिम बंगाल की राजनीति पर नजर डालें तो भाजपा की यही रणनीति वहां भी साफ दिखती है। कभी वामपंथी सत्ता के खिलाफ भाजपा ने ममता बनर्जी का समर्थन किया और उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में उभारा। नंदीग्राम और सिंगूर के आंदोलनों में भाजपा ने ममता को अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग दिया ताकि वामपंथियों को सत्ता से बाहर किया जा सके। लेकिन जब ममता बनर्जी ने खुद भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दी, तो भाजपा ने उनके खिलाफ आक्रामक रुख अपना लिया।

2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने भाजपा को हरा दिया, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पश्चिम बंगाल में ममता के किले को हिला दिया। अब जब भाजपा ने अयोध्या के मिल्कीपुर में सपा को हराकर संकेत दे दिया है कि वह लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है, तो क्या ममता का भी वही हश्र होगा जो केजरीवाल का हुआ?

भाजपा की लंबी रणनीति: धैर्य और समय का खेल

भाजपा को समझने के लिए यह जरूरी है कि इसे केवल एक चुनावी पार्टी के रूप में न देखा जाए। यह पार्टी लंबी योजनाओं पर काम करती है। यह पार्टी प्रतिद्वंद्वियों को खत्म करने में जल्दी नहीं करती, बल्कि धीरे-धीरे उनकी जड़ें काटती है। अरविंद केजरीवाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।

जब नरेंद्र मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बने, तो केजरीवाल दिल्ली में उभर रहे थे। लेकिन भाजपा ने धैर्य रखा। 2024 में जब केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के इतने आरोप लग चुके हैं कि उनकी राजनीतिक साख पूरी तरह खत्म हो गई, तब भाजपा ने उन पर निर्णायक प्रहार किया।

इसी तरह, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की राजनीति को कमजोर करने के लिए भाजपा लगातार प्रयास कर रही है। अगर भाजपा की रणनीति पर गौर करें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा ने पहले ममता बनर्जी को वामपंथ के खिलाफ इस्तेमाल किया और अब उनके खिलाफ नई रणनीति बना रही है।

भविष्य की राजनीति: अगला भस्मासुर कौन?

अब सवाल यह है कि अगला भस्मासुर कौन होगा? क्या भाजपा किसी और नए नेता को कांग्रेस या अन्य विपक्षी दलों के खिलाफ खड़ा करेगी और बाद में उसे भी समाप्त कर देगी? 2024 के चुनावों के बाद जिस तरह से बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जोड़ी पर दबाव बनाया जा रहा है, क्या वही रणनीति यहां भी अपनाई जाएगी?

मोदी ने हाल ही में अपने भाषण में एक मूर्ख और एक धूर्त का जिक्र किया था। धूर्त अरविंद केजरीवाल थे, जो अब खत्म हो चुके हैं। अगर कांग्रेस को बचना है, तो उसे अपने ‘मूर्ख’ (राहुल गांधी) से जल्द से जल्द छुटकारा लेना होगा। वरना कांग्रेस का भी वही हाल होगा, जो केजरीवाल का हुआ।

भाजपा की राजनीति सिर्फ चुनाव जीतने की नहीं है, बल्कि यह एक दीर्घकालिक रणनीति पर आधारित खेल है। जो इसे समझते हैं, वे इसका लाभ उठाते हैं, और जो इसे नहीं समझते, वे धीरे-धीरे राजनीतिक रूप से समाप्त हो जाते हैं। अरविंद केजरीवाल इसका ताजा उदाहरण हैं, और आने वाले समय में ममता बनर्जी या कोई और विपक्षी नेता इस चक्रव्यूह में फंस सकता है।

तो क्या अगला नंबर पश्चिम बंगाल का है?

यह देखने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ेगा!

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