महामंडलेश्वर स्वामी अभयानंद सरस्वती जी का पट्टाभिषेक, समवाय और संयोगज संबंध पर दिया गूढ़ ज्ञान

“न जायते म्रियते वा कदाचिन्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥”

(भगवद गीता 2.20)

दैनिक इंडिया न्यूज़ ,लखनऊ, कुर्सी रोड स्थित स्टेट सनातन आश्रम में आज महामंडलेश्वर जगतगुरु स्वामी अभयानंद सरस्वती जी महाराज का पट्टाभिषेक विधिपूर्वक संपन्न हुआ। इस भव्य आध्यात्मिक आयोजन में असंख्य श्रद्धालु उपस्थित रहे, जिन्होंने भक्ति और दिव्यता का अनुभव किया। यह आयोजन सनातन धर्म के उत्थान और आध्यात्मिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन गया।

पट्टाभिषेक के पश्चात, स्वामी अभयानंद सरस्वती जी ने ‘समवाय’ और ‘संयोगज संबंध’ विषयों पर गूढ़ आध्यात्मिक प्रवचन दिए। उन्होंने ‘समवाय’ को वेदांत दर्शन की दृष्टि से परिभाषित करते हुए कहा कि यह अविनाभावी संबंध का प्रतीक है, जो दो तत्वों को अखंड रूप से जोड़ता है। जैसे शरीर और आत्मा, सूर्य और प्रकाश का संबंध समवाय होता है, वैसे ही जीव और परमात्मा का संबंध भी शाश्वत और अखंड है।

संयोगज संबंध पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि सृष्टि पंचमहाभूतों के संयोगज संबंध से बनी है और जीवन में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। उन्होंने सामाजिक समरसता पर बल देते हुए कहा कि विविध संस्कृतियों और विचारधाराओं के संयोगज संबंध से ही समाज में स्थिरता और शांति संभव है।

उन्होंने ईशोपनिषद् के प्रथम श्लोक का उल्लेख करते हुए बताया –

“ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्॥”

इसका तात्पर्य यह है कि संपूर्ण सृष्टि ईश्वर से व्याप्त है। जब मनुष्य त्याग और संयम के साथ जीवन जीता है, तभी वह सच्ची शांति और मोक्ष की ओर अग्रसर हो सकता है।

इस अवसर पर आश्रम श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहा। वेद मंत्रों की ध्वनि और भक्ति संगीत से संपूर्ण वातावरण आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत हो गया।

यह आयोजन केवल स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि समाज में आध्यात्मिक जागरूकता के एक नए युग की शुरुआत का संकेत दे रहा है। स्वामी अभयानंद सरस्वती जी के नेतृत्व में सनातन धर्म की शिक्षाओं का प्रचार और समाज में अध्यात्म का नवोदय निश्चित रूप से एक नई दिशा प्रदान करेगा।


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