मोमबत्ती नहीं, मशालों का प्रज्ज्वलन चाहिए: सनातन के वीरों की पुकार

मोमबत्ती नहीं, मां दुर्गा की तलवार, परशुराम का फरसा और महादेव का त्रिशूल चाहिए -कुलदीप तिवारी

दैनिक इंडिया न्यूज़, 27 अप्रैल 2025।आज देशभर में पहलगाम की दुर्भाग्यपूर्ण घटना को लेकर कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं। लेकिन यह मोमबत्ती जलाना कहीं न कहीं एक निष्क्रियता की पहचान बनती जा रही है। सनातन संस्कृति ने कभी भी विरोध प्रदर्शन में कायरता नहीं दिखाई। जब-जब अन्याय हुआ, तब-तब हमारे पूर्वजों ने शंखध्वनि की, मशालें जलाईं और अपने शस्त्रों का प्रदर्शन कर शत्रुओं के हृदय कंपा दिए।

महाभारत में भी जब युद्ध प्रारंभ होता था, तो दीप नहीं जलते थे — शंख बजते थे, रणभेरी बजती थी। वीरों का सिंहनाद आकाश को चीर देता था। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है:

“शूरवीर के पग से धरा भी कांपे,
रण में शंखनाद से शत्रु भी थर्राए।”

सनातन परंपरा में दीपक ध्यान के लिए जलाया जाता है, युद्ध के लिए नहीं। युद्ध के समय मशालों की ज्वाला उठती थी, तलवारें चमकती थीं और रणभूमि में सिंह जैसे गर्जन करते वीर निकलते थे। हमें भी इसी परंपरा का पालन करना चाहिए। मोमबत्ती जलाने से दुश्मनों के हौसले नहीं टूटते, इसके लिए हमें अपने शौर्य और बलिदान की परंपरा को पुनः जीवंत करना होगा।

आज जरूरत है कि हम कायरता का प्रतीक मोमबत्ती नहीं, बल्कि साहस का प्रतीक मशालें जलाएँ। हमें अपने झंडों के साथ फ़्लैग मार्च करना चाहिए, अपने भीतर सोए हुए वीर रस को जगाना चाहिए। जिस प्रकार सेना अपने पराक्रम का प्रदर्शन करती है, उसी तरह जनता को भी एकजुट होकर शक्ति का परिचय देना चाहिए।

वीर रस से ओतप्रोत यह दोहा आज हर भारतीय के हृदय में धधकना चाहिए:

“चढ़ जा रण में वीर पुरुष, शंखनाद कर जोर,
शत्रु मचल उठे भयभीत हो, थर-थर कांपे चोर।”

पाकिस्तान की कायराना हरकतों के विरुद्ध हमें कड़ी प्रतिक्रिया देनी चाहिए। हमारे सैनिक सीमा पर अपने शौर्य से शत्रुओं को धूल चटा रहे हैं। हमें भी उनके हौसले को सलाम करते हुए अपने भीतर वही ज्वाला जगानी चाहिए जो दुश्मन के हौसले पस्त कर दे।

“जागो भारत के वीर सपूतो, मसाले हाथ में लो,
क्रोध की ज्वाला से शत्रु को, पैरों तले रौंद दो।”-

आज का समय कैंडल मार्च का नहीं, आत्मगौरव और शक्ति प्रदर्शन का है। आइए, अपने सनातन संस्कारों को जीवित करें और रणभूमि की पुकार पर वीरता का उत्तर दें। अब मोमबत्तियाँ नहीं, अब मसालों की आग चाहिए!

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