राष्ट्रऋषि माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘गुरुजी’ की जयंती पर राष्ट्रीय सनातन महासंघ ने अर्पित की श्रद्धांजलि

राष्ट्रीय चेतना के प्रकाश स्तंभ थे गुरुजी: जितेंद्र प्रताप सिंह

दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ, 19 फरवरी 2025 – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक एवं राष्ट्रऋषि माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘गुरुजी’ की जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष जितेंद्र प्रताप सिंह ने उन्हें नमन करते हुए समस्त राष्ट्र को शुभकामनाएं अर्पित कीं। उन्होंने कहा कि गुरुजी केवल एक संगठनकर्ता नहीं थे, बल्कि भारत की सांस्कृतिक चेतना के संरक्षक और राष्ट्रवाद के द्रष्टा थे।

गुरुजी के राष्ट्र प्रेम और विचारधारा पर प्रकाश डालते हुए जितेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि उन्होंने संपूर्ण जीवन भारत माता की सेवा में समर्पित कर दिया। उन्होंने कहा, “गुरुजी का मानना था कि भारत केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक जीवंत राष्ट्रपुरुष है, जिसकी आत्मा इसकी संस्कृति, परंपरा और आध्यात्मिकता में समाहित है।”

संघ के माध्यम से राष्ट्र जागरण की दिशा में उनके योगदान को याद करते हुए उन्होंने कहा कि गुरुजी का लक्ष्य स्वतंत्र, सशक्त और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भारत का निर्माण था। उनका नेतृत्व केवल संगठन तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज के प्रत्येक वर्ग को जागरूक करने और उन्हें राष्ट्रसेवा के लिए प्रेरित करने का कार्य किया।

जितेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि गुरुजी का राष्ट्रवाद संकीर्ण विचारधारा से परे था, जिसमें सभी नागरिकों को समानता, कर्तव्यपरायणता और मातृभूमि के प्रति निष्ठा का पाठ पढ़ाया गया। उन्होंने हमेशा भारत को एक ‘राष्ट्रपुरुष’ के रूप में देखा और इसे आत्मनिर्भर व आत्मगौरव से परिपूर्ण बनाने का सपना संजोया।”

इस अवसर पर राष्ट्रीय सनातन महासंघ के सदस्यों ने गुरुजी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके बताए गए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया। कार्यक्रम में कई गणमान्य व्यक्तियों ने उनके विचारों और शिक्षाओं को आगे बढ़ाने पर बल दिया।

गुरुजी का योगदान और प्रेरणा

गोलवलकर गुरुजी का जीवन संघ, संस्कृति और स्वाभिमान का प्रतीक था। उन्होंने हिंदू समाज को आत्मगौरव से भरने और उसे संगठित करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनका मानना था कि राष्ट्र की आत्मा उसकी संस्कृति में बसती है, और जब तक संस्कृति जीवित है, तब तक राष्ट्र अमर रहेगा।

उनकी जयंती पर यह संकल्प लेना आवश्यक है कि हम उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुए एक सशक्त, आत्मनिर्भर और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भारत के निर्माण में योगदान दें।

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