“संगीत आत्मा की अभिव्यक्ति ही नहीं, सामाजिक समरसता का सेतु भी है” — संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह

उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ग्रीष्मकालीन कार्यशालाओं का भव्य समापन समारोह सम्पन्न, कला की गौरवगाथा को नया विस्तार

दैनिक इंडिया न्यूज़ ,लखनऊ, 1 जुलाई 2025।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित संत गाडगे जी प्रेक्षागृह में सोमवार को आयोजित हुआ एक ऐसा सांस्कृतिक संगम, जिसमें पाँच वर्ष के बालक से लेकर 74 वर्षीय वरिष्ठ कलाकार तक ने अपनी कला से सभागार को भाव-विभोर कर दिया। अवसर था उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित ग्रीष्मकालीन प्रस्तुतिपरक कार्यशालाओं के समापन समारोह का, जिसके मुख्य अतिथि थे प्रदेश सरकार के संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री जयवीर सिंह।

मंत्री जयवीर सिंह ने कहा कि—

“संगीत केवल ध्वनि नहीं, वह आत्मा की तरंग है। यह व्यक्ति को न केवल स्वयं से जोड़ता है, बल्कि पूरे समाज में समरसता और सहभावना का संचार करता है। एकाकी होते जा रहे मानव समाज के लिए यह कला एक सेतु का कार्य कर रही है।”

19,000 प्रतिभागियों ने प्रदेशभर में दी सहभागिता, लखनऊ से 300 कलाकार हुए शामिल

मंत्री श्री जयवीर सिंह ने जानकारी दी कि इस वर्ष आयोजित हुई अकादमी की प्रस्तुतिपरक कार्यशालाओं में प्रदेश के 75 जनपदों से कुल 19,000 कलाकारों ने भाग लिया, जिनमें केवल लखनऊ से 300 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लेकर नृत्य, गायन, वादन एवं लोक कलाओं का प्रशिक्षण प्राप्त किया और मंच पर अपनी प्रभावशाली प्रस्तुतियों से दर्शकों का मन मोह लिया।

उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटल युग में भी संस्कृति विभाग द्वारा आधुनिक तकनीकों के साथ पारंपरिक कलाओं को सहेजने एवं प्रसारित करने का कार्य सतत रूप से किया जा रहा है। पंजीकृत कलाकारों को तीन से अधिक प्रस्तुतियाँ देने के लिए शासन की अनुमति आवश्यक होगी और उनकी प्रस्तुतियाँ विभाग की वेबसाइट पर प्रकाशित की जाएंगी ताकि कलाकारों के मध्य पारदर्शिता और गुणवत्ता का मानक स्थापित हो सके।

विरासत भी, विकास भी’ — संस्कृति नीति की सशक्त परिकल्पना साकार

उन्होंने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में ‘विरासत भी, विकास भी’ की नीति के तहत कला-संस्कृति को शिक्षा, नवाचार और ग्रामीण समाज के साथ जोड़ते हुए संरक्षित किया जा रहा है।


उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के माध्यम से ध्रुपद-धमार, सारंगी, शहनाई, पखावज, आल्हा-बिरहा, टप्पा जैसी लुप्तप्राय विधाओं पर आधारित कार्यशालाओं का आयोजन गाँवों, विद्यालयों, पंचायतों, जेलों, दिव्यांग सेवा संस्थानों और सांस्कृतिक संगठनों के सहयोग से किया गया।

इस सांस्कृतिक महायात्रा का समापन 14 जुलाई, 2025 को जनपद सम्भल में होगा।
इसके अतिरिक्त चित्रकूट में कोल जनजाति की बालिकाओं हेतु नाट्य कार्यशाला और वाराणसी में मुखौटा एवं कठपुतली निर्माण कार्यशाला का आयोजन भी अत्यंत सराहनीय रहा।

74 वर्षीय संगीतज्ञ को मिली सराहना, दिव्यांग प्रतिभागी की प्रस्तुति बनी प्रेरणा का स्रोत

मंत्री जी ने वरिष्ठ संगीतज्ञ केवल कुमार के सात दशकों से अधिक की कला यात्रा को श्रद्धा व सम्मान के साथ नमन करते हुए कहा कि—

“यह उम्र की नहीं, साधना की यात्रा है। केवल जी जैसे साधकों से कला की आत्मा जीवित रहती है।”

कार्यक्रम में एक दिव्यांग प्रतिभागी द्वारा कथक नृत्य की प्रस्तुति ने उपस्थित सभी दर्शकों को भावविभोर कर दिया।

राष्ट्रीय सनातन महासंघ ने दी समस्त कलाकारों को शुभकामनाएँ

इस अवसर पर राष्ट्रीय सनातन महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जितेन्द्र प्रताप सिंह व राष्ट्रीय प्रवक्ता कृष्णाचार्य ने समस्त कलाकारों, अकादमी पदाधिकारियों एवं प्रतिभागियों को शुभकामनाएँ प्रेषित करते हुए कहा कि—

“उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी ने लोक संस्कृति और शास्त्रीय परंपराओं को जिस गरिमा से पोषित किया है, वह भारतीय सनातन विरासत की गौरवशाली परंपरा को जीवंत रखने वाला कार्य है। मैं माननीय मंत्री जयवीर सिंह जी, अकादमी अध्यक्ष प्रो. जयंत खोत, उपाध्यक्ष विभा सिंह, निदेशक डॉ. शोभित नाहर समेत सभी कलाकारों और विद्यार्थियों को इस अभूतपूर्व आयोजन हेतु हृदय से बधाई देता हूँ।”

संगीत, नृत्य और वादन की विविधतापूर्ण प्रस्तुतियाँ बनीं आकर्षण का केंद्र

कार्यक्रम की प्रस्तुतियों में राहुल अवस्थी के निर्देशन में राग भूपाली और राग बिहाग में शास्त्रीय गायन हुआ, जिसमें ‘मा नि बरज गाए’, ‘जाऊं तोरे चरण कमल वारी’ तथा ‘गोपाल गोकुल बल्लभी’ जैसे बंदिशों ने मंत्रमुग्ध कर दिया।
उस्ताद गुलशन भारती के निर्देशन में ठुमरी, दादरा और टप्पा की मोहक प्रस्तुतियों ने श्रोताओं को बाँध लिया।
डॉ. पवन कुमार के निर्देशन में तीन ताल, रूपक और कहरवा में तबला वादन हुआ।
केवल कुमार के निर्देशन में लोक गीतों — ‘भोले बाबा के चरणन मा’, ‘पूरब से आई’, ‘गोरी नयना तोहार रत्नार’ जैसी रचनाओं ने सभागार में लोक-संस्कृति का रंग बिखेरा।

डॉ. मंजू मलकानी एवं नीता जोशी के निर्देशन में कथक नृत्य की विविध कोरियोग्राफियाँ प्रस्तुत की गईं — जैसे ‘कन्हैया तोरी मुरली बैरन भई’, ‘छाप तिलक’, ‘बसो मोरे नयनन में’, ‘ध्यान मूलम’, ‘मैं तो पिया से नैना लड़ा आई’, ‘डमरू हर कर बाजे’ आदि।

सांस्कृतिक पुनर्जागरण की नई पहल

अकादमी अध्यक्ष प्रो. जयंत खोत ने बताया कि 27 मई से 26 जून तक चली इन कार्यशालाओं में शास्त्रीय और लोक कलाओं की गुरु-शिष्य परंपरा के अंतर्गत गागर में सागर समाहित किया गया।
कार्यक्रम में उपस्थित विशिष्ट अतिथियों में प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम, पद्मश्री मालिनी अवस्थी, अकादमी की उपाध्यक्ष डॉ विभा सिंह, निदेशक डॉ. शोभित नाहर, पर्यटन सलाहकार जे. पी. सिंह सहित अन्य गणमान्य उपस्थित रहे।

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