
दैनिक इंडिया न्यूज़ नई दिल्ली।दिल्ली और फरीदाबाद की हाल की घटनाएँ साफ़ इशारा हैं कि अराजक समूह फिर से हमारे शहरों के भीतर साजिश रच रहे हैं। 2014 से पहले देश के अनेक शहरों में विस्फोट होते रहे। 2014 के बाद स्थिति बदल गई — वह दौर गया जब भारत केवल निंदा करने तक सीमित रहता था; अब वह घटनास्थल पर जाकर कार्रवाई करने में सक्षम है। इसके नतीजे भी दिखे: कश्मीर को छोड़कर बड़े पैमाने पर होने वाले धमाके काफी हद तक थम गए थे।
बृजलाल, सांसद एवं पूर्व डीजीपी, कहते हैं कि वे उत्तर प्रदेश में एटीएस के संस्थापक प्रमुख रहे हैं और यूपी-एसटीएफ व लॉ-एंड-ऑर्डर के भी प्रमुख पदों पर रहे हैं। उन्होंने अनेक ऐसी घटनाओं का प्रत्यक्ष अनभव किया है जहाँ सुरक्षा एजेंसियों ने साजिशों को मुंहतोड़ जवाब दिया। निस्संदेह, फरीदाबाद में विस्फोटक सामग्री बरामद होने की हालिया घटना बेहद चिंताजनक है — इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक की उपस्थिति सतर्क करने वाली बात है।
हमें यह समझना होगा कि इंडियन मुजाहिदीन कैसे बना। पाकिस्तानी आतंकी संगठनों ने देखा कि वे आतंकवादी भेजते हैं तो पकड़े जाते हैं और इससे पाकिस्तान की बदनामी होती है। तब विचार किया गया — क्यों न स्थानीय समूहों का उपयोग कराकर हम काम करवा लें? इसी सोच से इंडियन मुजाहिदीन का गठन हुआ और प्रशिक्षण मुजफ्फराबाद में लश्कर-ए-तैयबा के मुख्यालयों में होता था। इन समूहों ने जब सक्रिय होकर हिंसा शुरू की, तब हमारे शहरों में धमाके होने लगे — सरोजनी नगर, अहमदाबाद, मुंबई, बनारस, जयपुर, अयोध्या, लखनऊ और अन्य स्थानों पर। 29 अक्टूबर 2005 के सरोजनी नगर धमाके और उसके बाद की श्रृंखला अनेक लोगों की यादों में ताज़ा है।
तुरंत कार्रवाई में कई आतंकियों को पकड़ा गया और दंड भी हुआ। तब इस मुद्दे पर राजनीतिक बहस भी गर्म रही और कुछ हिस्सों में संदिग्ध सहानुभूति भी दिखाई गई। परंतु 2014 के बाद सुरक्षा नीतियों की सख्ती का असर साफ दिखाई दिया — बड़े हमलों में कमी आई। यही वजह है कि वर्तमान में मिले 2,900 किलोग्राम विस्फोटक और बरामद हथियारों की गंभीरता पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। यह संकेत देता है कि कहीं-कहीं बड़े पैमाने पर धमाकों की साजिश रची जा रही थी, पर समय रहते बरामदगी से योजनाएँ विफल हो गईं।
यदि यह एक फिदायीन हमला होता, तो कार में एक ही व्यक्ति काफी होता; पर बरामदगी में कार में तीन लोग पाए गए — इससे अनुमान बनता है कि साजिशकर्ता संभावित गिरफ्तारी या अभियान की विफलता के बाद भी हमला करने पर उतर आए। अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि दिल्ली-फरीदाबाद की घटना ऑपरेशन-सिंदूर से उपजी निराशा का असर भी हो सकती है — वे यह साबित करना चाहते हैं कि वे अभी भी देश में मौजूद हैं और अपना काम जारी रख सकते हैं। उन्होंने अपनी रणनीति बदली है और पढ़े-लिखे लोगों को अपने गिरोह में सम्मिलित किया है; अतः एजेंसियों को और कड़ा तथा चुस्त-दुरुस्त रहना होगा।
जांच चल रही है और उम्मीद है कि जल्द ही इस साजिश का पूरा पर्दाफाश होगा। भारत सरकार ऐसी चुनौतियों से निपटने में सक्षम है; सुरक्षा संस्थानों को पूरी तरह अलर्ट रहना चाहिए और सभी महत्वपूर्ण संस्थानों की सुरक्षा चाक-चौबंद कर देनी चाहिए। पिछले दशक में बने सुरक्षा जाल की वजह से ही हमारा विकास सुरक्षित रहा है — हमें उस सुरक्षा को खोने नहीं देना चाहिए।
ऑपरेशन-सिंदूर अभी जारी है। मैंने साढ़े सैंतालीस वर्षों तक वर्दी पहनी है; अपने अनुभव के आधार पर कहता हूँ कि जांच जिस गति से चल रही है, उसमें कुछ ही दिनों में सच्चाई सामने आ जाएगी और हमारी सुरक्षा-संस्था उन तत्वों की पहचान करके कार्रवाई करेगी। यह देश किसी भी तरह के धमाके को बर्दाश्त नहीं कर सकता; हिंसा के प्रति हमारी शून्य सहिष्णुता की नीति कायम रहेगी। जितने बादल छाए हैं, वे जल्द ही छंट जाएंगे।
