दैनिक इंडिया न्यूज़,लखनऊ, 27 अक्टूबर 2024 मनकामेश्वर मंदिर में आयोजित ‘मन की बात’ कार्यक्रम में राष्ट्रीय सनातन महासंघ के अध्यक्ष जितेंद्र प्रताप सिंह के विचारों ने वैश्विक स्तर पर सनातन संस्कृति के बढ़ते प्रभाव और उसके भविष्य पर एक महत्वपूर्ण चर्चा छेड़ी। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विदेशों में हो रहे भारतीय सांस्कृतिक प्रचार-प्रसार की सराहना की और इसे सभी भारतीयों के लिए गर्व का विषय बताया।
प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका, इंग्लैंड, मॉरीशस, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे देशों में सनातन धर्म के प्रचार हेतु जो प्रयास किए हैं, उनसे यह स्पष्ट होता है कि विदेशों में भी भारतीय संस्कृति का मान बढ़ रहा है। न्यूयॉर्क, लंदन और मॉरीशस जैसे शहरों में रामलीला और कृष्ण लीला जैसे धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन न केवल भारतीय प्रवासियों बल्कि विदेशी नागरिकों में भी प्रसिद्ध हो रहे हैं। इस घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि सनातन धर्म का संदेश अब सीमाओं को पार कर चुका है और उसकी जड़ें वैश्विक मंच पर मजबूती से स्थापित हो रही हैं।
विदेशों में रामलीला और कृष्ण भक्ति के भव्य आयोजन आज सनातन धर्म की अखंडता और उसके प्रति श्रद्धा को दर्शाते हैं। थाईलैंड, इंडोनेशिया और फिजी जैसे देशों में भारतीय संस्कृति का गहरा प्रभाव इस बात का प्रमाण है कि सनातन धर्म की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। इन आयोजनों में विदेशी नागरिक भी हिस्सा ले रहे हैं, जो संस्कृति के प्रति वैश्विक आकर्षण और सम्मान को दर्शाता है।
हालांकि, जितेंद्र प्रताप सिंह का कहना है कि यह समय भारत के लिए आत्ममंथन का है। जहां एक ओर विदेशों में लोग भारतीय संस्कृति और मूल्यों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारत में कुछ लोग अपनी जड़ों से दूर होते दिख रहे हैं। इसे बदलने की आवश्यकता है। ऐसे समय में, जब हमारी संस्कृति विदेशों में मान्यता प्राप्त कर रही है, भारतीयों का अपने धर्म और परंपराओं से दूर होना चिंताजनक है। यह हम सभी के लिए एक ऐसा विषय है, जिस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है।
विदेशों में बढ़ती सनातन धर्म की लोकप्रियता हमारे लिए एक प्रेरणा स्रोत है। जितेंद्र प्रताप सिंह का आह्वान भारतीय समाज के लिए एक यादगार संदेश है कि यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं बल्कि हर भारतीय की है कि वह अपनी संस्कृति का सम्मान करे और उसे संजोए।
अंततः, जिस तरह विदेशों में भारतीय मूल के लोग अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं, उसी तरह भारत में भी सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने के प्रयास जरूरी हैं। हमें अपनी पीढ़ियों को अपनी समृद्ध परंपराओं से जोड़ना होगा ताकि यह पहचान और अधिक मजबूत हो। यही भारत का भविष्य सुरक्षित रखने और इसे विश्व मंच पर गौरव दिलाने का एकमात्र उपाय है।