सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: पैतृक और विरासत में मिली संपत्ति के अधिकारों पर स्पष्टता

नई दिल्ली, 24 दिसंबर 2024: सुप्रीम कोर्ट ने पैतृक संपत्ति और विरासत में मिली संपत्ति के बीच के अंतर को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जो संपत्ति विवादों को सुलझाने के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करेगा। यह निर्णय भारत में संपत्ति के स्वामित्व और उत्तराधिकार के मुद्दों पर कानूनी स्पष्टता लाने में मदद करेगा।

मामले का विवरण

यह विवाद दिल्ली के मुंडका क्षेत्र में स्थित एक संपत्ति को लेकर था। श्री बीरबल सैनी नामक व्यक्ति ने दावा किया कि संपत्ति उनकी पैतृक संपत्ति है और इसे बेचना अन्य उत्तराधिकारियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है। दूसरी ओर, सत्यवती नामक महिला ने दावा किया कि संपत्ति वसीयत के माध्यम से उनके स्वामित्व में आई है, इसलिए यह पैतृक संपत्ति नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और हरीश साल्वे ने अपनी दलीलें पेश कीं।
अदालत ने फैसला सुनाते हुए निम्नलिखित बिंदुओं को स्पष्ट किया:

  1. पैतृक संपत्ति:

यह वह संपत्ति है जो कम से कम चार पीढ़ियों से बिना विभाजन के परिवार में चली आ रही हो।

ऐसी संपत्ति पर सभी उत्तराधिकारियों का समान अधिकार होता है।

  1. विरासत में मिली संपत्ति:

यदि संपत्ति किसी व्यक्ति को वसीयत या उत्तराधिकार के माध्यम से प्राप्त होती है, तो वह पैतृक संपत्ति नहीं मानी जाएगी।

इस पर केवल प्राप्तकर्ता का व्यक्तिगत अधिकार होगा।

फैसले के कानूनी पहलू

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 और धारा 8 का उल्लेख किया।

धारा 6: पैतृक संपत्ति पर उत्तराधिकारियों का सामूहिक अधिकार सुनिश्चित करती है।

धारा 8: विरासत में मिली संपत्ति पर व्यक्तिगत अधिकार की व्यवस्था करती है।

फैसले का महत्व

इस फैसले से कई महत्वपूर्ण बातें स्पष्ट हुई हैं:

संपत्ति के प्रकार का निर्धारण केवल कानूनी तथ्यों के आधार पर किया जाएगा।

पैतृक और विरासत में मिली संपत्ति के बीच अंतर अब कानूनी रूप से स्पष्ट हो गया है।

यह फैसला संपत्ति विवादों में अनावश्यक उलझनों को कम करेगा।

कानूनी विशेषज्ञों की राय

वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, “यह निर्णय संपत्ति विवादों के लिए एक मील का पत्थर साबित होगा और इससे कानून में स्पष्टता आएगी।”
हरीश साल्वे ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला समानता और न्याय के सिद्धांतों को मजबूत करता है।”

अदालत का संदेश आम नागरिकों के लिए

यह फैसला आम आदमी के लिए भी महत्वपूर्ण है। यदि कोई संपत्ति पैतृक है, तो सभी उत्तराधिकारियों का उस पर समान अधिकार होगा। वहीं, वसीयत के आधार पर प्राप्त संपत्ति पर केवल उस व्यक्ति का अधिकार होगा, जिसे वसीयत की गई है।

यह फैसला न केवल कानूनी विवादों को सुलझाने में मदद करेगा, बल्कि संपत्ति के अधिकारों को लेकर जनता में जागरूकता भी बढ़ाएगा। यह न्यायपालिका की भूमिका को और अधिक पारदर्शी और मजबूत बनाने में मदद करेगा।

इस ऐतिहासिक फैसले का लाभ सभी वर्गों को मिलेगा, चाहे वह आम नागरिक हों, वकील हों या न्यायपालिका।

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