हल्दी में करक्यूमिन बनने में लगते हैं पूरे 24 महीने: वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. टी. पी. तिवारी

Dr TP Tiwari
Lucknow

स्वस्थ भारत अभियान’ में डॉ. नेचर जैसे उत्पाद बनेंगे क्रांतिकारी सहयोगी

दैनिक इंडिया न्यूज़, लखनऊ, उत्तर प्रदेश । देश में औषधीय कृषि और आयुर्वेदिक उत्पादों की बढ़ती मांग के बीच हल्दी की गुणवत्ता को लेकर एक अत्यंत महत्वपूर्ण खुलासा वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. टी. पी. तिवारी ने राजधानी लखनऊ में आयोजित एक कृषि विज्ञान व मानव स्वास्थ्य संगोष्ठी में किया। उन्होंने बताया कि हल्दी में पाए जाने वाले औषधीय तत्व करक्यूमिन (Curcumin) के पूर्ण निर्माण में कम से कम 24 महीने का समय लगता है। यह तथ्य हल्दी उत्पादक किसानों, आयुर्वेदिक उद्यमियों और चिकित्सा क्षेत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

डॉ. तिवारी ने स्पष्ट किया कि आज अधिकांश किसान हल्दी की कटाई केवल 7 से 9 महीने में कर लेते हैं, जिससे उसमें करक्यूमिन की मात्रा अपरिपक्व रह जाती है और औषधीय प्रभाव कमजोर पड़ जाता है। उन्होंने कहा, “जल्दबाज़ी में की गई कटाई से न केवल हल्दी की गुणवत्ता घटती है, बल्कि उपभोक्ताओं को अपेक्षित औषधीय लाभ भी नहीं मिल पाते।”

डॉ. तिवारी ने इस संदर्भ में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) और राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (NMPB) की रिसर्च का हवाला दिया, जिसमें यह पुष्टि हुई है कि हल्दी में करक्यूमिन का उच्चतम स्तर तभी आता है जब पौधे को 20 से 24 महीने तक भूमि में प्राकृतिक रूप से परिपक्व होने दिया जाए। इन संस्थानों के अनुसार, हल्दी जैसे औषधीय पौधों की गुणवत्ता केवल जैविक खेती से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान और समयबद्ध परिपक्वता से सुनिश्चित होती है।

उन्होंने बताया कि परिपक्व हल्दी में करक्यूमिन की औषधीय शक्ति इतनी प्रबल होती है कि यह सूजन, गठिया, हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर और अल्ज़ाइमर जैसे रोगों के प्रबंधन में सहायक सिद्ध होती है। इसके अलावा यह प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त करता है और शरीर को विषाक्त तत्वों से मुक्त करने में मदद करता है।

इसी संगोष्ठी में उन्होंने ‘डॉ. नेचर’ जैसे प्राकृतिक उत्पाद ब्रांड की सराहना करते हुए कहा, “स्वस्थ भारत अभियान में ऐसे ब्रांड अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वैज्ञानिक अनुसंधान आधारित, गुणवत्तापूर्ण और जैविक रूप से प्रमाणित उत्पाद ही देश की सेहत को नई दिशा दे सकते हैं। डॉ. नेचर जैसे ब्रांड इस दिशा में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।”

डॉ. तिवारी ने कहा कि यदि भारत प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेदिक विज्ञान में वैश्विक नेतृत्व चाहता है, तो उसे केवल उत्पादन नहीं बल्कि गुणवत्ता और परिपक्वता को प्राथमिकता देनी होगी। उन्होंने किसानों और उद्यमियों से आग्रह किया कि वे बाज़ार की तात्कालिक मांग से अधिक धैर्य, अनुसंधान और प्राकृतिक प्रक्रिया को महत्व दें।

इस अवसर पर कई कृषिशास्त्रियों और उद्योग विशेषज्ञों ने भी इस बात पर सहमति जताई कि हल्दी भारत का “गोल्डन हीलर” (Golden Healer) बन सकता है, यदि उसकी वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा दिया जाए और करक्यूमिन जैसे औषधीय यौगिकों की पूर्ण परिपक्वता को प्राथमिकता दी जाए।

यह जानकारी न केवल किसानों को उनके उत्पाद की गुणवत्ता सुधारने के लिए प्रेरित करेगी, बल्कि भारत को विश्व आयुर्वेदिक मानचित्र पर नेतृत्व की भूमिका में स्थापित कर सकती है।

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