“हिंदू बेटियों को प्रेमजाल में फँसाकर मतांतरण — कोर्ट ने लव जिहाद को बताया राष्ट्र की जड़ों को खोदने वाली साजिश”

हरियाणा की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने दोषी शहबाज खान को सुनाई 7 साल की सजा, मजहबी एजेंडे पर सख़्त टिप्पणी

दैनिक इंडिया संवाददाता , यमुनानगर नई दिल्ली।हरियाणा की एक फास्ट ट्रैक अदालत ने लव जिहाद के एक मामले में कड़ा फैसला सुनाते हुए आरोपी मुस्लिम युवक शहबाज खान उर्फ आशु को 7 साल की कठोर कैद की सजा दी है। अदालत ने इसे “प्रेम नहीं, मजहबी घुसपैठ का सुनियोजित प्रयास” बताया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह चलन देश की सांस्कृतिक नींव और सामाजिक संतुलन को नष्ट करने की दिशा में एक गहरी साजिश है।

🧾 कोर्ट की टिप्पणी: “सच से मुँह नहीं मोड़ सकते”

फैसला सुनाते हुए न्यायधीश रंजना अग्रवाल ने कहा,

“हमारी बेटियों को निशाना बनाकर धर्मांतरण करवाने की साजिश एक सामाजिक कैंसर बन चुकी है। अगर इसे रोका नहीं गया, तो यह भारत के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर देगा। यह सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा पर हमला है।”

पूरा मामला: कैसे शिकार बनी मासूम नाबालिग

18 नवंबर 2024 की शाम यमुनानगर निवासी एक नाबालिग लड़की डरी-सहमी हालत में घर पहुंची

परिजनों ने पूछताछ की तो खुलासा हुआ कि शहबाज खान उर्फ आशु, जो एक मुस्लिम युवक है, लगातार पीछा कर रहा था, दोस्ती के लिए दबाव बना रहा था और सार्वजनिक रूप से लड़की का हाथ पकड़ चुका था।

19 नवंबर को पीड़िता के पिता ने शहर थाना, यमुनानगर में रिपोर्ट दर्ज कराई

10 जनवरी 2025 से फास्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमा शुरू हुआ और मात्र 6 माह में 17 गवाहों की सुनवाई के बाद 17 जुलाई को दोष सिद्ध कर दिया गया।

🧠 आरोपी की मानसिकता: मजहबी साजिश की कबूली स्वीकारोक्ति

पुलिस जांच में सामने आया कि शहबाज पर 2019 में धार्मिक भावना भड़काने का केस दर्ज हो चुका था। उसी समय उसने यह तय किया कि वह हिंदू लड़कियों को फँसाकर इस्लाम में मतांतरित करने का “काम” करेगा।

उसने सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) के हमीदा गाँव में रह रहे अपने रिश्तेदारों से मिलकर एक नाबालिग मुस्लिम लड़के को लड़की के पीछे लगाने का षड्यंत्र रचा।

इस योजना का उद्देश्य केवल एक लड़की का अपहरण नहीं, बल्कि मजहबी विस्तारवाद था।

📚 ‘लव जिहाद’ शब्द भले कानून में परिभाषित न हो, लेकिन सच्चाई निर्विवाद

मुकदमे के दौरान एडवोकेट गुलदेव टंडन ने कोर्ट को बताया कि भले ही ‘लव जिहाद’ शब्द भारतीय दंड संहिता (BNS) या POCSO कानून में नहीं है, लेकिन जमीनी सच्चाई और सामाजिक खतरा बन चुका है। कोर्ट ने इसे राजनीतिक विमर्श नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा गंभीर विषय माना।

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