शादी के बाद भी अब संबंध बनाना जुर्म नहीं
ब्यूरो डीडी इंडिया
सुप्रीम कोर्ट ने अडल्टरी कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया। यानी अब कोई शादीशुदा महिला अगर किसी गैर-मर्द से संबंध बनाती है, तो महिला का पति उस गैर-मर्द के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं करा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने अडल्टरी कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया। यानी अब कोई शादीशुदा महिला अगर किसी गैर-मर्द से संबंध बनाती है, तो महिला का पति उस गैर-मर्द के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं करा सकता। हां, इस आधार पर पति तलाक जरूर ले सकता है। क्या था कानून? क्या थीं कानून की खामियां और अब क्या स्थिति रहेगी,
पति, पत्नी और वो की कहानी को समझने के लिए सबसे पहले तीन काल्पनिक कैरक्टर को सामने रखते हैं। विजय, रिया और संजीव (तीनों काल्पनिक नाम) ये तीनों पति, पत्नी और वो के रोल में हैं। विजय और रिया की शादी हो चुकी है। शादी के बाद सबकुछ ठीक चल रहा था। इसी बीच रिया की जिंदगी में संजीव आता है। संजीव उसके साथ दफ्तर में काम करता था। दोनों में पहले दोस्ती थी। दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनों में संबंध भी बने। इस अफेयर का पता रिया के पति को चलता है। वह इस बारे में ऐतराज जताता है, लेकिन रिया नहीं मानती।
बदले हुए कानून के मुताबिक, विजय के पास अब एक ही चारा बचता है कि वह कोर्ट से रिया के खिलाफ तलाक की अर्जी दाखिल करे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले की स्थिति में रिया के दोस्त संजीव के खिलाफ विजय अडल्टरी का आरोप लगाकर केस कर सकता था और दोषी पाए जाने पर संजीव को पांच साल तक की सजा हो सकती थी। लेकिन मौजूदा स्थिति में संजीव के खिलाफ केस नहीं बनेगा। रिया के पति के पास सिविल उपचार यानी तलाक का ही रास्ता होगा।
यहां विजय, रिया और मोहिनी (तीनों का काल्पनिक नाम) का कैरक्टर हैं। विजय और रिया की शादीशुदा जिंदगी चल रही थी। इसी दौरान विजय की जिंदगी में मोहिनी (अविवाहित) आती है। मोहिनी और विजय एक ही दफ्तर में हैं। दोनों की दोस्ती प्यार में बदल जाती है और दोनों में अंतरंग संबंध भी बनते हैं। इस अफेयर के बारे में विजय की पत्नी रिया को पता चलता है। रिया कानून बदलने से पहले की स्थिति में भी मोहिनी या अपने पति को आपराधिक केस दर्ज नहीं करा पाती। अब की स्थिति में भी नहीं करा पाएगी। वह पहले भी इस आधार पर पति से तलाक ले सकती थी। अब भी तलाक ले सकती है।
जायदाद नहीं है पत्नी
अडल्टरी कानून को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार देते हुए खारिज किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अडल्टरी कानून महिला को पति का गुलाम और संपत्ति की तरह बनाता है। कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने एक मत से फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह धारा मनमाना है और समानता के अधिकार का हनन करती है। मौजूदा कानून महिलाओं को पसंद करने के अधिकार से वंचित करता है, लेकिन शादी से बाहर संबंध को तलाक का आधार माना गया है। इस कारण अगर पार्टनर खुदकुशी कर लेता है, तो सबूतों के आधार पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दूसरे पार्टनर पर दर्ज हो सकता है।
क्या था अडल्टरी कानून?
आईपीसी की धारा-497 में अडल्टरी कानून के बारे में व्याख्या की गई थी। एडवोकेट अमन सरीन बताते हैं कि आईपीसी की धारा-497 के तहत प्रावधान था कि अगर कोई शख्स किसी शादीशुदा महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाता है, तो ऐसे मामले में उक्त शख्स के खिलाफ अडल्टरी मामले की शिकायत की जा सकती है। ऐसे मामले में अगर महिला की सहमति न हो तो फिर मामला सीधे रेप का हो जाता है लेकिन कानूनी पेच वहां है जहां महिला की सहमति हो। यानी शादीशुदा महिला की सहमति से अगर कोई गैर-मर्द उससे शारीरिक संबंध बनाता है, तो महिला का पति ऐसे मामले में शिकायती हो सकता है। पति के अलावा कोई शिकायती नहीं हो सकता। पति की शिकायत पर महिला के साथ संबंध बनाने वाले के खिलाफ आईपीसी की धारा-497 के तहत केस दर्ज किए जाने का प्रावधान है। गौर करने वाली बात यह है कि अडल्टरी मामले में शिकायती सिर्फ पति हो सकता था, पत्नी नहीं। कानूनी जानकार बताते हैं कि पति द्वारा इस तरह की हरकत किए जाने के आधार पर महिला अपने पति के खिलाफ इस आधार पर तलाक ले सकती है लेकिन केस दर्ज नहीं करा सकती।
कहां होती थी शिकायत?
कानूनी जानकार व क्रिमिनल लॉयर अजय दिग्पाल के मुताबिक, आईपीसी की धारा-497 के तहत सीधे थाने में आरोपी के खिलाफ केस दर्ज नहीं कराया जा सकता था, बल्कि ऐसे मामले में इलाका मैजिस्ट्रेट के सामने कंप्लेंट केस दायर की जाती थी और आरोपी के खिलाफ संबंधित धाराओं के तहत केस दर्ज करने की अर्जी दाखिल की जाती थी। इस मामले में अगर आरोपी दोषी पाया जाता था तो उसे पांच साल कैद की सजा हो सकती थी। चूंकि यह मामला नॉन-कॉग्नेजेबल था इसलिए इस मामले में सीधे थाने में शिकायत नहीं होती थी, बल्कि कोर्ट में कंप्लेंट केस दायर करना होता था। यह मामला जमानती था और अगर शिकायती और आरोपी के बीच समझौता हो जाए तो समझौते के आधार पर केस वापस लेने की गुहार लगाई जा सकती थी।
केंद्र की दलीलें ठुकराईं
केंद्र सरकार ने कहा कि अडल्टरी कानून के तहत जो कानूनी प्रावधान हैं, उनसे शादी जैसी संस्था सुरक्षित रहती है। केंद्र सरकार ने उस याचिका को खारिज करने की मांग की, जिसमें धारा-497 के वैधता को चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट को केंद्र ने बताया कि इस मुद्दे को लॉ कमिशन देख रही है। जिस प्रावधान को चुनौती दी गई है, उसे विधायिका ने विवेक का इस्तेमाल कर बनाया है ताकि शादी जैसी संस्था बचाई जा सके। केंद्र का तर्क था कि कानून भारतीय समाज, संस्कृति और उसके तानेबाने को देखकर बनाया गया है। इसको जेंडर न्यूट्रल बनाते हुए अगर महिलाओं पर भी अडल्टरी का केस चलाया जाएगा, तो शादी के बंधन कमजोर होंगे। मालीमथ कमिटी के रिपोर्ट में कहा गया कि मकसद है शादी जैसी संस्था को बचाना।
पहले सिर्फ पति हो सकता था शिकायती, पत्नी नहीं
महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार के मामले में कई कानून बनाए गए। इसके तहत 2013 में एंटी-रेप लॉ भी बनाया गया है। महिलाओं को प्रोटेक्ट करने के लिए दूसरे कानूनी प्रावधान भी हैं। लेकिन अडल्टरी (अवैध संबंध) मामले में महिला को शिकायत का अधिकार नहीं था यानी अडल्टरी के मामले में सिर्फ पति शिकायती हो सकता था। एडवोकेट करण सिंह बताते हैं कि अगर किसी महिला का पति किसी दूसरी महिला के साथ संबंध बनाए और इस दूसरी महिला की सहमति हो, तो फिर ऐसे मामले में महिला अपने पति या फिर उक्त दूसरी महिला के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज नहीं करा सकती। कानूनी तौर पर अडल्टरी के मामले में शिकायती सिर्फ पति हो सकता है, पत्नी नहीं। यानी महिला के पति या उससे संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ कोई क्रिमिनल केस दर्ज किए जाने का कोई प्रावधान नहीं था। दूसरा झोल यह था कि महिला के पति की मंजूरी हो और तब महिला किसी और से संबंध बनाए, तो वह अपराध नहीं था। साथ ही पति सिर्फ दूसरे मर्द पर केस दर्ज करा सकता था, अपनी पत्नी पर नहीं।
पहले महिला को यहां छूट थी
आईपीसी की धारा-497 के तहत जो कानूनी प्रावधान है, वह पुरुषों के साथ भेदभाव वाला है। अगर कोई शादीशुदा पुरुष किसी और शादीशुदा महिला के साथ उसकी सहमति से संबंध बनाता है, तो ऐसे संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ उक्त महिला का पति अडल्टरी का केस दर्ज करा सकता है। लेकिन संबंध बनाने वाली महिला के खिलाफ मामला दर्ज करने का प्रावधान नहीं है। पहली नजर में धारा-497 संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है। अगर दोनों आपसी रजामंदी से संबंध बनाते हैं, तो महिला को उस दायित्व से कैसे छूट दी जा सकती है? याचिका में कहा गया था कि यह धारा पुरुष के खिलाफ भेदभाव वाली है। यह संविधान की धारा-14 (समानता), 15 और 21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन करती है। यह कानून जेंडर जस्टिस के खिलाफ है। इससे समानता के अधिकार पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
गुलाम नहीं महिलाएं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आदर्श स्थिति तो यही है कि पति और पत्नी एक-दूसरे के प्रति वफा रखें। लेकिन शादी के बाद महिला को गुलाम या जागीर नहीं समझता जा सकता। उसकी सेक्शुअल आजादी शादी के बाद भी बनी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्शुअल चॉइस को थोपा नहीं जा सकता। सेक्शुअल चॉइस सबका हक है। अडल्टरी कानून को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को इस कानून के जरिये पति की प्रॉपर्टी और गुलाम माना गया है।
कैद के दायरे से बाहर हुई बेवफाई
दूसरी स्थिति में बदलाव हुआ है। अगर कोई शादीशुदा महिला किसी गैर-मर्द से संबंध बनाती है और इसके लिए उसकी मर्जी है तो महिला का पति अब उस गैर-मर्द के खिलाफ अडल्टरी का केस दर्ज नहीं करा सकता। अब पति चाहे तो अपनी पत्नी के खिलाफ अडल्टरी आधार पर तलाक ले सकता है। यानी कि पति और पत्नी दोनों के लिए बेवफाई तलाक का आधार भर रह गया है, यह आपराधिक मामला नहीं रहा। अगर शादी में रहते हुए पति या पत्नी दोनों ने किसी और से संबंध बनाए, तो अडल्टरी का केस तो नहीं बनेगा लेकिन इस संबंध को लेकर लाइफ पार्टनर को अगर ऐतराज हुआ तो फिर मामला कोर्ट तक पहुंच सकता है। बेवफाई के आधार पर पति या पत्नी अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए तलाक की अर्जी दाखिल कर सकते हैं। यह मामला अब आपराधिक नहीं बल्कि दीवानी मामला बनकर रह गया है।
पहले भी अडल्टरी के आधार पर पति या पत्नी दोनों की तरफ से एक-दूसरे के खिलाफ तलाक की अर्जी दाखिल होती रही है, लेकिन तब दीवानी के साथ-साथ फौजदारी मुकदमा भी दर्ज किए जाने का प्रावधान था, लेकिन अब चूंकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि यह मामला निजी पारिवारिक मामला है तो ऐसे में पति या पत्नी अब अडल्टरी को आधार बनाकर तलाक ले सकते हैं।