गुप्त नवरात्री मे चतुर्थ दिवस माँ भुवनेश्वरी के एकाक्षरी मंत्र की साधना विधि

माँ भुवनेश्वरी की आराधना हेतु सर्वोत्तम दिवस है गुत नवरात्री अथवा भुवनेश्वरी महाविद्या की जयंती तिथि। दस महाविद्याओं में से पंचम महाविद्या भगवती भुवनेश्वरी का भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को प्रादुर्भाव हुआ माना जाता है। भुवनेश्वरी महाविद्या का स्वरूप सौम्य है और इनकी अंगकान्ति अरुण है। भक्तों को अभय और समस्त सिद्धियाँ प्रदान करना इनका स्वाभाविक गुण है। वास्तव में मूल प्रकृति का ही दूसरा नाम भुवनेश्वरी है। दशमहाविद्याएँ ही दस सोपान हैं। काली तत्व से निर्गत होकर कमला तत्व तक की दस स्थितियाँ हैं, जिनसे अव्यक्त भुवनेश्वरी व्यक्त होकर ब्रह्माण्ड का रूप धारण कर सकती हैं तथा प्रलय में कमला से अर्थात् व्यक्त जगत से क्रमशः लय होकर कालीरूप में मूलप्रकृति बन जाती हैं। इसीलिये भगवती भुवनेश्वरी को काल की जन्मदात्री भी कहा जाता है।

ईश्वररात्रि में जब ईश्वर के जगद्रूप व्यवहार का लोप हो जाता है, उस समय केवल ब्रह्म अपनी अव्यक्त प्रकृति के साथ शेष रहता है, तब उस ईश्वररात्रि की अधिष्ठात्री देवी भुवनेश्वरी कहलाती हैं। इनके मुख्य आयुध अंकुश और पाश हैं। अंकुश नियंत्रण का प्रतीक है और पाश राग अथवा आसक्ति का प्रतीक है। इस प्रकार सर्वस्वरूपा मूल प्रकृति ही भुवनेश्वरी हैं, जो विश्व को वमन करने के कारण वामा, शिवमयी होने से ज्येष्ठा और कर्म-नियंत्रण, फलदान करने व जीवों को दण्डित करने के कारण रौद्री कही जाती हैं। भगवान् शिव का वाम भाग ही भुवनेश्वरी कहलाता है।

भुवनेश्वरी के संग से ही भुवनेश्वर सदाशिव को सर्वेश होने की योग्यता प्राप्त होती है। महानिर्वाणतन्त्र के अनुसार समस्त महाविद्याएँ भगवती भुवनेश्वरी की सेवा में सदा संलग्न रहती है। सात करोड़ महामन्त्र इनकी सदा ही आराधना किया करते हैं। बृहन्नीलतन्त्र व पुराणों के अनुसार प्रकारान्तर से काली और भुवनेशी दोनों में अभेद है अर्थात् कोई अन्तर नहीं है। अव्यक्त प्रकृति भुवनेश्वरी ही रक्तवर्णा काली है।

देवीभागवत के अनुसार दुर्गम नामक दैत्य के अत्याचार से संतप्त होकर देवताओं और ब्राह्मणों ने हिमालय पर सर्वकारण स्वरूपा भगवती भुवनेश्वरी की ही आराधना की थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवती भुवनेश्वरी तत्काल प्रकट हुईं। वे भुवनेश्वरी महाविद्या अपने हाथों में बाण, कमल-पुष्प तथा शाक-मूल लिये हुए थीं। तब भुवनेश्वरी माँ ने अपने नेत्रों से अश्रुजल की सहस्रों धाराएँ प्रकट कीं। इस जल से भूमण्डल के सभी प्राणी तृप्त हो गये। समुद्रों तथा सरिताओं में अगाध जल भर गया और समस्त औषधियाँ सिंच गयीं। अपने हाथ में लिये गये शाकों और फल-मूल से प्राणियों का पोषण करने के कारण भगवती भुवनेश्वरी ही ‘शताक्षी’ तथा ‘शाकम्भरी‘ नाम से विख्यात हुईं। इन्होंने ही दुर्गमासुर को युद्ध में मारकर उसके द्वारा अपहृत वेदों को देवताओं को पुनः सौंपा था। उसके बाद इन भगवती भुवनेश्वरी का एक नाम दुर्गा प्रसिद्ध हुआ।

भगवती भुवनेश्वरी की उपासना पुत्र प्राप्ति के लिए विशेष फलप्रद होती है। इनके बहुत से स्तोत्र हैं जो प्रायः दुर्लभ ही हैं। हमने इस ब्लोग में भुवनेश्वरी त्रैलोक्य मंगल कवच प्रकाशित किया है। रुद्रयामल तंत्र में इनका कवच, नीलसरस्वतीतन्त्र में इनका हृदय तथा महातन्त्रार्णव में इनका भुवनेश्वरी सहस्रनाम स्तोत्र संकलित है।

भुवनेश्वरी मन्त्र

इन देवी के कई मंत्र हैं जो क्लिष्ट होने के साथ गुरुगम्य भी हैं पर एक सरल सा एकाक्षरी बीज मंत्र है माँ भुवनेश्वरी का

“ह्रीं”

इसका मन्दिर में भगवान के सम्मुख बैठकर 5 मिनट, 10 या 15 मिनट मन ही मन जप करना शुभ फलों व माता भुवनेशी की कृपा को दिलाने वाला होता है।

ह्रीं को माया बीज भी कहा जाता है, यह अति सरल मन्त्र है। इसमें ह् का अर्थ है शिव, र् का अर्थ है प्रकृति, नाद का अर्थ है विश्वमाता एवं बिंदु का अर्थ दुखहरण है। इस प्रकार इस मायाबीज का अर्थ है शिव सहित विश्वमाता प्रकृति आद्याशक्ति मेरे दुखों को दूर करे।’

भुवनेश्वरी एकाक्षरी मन्त्र जप विधि

विनियोग : एकाक्षरी मन्त्र के जप से पूर्व यह श्लोक पढ़कर आचमनी से भूमि पर जल छोड़ दे :

ओऽम् अस्य श्री भुवनेश्वरी एकाक्षर मन्त्रस्य शक्तिऋषिः गायत्रीः छन्दः, भुवनेश्वरी देवताः, हं बीजं, ईं शक्तिः, रं कीलकं, चतुर्वर्गसिद्धयर्थे जपे विनियोगः

(इस एकाक्षर मन्त्र के “शक्ति” ऋषि हैं, छन्द गायत्री, भुवनेश्वरी देवता हैं | हं बीज, ईं शक्ति व कीलक ‘रं’ है और विनियोग ‘चतुर्वर्गसिद्धये’ है अर्थात धर्म अर्थ काम मोक्ष चारों पुरुषार्थ इस मन्त्र द्वारा प्राप्त होते हैं।)

ऋष्यादिन्यास : ॐ शक्तिऋषये नमः शिरसि ॥

(सिर का स्पर्श करे) गायत्री छन्दसे नमः मुखे ।।

भुवनेश्वरी देवतायै नमः हृदिः ।।

(मुख का स्पर्श करे ) ईं शक्तये नमः पादयोः ।।

( हृदय को स्पर्श करे ) हं बीजाय नमः गुह्ये ॥

(बायें हाथ से नितम्ब स्पर्श करे )

( पैरों को स्पर्श करे )

रं कीलकाय नमः नाभौ ।।

( नाभि स्पर्श करे )

चतुर्वर्ग-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे ।।

(सभी अंगों को छुए)

इसके बाद करन्यास, षडंगन्यास ‘ह्रां ह्रीं ह्रूं हैं ह्रौं ह्रः’ इत्यादि से करे

करन्यास :

ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।

(दोनों हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अँगूठों का स्पर्श करे )

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः । (दोनों हाथों के अँगूठों से दोनों तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श करे )

ॐ हूं मध्यमाभ्यां नमः ।

(अँगूठों से मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श करे )

ॐ हैं अनामिकाभ्यां नमः ।

(अनामिका अँगुलियों का स्पर्श करे) ॐ ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः

(कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श करे )

ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

(हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श करे )

हृदयादि षडंगन्यास ॐ ह्रां हृदयाय नमः ।

(दाहिने हाथ की पाँचों अंगुलियों से हृदय का स्पर्श)

ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा ।

(दाहिने हाथ की चार अंगुलियों से सिर का स्पर्श)

ॐ हूं शिखायै वषट् ।

(दाहिने हाथ के अंगूठे से शिखास्थान का स्पर्श)

ॐ हैं कवचाय हुम्।

(दाहिने हाथ की अँगुलियों से बायें कंधे का और बायें हाथ की अँगुलियों से दाहिने कंधे का एक साथ स्पर्श)

ॐ ह्रौं नेत्र-त्रयाय वौषट् ।

(दाहिने हाथ की अनामिका व तर्जनी अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों नेत्रों का और मध्यमा अंगुली के अग्रभाग से ललाट के मध्यभाग का स्पर्श)

ॐ ह्रः अस्त्राय फट् ।

(यह वाक्य पढ़कर दाहिने हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर से पीछे की ओर ले जाकर दाहिनी ओर से आगे की ओर ले आयें और तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें)

ध्यान: भगवती भुवनेश्वरी का ध्यान इस प्रकार है बालरवि-द्युतिमिन्दु- किरीटां तुंगकुचां नयनत्रययुक्ताम् ।

स्मेरमुखीं वरदाङ्ङ्कुश-पाशाभीति-करां प्रभजे भुवनेशीम् ॥

इसका भाव है कि “मैं भुवनेश्वरी देवी जी का ध्यान करता हूँ जिनके श्रीअंगों की आभा प्रभातकाल के सूर्य के समान है और मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है। वे तुंगकुचा और तीन नेत्रों से युक्त देवी हैं। उनके मुख पर मुस्कान की छटा छायी रहती है और हाथों में वरद, अङ्कुश, पाश एवं अभय मुद्रा शोभा पाते हैं।”

पूजन

भुवनेश्वरी महाविद्या यन्त्र, भुवनेश्वरी देवी जी के चित्र पर या फिर श्री यन्त्र पर निम्न प्रकार से पूजन करे :

  1. ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः लं पृथिव्यात्मकं गंधं परिकल्पयामि ( देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं पृथ्वीरूप गन्ध (चन्दन) आपको अर्पित करता हूँ )
  2. ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि

(देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं आकाशरूप पुष्प आपको अर्पित करता हूँ )

  1. ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि।

( देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं वायु में धूप आपको प्रदान करता हूँ ) के रूप

  1. ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि।

( देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है। मैं अग्नि के रूप में दीपक आपको प्रदान करता हूँ)

  1. ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि

(देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं अमृत के समान नैवेद्य आपको निवेदन करता हूँ )

  1. ॐ ह्रीं भुवनेश्वरी देव्यै नमः सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं मनसा परिकल्प्य समर्पयामि।

( हे देवि भुवनेश्वरी आपको नमस्कार है! मैं सर्वात्मक रूप में संसार के सभी उपचारों को आपके चरणों में समर्पित करता हूँ) इसके बाद जप प्रारम्भ करे।

पुरश्चरण विधि

उपरोक्त मन्त्र के पुरश्चरण के लिये 32 लाख बार मन्त्र जप करने का विधान है। साथ ही जप का दशांश हवन (तीन लाख बीस हजार बार) त्रिमधु मिलाकर अष्टद्रव्यों से करे । त्रिमधु होता है : घृत, मधु, शर्करा । अष्ट-द्रव्य आठ हैं : 1. अश्वत्थ (पीपल), 2. यज्ञोदुम्बर (गूलर), 3. पाकड़, 4. वट, 5. तिल, 6. सफ़ेद सरसों, 7. पायस (दूध / खीर), 8. घृत।

एक अन्य मत से अष्ट द्रव्य ये भी हैं : ईख, चावल का आटा, कदली फल (केला), चिउड़ा (कुटा चावल / पोहे वाला चावल), तिल, लड्डू, नारियल, खील इतना अधिक मन्त्र जप तथा हवन एक दिन में सम्भव नहीं। यदि एक सेकंड में दो बार उपरोक्त जप किया जाता है तो उस हिसाब से एक घंटे में 3600 सेकंड x 2 =7200 (67 माला) जप हो सकता है। सुबह शाम एक-एक घण्टा साधना को देंगे तो 67×2 = 134 माला जप प्रतिदिन होगा।

अतः इस प्रकार से अपनी सुविधा के अनुसार दिनों में जप व हवन संख्या को बांट लेना चाहिए प्रतिदिन समान संख्या में जप करे। संख्या घटा बढा नहीं सकते। प्रतिदिन जप करके देवी को समर्पित कर देना चाहिए :

जप समर्पण प्रार्थना

ॐ गुह्याति गुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत् कृतं जपम्।

सिद्धिर्भवतु मे देवि! त्वत् प्रसादान्महेश्वरि ॥

पुरश्चर्या हेतु सुझाव:

सुविधा के लिए योजनाएं बना लीजिए कि प्रतिदिन इस तरह से जपना है.. यदि इस मन्त्र की 134 माला प्रतिदिन की जाती है जिसमें लगभग 2 घंटा लगेगा तो प्रतिदिन 14472 जप होगा और 222 दिनों (लगभग 8 महीने) में 32,12784 जप हो जाएगा.

इस प्रकार उपरोक्त 32 लाख जप के बाद या उसी के साथ-साथ 3 लाख 20 हजार बार हवन को भी इसी प्रकार प्रतिदिन के हिसाब से बाँट ले और “ॐ ह्रीं स्वाहा” से हवन सम्पन्न कर लें….

[अर्थात् कुल 3000 माला हवन होगा, इसके लिए 30 माला हवन प्रतिदिन 100 दिन तक करे, इससे कुल 3,24000 हवन होगा]

इसके बाद साधक 32000 बार देवी का तर्पण करे अर्थात देवी के विग्रह पर आचमनी से या फिर हथेली के अग्र भाग से 32000 बार जल तर्पण करे… प्रत्येक तर्पण में “ॐ ह्रीं भुवनेश्वरीं तर्पयामि

नमः” मंत्र बोले [324 (3 माला) तर्पण प्रतिदिन 100 दिन तक, इससे कुल 32,400 तर्पण होगा]

तर्पण हेतु पात्र में स्वच्छ जल में दुग्ध, चन्दन, पुष्प, चावल, कुमकुम मिश्रित करें इस पर श्री भुवनेश्वरी का विग्रह (श्रीभुवनेश्वरी यन्त्र या श्रीयन्त्र या दुर्गा जी या लक्ष्मी जी की प्रतिमा) रखें बायें हाथ की अंजलि (हथेली के अग्रभाग) से जल लेकर देवी पर अर्पित करता जाए, दाहिने हाथ से माला पकड़कर तर्पण संख्या गिने। इतना न हो सके तो बायें हाथ से केवल आचमनी से ही देवी पर जल अर्पण करते जाए और दायें हाथ से माला द्वारा तर्पण संख्या गिनते हुए तर्पण करते जाए। चित्र हो तो उसके सामने पात्र रखकर उसमें तर्पण का जल अर्पित कर सकते हैं।

तर्पण के बाद साधक 3200 बार अपने मस्तक पर मार्जन करे अर्थात “ॐ ह्रीं नमः मार्जयामि” बोलते हुए कुश या दूब से 3200 बार अपने माथे पर जल छिड़के। [32 मार्जन प्रतिदिन 100 दिन तक]

इसके बाद 320 ब्राह्मण को भोजन कराये यह न हो सके तो 320 बार जरुरतमन्द लोगों को, मन्दिर आदि स्थानों में ह्रीं का स्मरण करते हुए खाना बाँट दे।

इस प्रकार यह 1 पुरश्चरण सम्पन्न हो जाएगा। यदि अच्छे परिणाम मिलें तो साधक चाहे तो कुल 5 पुरश्चरण कर सकता है। इन सब कार्यों में समय जरुर लगेगा लेकिन यदि कोई यह सब कर ले तो वह निश्चय ही धन्य है इस सबके बाद भी वह साधक अपनी सुविधा के अनुसार प्रतिदिन (यथा संख्या) जप करता रहे तो देवी भुवनेश्वरी जी का यह बीजमन्त्र जीवन पर्यन्त सिद्ध होकर उस व्यक्ति की किसी न किसी रूप में सहायता अवश्य करेगा। एक बात ध्यान में रहे कि साधक गोपनीयता रखे अर्थात यह पूरी साधना मन्त्र गुप्त गुरु के अतिरिक्त किसी को कुछ न बताए और कोई सिद्धि मिले या कोई अनुभव हो तो उसको भी सर्वथा गुप्त रखे अन्यथा सब व्यर्थ हो जाएगा…

आदिशक्ति भुवनेश्वरी देवीभागवत में वर्णित मणिद्वीप की अधिष्ठात्री देवी, हल्लेखा (ह्रीं) मंत्र की स्वरूपाशक्ति, सृष्टि क्रम में महालक्ष्मी स्वरूपा और भगवान शिव के समस्त लीला विलास की सहचरी हैं।

श्री भुवनेश्वरी शुद्धशक्ति खड्गमाला मन्त्र

भुवनेश्वरी महाविद्या का खड्गमाला

स्तुतिपरक मन्त्र आपके समक्ष प्रस्तुत है, यह स्तोत्र विधान साधना-रूप ही है। स्तोत्र रूप होने से श्री दक्षिणामूर्ति शिवजी को स्मरण करके बिना दीक्षा भी इसका पाठ किया जा सकता है। इस एक मन्त्र के पढ़ने से भुवनेश्वरी माँ के यन्त्र स्थित सभी आवरण देवताओं/शक्तियों का स्मरण हो जाता है। इसे पढ़कर माँ भुवनेश्वरी के चित्र, दुर्गा मूर्ति या भुवनेश्वरी यन्त्र पर पुष्प चढ़ाने से उनकी आवरण पूजा सम्पन्न हो जाती है। भुवनेश्वरी महाविद्या के मन्त्र जप का फल भी इसके पाठ से मिल जाता है, नित्य सुबह / शाम एक पाठ ही पर्याप्त है।

संकल्पः

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ॐ तत्सत् श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य प्रवर्तमानस्य श्रीब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे भूप्रदेशे प्रदेशे नगरे, (……ग्रामे)… नाम्नि सम्वत्सरे, सूर्य (उत्तरायणे/दक्षिणायने) – -ऋतौ, – –मासे —–पक्षे, तिथौ, वासरे गोत्रोत्पन्न —(नाम) अहं अद्य श्रीभुवनेश्वरी महाविद्या कृपा प्रसाद सिद्धयर्थं श्री भुवनेश्वरी शुद्ध शक्ति खड्गमाला पाठाख्यं कर्ममहं करिष्ये।

विनियोग – ॐ अस्य श्री भुवनेश्वरी-खड्ग-माला मन्त्रस्य श्री प्रकाशात्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री भुवनेश्वरी देवता, हं बीजं, ईं शक्तिः, रं कीलकं, श्रीभुवनेश्वरी- -पराम्बा-प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ।

ऋष्यादि

न्यास श्री प्रकाशात्मा-ऋषये नमः शिरसि, (सिर का स्पर्श करे )

गायत्री छन्दसे नमः मुखे,

(मुख का स्पर्श करे )

श्री भुवनेश्वरी देवतायै नमः हृदि, (हृदय का स्पर्श करे )

हं बीजाय नमः गुह्ये, (बाये हाथ से नितम्ब का स्पर्श करे और हाथ धोले)

ईं शक्तये नमः पादयोः, (पैरों का स्पर्श करे)

रं कीलकाय नमः नाभौ, (नाभि का स्पर्श करे )

श्री भुवनेश्वरी पराम्बा प्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे (समस्त अंगों का स्पर्श करे।

ध्यान

स्मरेद् रवीन्द्वग्नि-विलोचनां तां, सत् पुस्तकां जाप्य वटीं दधानाम् । सिंहासनां मध्यम पत्र संस्थां, श्रीतत्त्व-विद्यां परमा पराम्बां भजामि ॥

(सूर्य, चंद्र व अग्नि जिनके नेत्र स्वरूप हैं, पुस्तक और जपमाला धारण करके सिंहासन के मध्य में विराजमान उन परमतत्व – विद्या पराम्बा को स्मरण करके मैं उनकी उपासना करता हूँ )

य एवं – सचिन्तयेन्मन्त्री, सर्व-कामार्थ सिद्धिदाम्।

तस्य हस्ते सदैवास्ति, सर्व-सिद्धिर्न संशयः ॥

तादृशं खड्गमाप्नोति, येन हस्त-स्थितेन वै।

अष्टादश-महा-द्वीपे सम्राट् भोक्ता भविष्यति ॥

मानस पूजा

लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (कनिष्ठिका से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख (नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए

यं वायु तत्त्वात्मकं धूपं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्वमुख ( ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

रं वह्नि तत्त्वात्मकं दीपं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे कोदिखाए)

वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

सौं सर्वतत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।

अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए (सभी दिखाये

श्रीगुरु वन्दना

गुरु या शिव जी के विग्रह पर पुष्प / अक्षत अर्पित करे

श्री दक्षिणामूर्तये विद्महे ध्यानस्थिताय धीमहि तन्नो धीरः प्रचोदयात्। श्री दक्षिणामूर्ति गुरवे नमः, श्री पादुकां पूजयामि ।

नमस्कार करे

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया, चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ।

श्रीमहागणपति पूजन पुष्प या अक्षत अर्पित करे

ऐं आत्म तत्व व्यापकाय महा गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

ह्रीं विद्या तत्व तत्व व्यापकाय महा गणपतये श्री पादकां पूजयामि नमः ।

श्री शिव तत्व व्यापकाय महा गणपतये श्री पादुकां पूजयामि नमः ।

मन्त्र

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं श्रीभुवनेश्वरी – हृदय देवि शिरोदेवि शिखा-देवि कवच-देवि नेत्र- देव्यस्त्र- देवि कराले विकराले उमे सरस्वति श्रीदुर्गे उषे लक्ष्मि श्रुति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कान्ति आयें श्रीभुवनेश्वरि दिव्यौघ-गुरु-रूपिणि सिद्धौघ गुरु-रूपिणि मानवौघ-गुरु-रूपिणि श्री गुरु श्री-गुरु रूपिणि परम-गुरु-रूपिणि परापर-गुरु-रूपिणि परमेष्ठी-गुरु-रूपिणि अमृतभैरव सहित श्रीभुवनेश्वरि हृदय-शक्ति शिरः-शक्ति शिखा शक्ति कवच-शक्ति नेत्र-शक्त्यस्त्र-शक्ति हल्लेखे गगने रक्ते करालिके महोच्छूष्मे सर्वानन्द मयचक्र-स्वामिनि!

गायत्री सहित-ब्रह्म-मयि सावित्री सहित

विष्णु-मयि सरस्वती सहित रुद्र-मयि लक्ष्मी सहित – कुबेर -मयि रति सहित काम-मयि पुष्टि सहित – विघ्न-राज-मयि शङ्ख-निधि सहित शङ्ख-निधि-सहित वसुधा-मयि, पद्म-निधि-सहित-वसुमति-मयि गायत्र्यादि-सह- श्रीभुवनेश्वरि हां हृदय देवि ह्रीं शिरो-देवि हूं शिखा-देवि हैं कवच-देवि ह्रौं नेत्र देवि ह्रः स्वामिनि! अस्त्र- देवि सर्व-सिद्धि-प्रद-चक्र

अनङ्ग-कुसुमे अनङ्ग – कुसुमातुरे अनङ्ग-मदने अनङ्ग-मदनातुरे भुवन-पाले गगन-वेगे शशि रेखे अनङ्ग-वेगे सर्व-रोग-हर-चक्र-स्वामिनि! कराले विकराले उमे सरस्वति श्रीदुर्गे उषे लक्ष्मि श्रुति स्मृति धृति श्रद्धे मेधे रति कान्ति आर्ये सर्व-संक्षोभण-चक्र-स्वामिनि!

ब्राह्मि माहेश्वरि कौमारि वैष्णवि वाराहि इन्द्राणि चामुण्डे महा-लक्ष्म्य-नङ्ग-रूपेऽनङ्ग कुसुमे मदनातुरे भुवन-वेगे भुवन पालिके सर्व शिशिरेऽनङ्ग मदनेऽनङ्ग-मेखले सर्वाशा

परिपूरक-चक्र-स्वामिनि!

इन्द्र- मय्यग्नि-मयि यम-मयि निरृति-मयि वरुण-मयि वायु मयि सोम-मयीशान-मयि ब्रह्म मय्यनन्त-मयि वज्र-मय्यग्नि-मयि दण्ड-मयि खड्ग-मयि पाश-मय्यंकुश-मयि गदा-मयि त्रिशूल- मयि पद्म-मयि चक्र मयि वर-मय्यंकुश मयि पाश मय्यभय-मयि बटुक मयि योगिनी मयि क्षेत्रपाल-मयि गण-पति-मय्यष्ट-वसु-मयि द्वादशादित्य-मय्येकादश रुद्र-मयि सर्व-भूत मय्यमृतेश्वर सहित श्री भुवनेश्वरि त्रैलोक्य मोहन-चक्र-स्वामिनि नमस्ते नमस्ते नमस्ते स्वाहा श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ ॥

फल-श्रुतिः

कथयामि महादेवि! भुवनेशीं महेश्वरीम् ।

अनया सदृशी विद्या नान्या ज्ञानस्य साधने ॥1॥

नात्र चित्त- विशुद्धिर्वा नारि-मित्रादि-दूषणम्।

न वा प्रयास-बाहुल्यं समया-समयादिकम् ॥2॥

[ हे महादेवी इस भुवनेशी-महेश्वरी (खड्गमाला तथा एकाक्षरी भुवनेश्वरी मन्त्र} को कहता हूं जिसके समान दूसरी कोई विद्या ज्ञान साधन में समर्थ नहीं है, इसके जप के लिए न तो चित्त शुद्धि की आवश्यकता है तथा इसमें “अरि(शत्रु) मन्त्र है” या “मित्र मन्त्र है” आदि दोषों का विचार करने की आवश्यकता नहीं है।

देवैर्देवत्व-विधये सिद्धैः खेचर-सिद्धये ।

पन्नगैः राक्षसै-र्मर्त्यै-र्मुनिभिश्च मुमुक्षुभिः॥3॥

कामिभि र्धर्मिभि-श्चार्थ-लिप्सुभिः सेविता परा ।

न वसु व्यय-बाहुल्यं काय-क्लेश-करं तथा ॥4॥

[ इसके द्वारा देवता देवत्व पाने के लिए तथा सिद्ध खेचर(आकाशगति) सिद्धि पाने के लिए और सर्प,राक्षस,मनुष्य,मुनि, मोक्षकामी धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष पाने हेतु देवी पराशक्ति की पूजा/सेवा/आराधना करते हैं, तथा इसके द्वारा उपासना करने में धन खर्च भी नहीं हो रहा और शारीरिक कष्ट भी नहीं है ]

य एवं चिन्तयेन्मन्त्री सर्व-कामार्थ-सिद्धिदाम् ।

तस्य हस्ते सदैवास्ति सर्व-सिद्धिर्न संशयः ॥ 5 ॥

(जो धन देने वाली व सर्व कामना सिद्ध कर देने वाली भुवनेश्वरी महाविद्या का मन्त्र जपते हुए चिन्तन करता है उसको सर्वसिद्धियाँ प्राप्त होती हैं इसमें संशय नहीं है)

गद्य-पद्य-मयी वाणी सभायां विजयी भवेत् ।

तस्य दर्शन-मात्रेण वादिनो निष्कृतादराः ॥6॥

(खड्गमाला के नियमित पाठकर्ता की वाणी निबंध कविता बोलने में कुशल हो जाने से वह सभा में विजयी होता है, विवाद करने वाला उपासक के दर्शन मात्र से सम्मान रहित या आदरपूर्वक क्षमा माँगने वाला हो जाता है)

राजानोऽपि हि दासत्वं भजन्ते किं प्रयोजनः ।

दिवा- रात्रौ पुरश्चर्या कर्तुश्चैव क्षमो भवेत् ॥ 7॥

[ राजा (आज के समय में सरकारी व्यक्ति) भी खड्गमाला पाठकर्ता के दास हो जाते हैं अन्य की तो बात ही क्या है, दिन व रात को इसका जप करके सामर्थ्यवान्, सशक्त,धैर्यवान होता है]

सर्वस्यैव जनस्येह वल्लभः कीर्ति-वर्धनः ।

अन्ते च भजते देवी-गणत्वं दुर्लभं नरः ॥ 8॥

चन्द्र-सूर्य समो भूत्वा वसेत् कल्पायुतं दिवि ।

न तस्य दुर्लभं किञ्चित् यो वेत्ति भुवनेश्वरीम् ॥ 9॥

(भुवनेशी खड्गमाला का पाठकर्ता सबका प्रिय व यशस्वी होता है, उसकी कीर्ति बढ़ती है और वह मृत्यु के उपरांत दुर्लभ पद पाता है अर्थात् देवी का गण हो जाता है, सूर्य चन्द्रमा के समान तेजोमय होकर दस हजार कल्प तक स्वर्ग में वास करता है, जो भुवनेश्वरी महाविद्या को जानता है उनका भजन करता है, उसको कुछ भी दुर्लभ नहीं रह जाता है)

श्रीभुवनेश्वरीरहस्ये श्री तत्सत् भुवनेश्वरी शुद्धशक्ति-खड्गमालास्तोत्रं शुभमस्तु ॥

विनियोग

ॐ अस्य श्री भुवनेश्वरी खड्ग माला मन्त्रस्य श्री प्रकाशात्मा ऋषिः, गायत्री छन्दः, श्री भुवनेश्वरी देवता, हं बीजं, ईं शक्तिः, रं कीलकं, श्रीभुवनेश्वरी- पराम्बा-प्रीत्यर्थे श्री भुवनेश्वरी शुद्धशक्ति-माला महामन्त्रस्य विनियोगः । जप समर्पणे

ध्यान

स्मरेद् रवीन्द्वग्नि-विलोचनां तां, सत् पुस्तकां जाप्य वटीं दधानाम्। सिंहासनां मध्यम पत्र संस्थां, श्रीतत्त्व-विद्यां परमा पराम्बां भजामि ॥

(सूर्य, चंद्र व अग्नि जिनके नेत्र स्वरूप हैं, पुस्तक और जपमाला धारण करके सिंहासन के मध्य में विराजमान उन परमतत्व – विद्या पराम्बा को स्मरण करके मैं उनकी उपासना करता हूँ )

मानस पूजा

लं पृथिवी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि।

(कनिष्ठिका से अंगूठे को मिलाकर अधोमुख (नीची) करके भगवान को दिखाए, यह गन्ध मुद्रा है)

हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (अधोमुख तर्जनी व अंगूठा मिलाकर बनी पुष्प मुद्रा दिखाए)

यं वायु तत्त्वात्मकं धूपं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (ऊर्ध्वमुख (ऊपर को) तर्जनी व अंगूठे को मिलाकर दिखाए)

रं वह्नि – तत्त्वात्मकं दीपं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (ऊर्ध्व मुख मध्यमा व अंगूठे को दिखाए)

वं अमृत-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि। (ऊर्ध्व मुख अनामिका व अंगूठे को दिखाए)

सौं सर्वतत्त्वात्मकं ताम्बूलादि सर्वोपचाराणि मनसा परिकल्प्य श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी पादुकाभ्यां नमः अनुकल्पयामि । (सभी अंगुलियों को मिलाकर ऊर्ध्वमुखी करते हुए दिखाये )

एक आचमनी से जल चढ़ाते हुए जप समर्पण करे

ॐ गुह्याति गुह्य गोप्त्री त्वम्, गृहाणास्मद्कृतं जपं ।

सिद्धिर्भवतु मे देवि, त्वत्-प्रसादान्महेश्वरी ॥

मया कृतेन श्री भुवनेश्वरी शुद्धशक्ति-सम्बुद्ध्यन्त माला मन्त्र जपानुष्ठानं श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी देव्यै अर्पणमस्तु ।

अनेन मया कृतेन श्री भुवनेश्वरी शुद्धशक्ति सम्बुद्ध्यन्त माला मन्त्र जपेन श्री अमृतेश्वर शिव सहिता श्री भुवनेश्वरी भगवती सुप्रसन्ना वरदा भवतु।

सर्वं श्री सद्गुरु-परदेवता – परब्रह्मार्पणमस्तु ।

शान्ति पाठ

इसका 3 बार पाठ करें

ओऽम् शान्ता पृथिवी शिवमन्तरिक्षं द्यौनों देवा अभयं नो अस्तु । शिवा दिशः प्रदिश उद्दिशो नः आपो विश्वतः परिपान्तु सर्वतः। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः।

( पृथ्वी हमारे लिए शांति दायिनी हो। अंतरिक्ष और दिव्याकाश कल्याणकारी हों। देवगण अभय देने वाले हों, दिशाएं विदिशाएं और ऊर्ध्व दिशाएं मंगलमय हों और जल राशियां (सागर) हमारे चारों ओर से हमारी रक्षा करें, शान्ति, शान्ति, शान्ति हो ) रु॒द्रयामलोक्तं शान्ति स्तोत्रम्

भक्तिपूर्वक श्रीखड्गमाला को यथासम्भव समझते हुए प्रतिदिन नियमित पारायण (पाठ) करने से उत्पन्न तेज को सँभालना कठिन होने से साधक का कभी-कभी मन व्याकुल हो सकता है ऐसे में शान्ति स्तोत्र भी खड्गमाला स्तोत्र के बाद पढ़ना चाहिए, हालांकि ऊपर शान्ति पाठ श्लोक भी दिया है लेकिन पारायण में कोई न्यूनता-आधिक्यता हो गयी हो तो प्रस्तुत शान्ति स्तोत्र के पाठ से उस दोष का शमन हो जाता है।

ॐ जयन्तु मातरः सर्वा, जयन्तु योगिनी गणाः ।

जयन्तु सिद्ध डाकिन्यो, जयन्तु गुरवः सदा ॥1॥

जयन्तु साधकाः सर्वे, विशुद्धाः कौलिकाश्च ये समयाचार सम्पन्नाः, जयन्तु पूजकाः नराः ॥2॥

अणिमाद्याश्च सिद्धाश्च, नन्दन्तु भैरवादयः ।

नन्दन्तु देवताः सर्वे, सिद्ध-विद्या- धरादयः ॥3॥

ये चाम्नाय विशुद्धाश्च मन्त्रिणः शुद्ध बुद्धयः ।

सर्वदानन्द हृदयः नन्दन्तु कुल-पालकाः ॥ 4॥

नन्दन्तु अणिमा सिद्धा, नन्दन्तु कुल साधका।

इन्द्राद्या देवताः सर्वे तृप्यन्तु वास्तु-देवताः॥5॥

सूर्य चन्द्रादयो देवाः, तृप्यन्तु मम-भक्तितः।

नक्षत्राणि ग्रहा योगाः करणाः राशयश्च ये॥ 6॥

तृप्यन्तु पितरः सर्वे मासाः संवत्सरादयः ।

खेचरा भूचराश्चैव तृप्यन्तु मम भक्तितः॥7॥

अन्तरिक्ष – चरा ये च ये चान्ये देव-योनयः ।

सर्वे ते सुखिनो यान्तु सर्पा नद्याश्च पक्षिणः ॥ 8॥

पशवः स्थावराश्चैव पर्वताः कन्दराः गुहाः ।

ऋषयो ब्राह्मणाः सर्वे शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा ॥9॥

तीर्थानि बह प्रसिद्धा ये, चान्ये पुण्य भूमयः ।

वृद्धाः पतिव्रता यास्ताः शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा ॥10॥

शिवं सर्वत्र मे चास्तु पुत्र- दारा- धनादिषु ।

राजानः सुखिनः सन्तु मित्राः नन्दन्तु मे सदा ॥11॥

साधका सुखिनः सन्तु शिवं तिष्ठन्तु सर्वदा।

शुभा मे वन्दिताः सन्तु मित्रा तिष्ठन्तु पूजकाः ॐ॥12॥

।। श्री रुद्रयामलोक्तं शान्ति स्तोत्रं शुभमस्तु ओऽम् तत्सत् ।।

श्री भुवनेश्वरी गायत्री मंत्र इस प्रकार है

॥ॐ नारायण्यै विद्महे भुवनेश्वर्यै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात् ॥

इसका भाव है कि हम नारायणी (यश, तेज, रूप और गुणों में नारायण के समान तथा नारायण की ही शक्ति अर्थात् साक्षात दुर्गाजी) को जानते हैं और उन भुवनेश्वरी (त्रैलोक्य की ईश्वरी) देवी जी का ही ध्यान करते हैं, वे देवी हमें ज्ञान ध्यान में प्रवृत्त करें।

माँ भुवनेश्वरी के साधारण उपासकों को इसी भाव साथ इस भुवनेश्वरी गायत्री मंत्र का देवी के आगे कुछ समय बैठकर मानसिक जप करना चाहिए।

नोट:यह अन्य वेबसाइट से लिया गया है

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