पुलिस सरकार का सबसे बफादार डिपार्टमेंट ,राष्ट्र रक्षक, पर अपने लिये कोई छूट्टी नही:हरिंद्र सिंह

जिस तरह हमारे देश की सेना सीमाओं पर तैनात कर देशवासियों की रक्षा करती है, उसी तरह देश की आंतरिक सुरक्षा का कार्य पुलिस करती हैं. समाज के रक्षक के रूप में पुलिस जानमाल की रक्षा तथा अपराध को समाप्त कर शांति स्थापना में अहम भूमिका अदा करती हैं।

समाज के सभी नागरिकों की सुरक्षा व भलाई के लिए पुलिस का गठन किया जाता हैं. यदि आज हमारी सभी संस्थाएं व्यवस्थित ढंग से चल रही हैं सारे कार्य कानून और नियमों के दायरे में हो रहे हैं।लोग कानून को तोड़ने की बजाय उनकी पालना कर रहे हैं तो केवल पुलिस के कारण ही सम्भव हो सका हैं।

निश्चय ही किसी देश अथवा राज्य में पुलिस के बिना कानून की कल्पना नहीं की जा सकती हैं. कोई भी समाज तभी तरक्की कर सकता है जब सभी ओर शान्ति का वातावरण हो तथा लोग संस्थाओं में विश्वास रखे. यही वजह है कि राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में पुलिस का अहम योगदान माना जाता हैं।

एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए चुनाव का समय सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता हैं. निष्पक्ष रूप से चुनाव तथा चुने जाने वाले जनप्रतिनिधि अच्छी छवि के हो तभी वे समाज का भला कर सकेगे. भारत में चुनावी प्रक्रिया को सम्पन्न करवाने में पुलिस की बड़ी भूमिका हैं।

वह ईमानदारी के साथ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए पंचायत, नगर, जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय चुनावों को आयोजित करवाती हैं. प्रत्येक वर्दी वाले पुलिस कर्मी पर समाज को गर्व होता हैं. वे समाज में हिंसा, अफरा तफरी तथा अपराध फैलाने वाले लोगों पर दबिश डालकर उन्हें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर उन्हें दंडित करवाती हैं।

प्रत्येक पुलिस वाले की समाज के प्रति बड़ी भूमिकाएं होती हैं जिन्हें वह विविध रूपों में पूर्ण करने का प्रयत्न करता हैं. कभी देश के भीतर आतंकी हमलें से लोगों को बचाने में तो कभी नेताओं की रेलियो, यातायात व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने, हडताल, धरना, बंद, जुलुस की व्यवस्था, सार्वजनिक सम्पति की सुरक्षा, तस्करी रोकने तथा आम लोगों की शिकायत पर उनकी सुरक्षा करना पुलिस के प्रमुख दायित्व हैं।

कई बार पुलिसवाले अपनी ड्यूटी पर जान जोखिम में डालकर भी अपराधियों को पकड़ते हैं इस प्रयास में उन्हें शारीरिक क्षति या जान खोने का भी खतरा होता हैं।इन सबके बावजूद वे अपने कर्तव्य पथ से विचलित होने की बजाय उस पर डटे रहते हैं और हमारी हिफाजत करते हैं।

समाज के लोगों तथा समाज की सम्पति यथा रेलवे स्टेशन, स्कूल, खेल मैदान, उद्योग, पार्क सभी की सुरक्षा तैनाती पुलिस के कर्मचारी ही करते हैं. अपराधियों में पुलिस के साहस का भय होता है यदि पुलिस न हो तो समाज में अराजकता का माहौल बन जाएगा।

चारों हिंसा, लूटमार और मारामारी के हालात उत्पन्न हो जाएगे।यदि व्यापारी के माल की बिना पैसा दिए लूट हो जाएगी तो कोई भी व्यापार में आना नहीं चाहेगा।भारत के सभी राज्यों की अपनी अपनी पुलिस फ़ोर्स हैं जिसमें हवलदार से लेकर पुलिस महानिदेशक तक के अधिकारी होते हैं।देश की आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के लिए पुलिस हर वक्त तैयार रहती हैं।वह अपने सूत्रों तथा सर्च ओपरेशन के जरिये बड़े खतरों को पहले ही खत्म कर देती हैं।

एक आम आदमी के जीवन में पुलिस वाले की कई भूमिकाएं होती हैं. उसके साथ कोई लूटमार, माल की चोरी, जान लेने की धमकी की स्थिति में पुलिस ही उसकी मदद करती हैं।जब वह वाहन चलाता है तो परिवहन पुलिस उसकी मदद करती हैं. किसी के भीड़ में खो जाने अथवा दुर्घटना के बुरे वक्त में भी पुलिस साथी की भूमिका निभाती हैं।

उत्तर प्रदेश की एक महिला कांस्टेबल की छह माह की बेटी के साथ ड्यूटी करती हुई तस्वीर वायरल होने के बाद ये बहस फिर गर्म हो गई है कि पुलिस में महिलाओं की भर्ती और उन्हें मिलने वाली सुविधाओं के बीच कोई ताल-मेल है या नहीं?
झांसी जिले की सदर तहसील में बतौर कांस्टेबल तैनात अर्चना सिंह यूं तो रोज अपनी ड्यूटी निभा रही थीं लेकिन एक दिन अचानक उनकी एक तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो गई जिसमें वो पुलिस की वर्दी में अपने दफ्तर में कुर्सी पर बैठकर लिख रही हैं और बगल में एक मेज पर उनकी बच्ची सो रही है. अर्चना की ये तस्वीर लखनऊ में बैठे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने भी ट्वीट की।

अर्चना सिंह का घर आगरा में है और उनके पति दिल्ली के पास नौकरी करते हैं. उन्होंने कोशिश की कि उनका तबादला आगरा के पास हो जाए, लेकिन नहीं हुआ। इस तस्वीर के वायरल होने के बाद राज्य के डीजीपी ओपी सिंह ने इसका तुरंत संज्ञान लिया और महिला सिपाही का न सिर्फ उनके घर के पास आगरा जिले में तबादले का आदेश दिया बल्कि ये भी कहा के इस घटना ने उन्हें महिला पुलिसकर्मियों के छोटे बच्चों के लिए क्रेच खोलने की जरूरत पर भी ध्यान आकृष्ट किया है।

सवाल ये है कि जब बड़े पैमाने पर महिला पुलिसकर्मियों की भर्ती और उनकी तैनाती की नीति बन रही थी, उस समय क्या ऐसी चीजों के बारे में नहीं सोचा गया. कांस्टेबल अर्चना का कहना है कि वे कुछ महीनों पहले मां बनी थीं और इसके लिए जो छुट्टी मिलनी चाहिए थी वो मिली थी. इसके बाद उन्हें ड्यूटी पर लौटना पड़ा लेकिन छोटे बच्चे को घर पर छोड़ना उनके लिए संभव नहीं था क्योंकि उनके पति भी किसी दूसरे जिले में नौकरी करते हैं. इस वजह से वो बच्ची को ड्यूटी के दौरान अपने साथ लाती थीं.

महिला पुलिसकर्मियों की समस्याएं

दरअसल, पुलिस विभाग में महिला कर्मचारियों की समस्याओं से जुड़ी ये एक छोटी सी समस्या है जिसकी ओर इसलिए ध्यान चला गया कि ये खबर रातों-रात चर्चा में आ गई. लेकिन महिला पुलिसकर्मी ऐसी न जाने कितनी समस्याओं से हर रोज रूबरू होती हैं जिनकी चर्चा अकसर नहीं होती और होती भी है तो अब तक उन्हें दूर नहीं किया जा सका है. पिछले कुछ समय से न सिर्फ पैरा मिलिट्री विभागों में बल्कि राज्यों के पुलिस विभाग में भी महिलाओं की बड़े पैमाने पर भर्तियां हुई हैं और अभी भी हो रही हैं. यूं तो पुरुष पुलिसकर्मी भी तमाम समस्याओं से आए दिन दो-चार होते हैं लेकिन महिला पुलिसकर्मियों के लिए समस्याएं कहीं ज्यादा हैं।

दो साल पहले भर्ती हुई और लखनऊ में तैनात एक महिला पुलिसकर्मी नाम न बताने की शर्त पर कहती हैं, “छुट्टियां न मिलना, चौबीस घंटे की ड्यूटी देना, घर-परिवार में समय न दे पाना, वो सब तो बर्दाश्त करना ही पड़ता है लेकिन कुछ ऐसी परेशानियां हैं जिनसे हर महिला पुलिसकर्मी का सामना होता है. आप विश्वास नहीं करेंगे लखनऊ जैसे बड़े शहर में भी कई थाने ऐसे हैं जहां महिलाओं के लिए अलग से शौचालय नहीं हैं. न सिर्फ महिला पुलिसकर्मियों को इससे परेशानी होती है बल्कि वहां आने वाली दूसरी महिलाएं भी इस समस्या का सामना करती हैं।

एक रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी लखनऊ में 43 पुलिस थानों समेत पुलिस के छोटे-बड़े करीब अस्सी दफ्तर ऐसे हैं जहां महिला पुलिसकर्मियों के लिए अलग से शौचालय नहीं हैं. यही हाल दूसरे जिलों का भी है और पुलिस अधिकारी इस बात को स्वीकार भी करते हैं. जाहिर है, आठ से दस घंटे ड्यूटी करने वाली महिला पुलिसकर्मियों को इस वजह से कितनी परेशानी से गुजरना पड़ता है।

37 कर्मियों और अधिकारियों ने आत्महत्या

दिल्ली पुलिस ने ‘भाषा’ की ओर से सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत दायर आवेदन के जवाब में बताया कि जनवरी 2017 से 30 जून 2020 तक बल के 37 कर्मियों और अधिकारियों ने आत्महत्या की है। लेकिन खुदकुशी करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या सिपाही और प्रधान सिपाही स्तर के कर्मियों की है। पुलिस से मिली सूचना के मुताबिक, पिछले 42 महीनों में 14 कर्मियों ने ड्यूटी के दौरान जान दी, जबकि 23 कर्मचारियों ने ‘ऑफ ड्यूटी’ आत्महत्या की।

दिल्ली पुलिस ने आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं बोला

दिल्ली पुलिस, आरटीआई के तहत सामने आई जानकारी पर आधिकारिक तौर पर कुछ भी बोलने को राजी नहीं हुई, लेकिन निजी बातचीत में कई कर्मियों ने कहा कि बल के कर्मी लंबी ड्यूटी की वजह से काफी तनाव में रहते हैं और संभवत: इस वजह से वे जिंदगी को खत्म करने जैसा अतिवादी कदम उठा लेते हैं। दिल्ली पुलिस से आरटीआई आवेदन में पूछा गया था कि जनवरी 2017 से 30 जून 2020 तक कितने कर्मियों ने खुदकुशी की है और उनका रैंक क्या है।

RTI में खुलासा

पुलिस ने अपने जवाब में बताया कि आत्महत्या करने वालों में 13 सिपाही, 15 प्रधान सिपाही, तीन सहायक उपनिरीक्षक (एएसआई), तीन उपनिरीक्षक (एसआई) और दो निरीक्षक शामिल हैं। ड्यूटी के दौरान 14 कर्मियों ने खुदकुशी की, जिनमें छह प्रधान सिपाही, चार सिपाही, एक एएसआई और एक एसआई शामिल हैं। वहीं ‘ऑफ ड्यूटी’ अपनी जान देने वालों में नौ सिपाही, छह प्रधान सिपाही, दो एएसआई, दो एसआई और एक निरीक्षक शामिल हैं।

नहीं मिली स्पष्ट जानकारी

जवाब में पांच कर्मियों की खुदकुशी के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई कि उन्होंने ड्यूटी के दौरान आत्महत्या की या ‘ऑफ ड्यूटी’ के समय। इनमें एक निरीक्षक, एक एएसआई और तीन प्रधान सिपाही शामिल हैं। ये कर्मी सुरक्षा इकाई में तैनात थे। पुलिस ने बताया है कि अपनी जान देने वाले कर्मियों में दो महिला सिपाही भी शामिल हैं। इनमें से एक द्वारका जिले में तैनात थीं जबकि दूसरी तृतीय वाहिनी से संबंधित थीं।

मानिसक दवाब में काम करते हैं पुलिसकर्मी

इस जानकारी के बाद पुलिस के प्रवक्ता ई सिंघला से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने ‘भाषा’ की ओर से भेजे गए सवालों का जवाब नहीं दिया। वहीं, पुलिस के प्रधान सिपाही और सिपाही स्तर के कर्मियों ने बताया कि थानों में स्टाफ की कमी है, जिस वजह से दबाव ज्यादा है। 12-12 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि कई कर्मियों की ड्यूटी पिकेट पर भी लगा दी जाती है और बीट की

जिम्मेदारी भी दी जाती है, जिससे काम का दबाव और बढ़ जाता है। इसके अलावा उन्हें साप्ताहिक अवकाश भी नहीं मिलता है।

ड्यूटी की वजह से नहीं मिलता सोने को


कर्मियों ने बताया कि अगर रात्रि पाली में ड्यूटी लगी है और अगले दिन का अदालत का समन है तो वहां भी पेश होना होता है। इस बीच कोई आराम नहीं मिलता है और रात में फिर ड्यूटी करनी होती है, जिससे नींद पूरी नहीं होती है। साथ में काम के दबाव के कारण निजी जीवन के लिए वक्त नहीं मिल पाता है। इन कारणों से कर्मी चिड़चिड़े हो जाते हैं, तनाव में आ जाते हैं और अपनी जान देने तक का कदम उठा लेते हैं।

दिल्ली पुलिस में खुदकुशी के मामले ज्यादा- एम्स

वहीं, एम्स के मनोश्चिकित्सा एवं राष्‍ट्रीय औषध निर्भरता उपचार केंद्र के डॉक्टर श्रीनिवास राजकुमार टी ने बताया कि दिल्ली पुलिस में खुदकुशी का औसत काफी ज्यादा है। आत्महत्या का राष्ट्रीय औसत प्रति लाख पर 11 का है। उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर कर्मियों को संवेदनशील करने की जरूरत है तथा समय-समय पर उनकी जांच होनी चाहिए।

तनाव बर्दाश्त नहीं कर पाते तो आत्महत्या

डॉ. श्रीनिवास ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या का मामला किसी के साथ भी हो सकता है। यह वैसा ही है, जैसे बुखार हो जाता है। इसलिए इसे किसी कमजोरी के तौर पर नहीं लेना चाहिए। इसकी पहचान कर डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। बिना दवाई के जीवन शैली में बदलाव कर इसका उपचार संभव है। उन्होंने बताया कि इंसान जब तनाव को बर्दाश्त नहीं कर पाता है और समाज उसकी मदद नहीं करता है तो उसे कोई उम्मीद नहीं दिखती है तथा वह अपनी जान देने जैसा कदम उठा लेता है।

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