सिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्ति की सोच, समझ और व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। ऐसा मस्तिष्क में होने वाले रासायनिक असंतुलन के कारण होता है।बिना किसी वजह के हर बात और हर शख्स को शक की नजर से देखना, कल्पना की दुनिया में खोये रहना, वैसी ध्वनि सुनाई देना, जो वास्तव में नहीं होती आदि एक मनोरोग है। इस मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति सिर्फ खुद की कल्पनाशील बातों पर ही विश्वास करता है। उसे दूसरों की बातें झूठ लगती है। वह अपनी सोच को न ही सही दिशा में ले जा पाता है और न ही किसी परिणाम तक पहुंच पाता है। जो लोग इस मनोरोग से घिरे होते हैं, उन्हें खुद भी इस बारे में पता नहीं होता है।
हालांकि शक करने को सामान्य अर्थों में लिया जाता है, लेकिन डॉक्टर कहते हैं कि यह एक बीमारी है, जो मस्तिष्क में होने वाले रासायनिक असंतुलन के कारण होती है। इसे सिजोफ्रेनिया कहते हैं। इसके लक्षण कई तरह के होते हैं। शुरुआत में ही अगर इसके लक्षण पहचान लिए जाएं तो इस रोग को काबू में किया जा सकता है। अक्सर यह बीमारी किशोरावस्था के बाद से ही शुरू हो जाती है। धीरे-धीरे पीड़ित को हर बात पर और हर किसी पर शक होने लगता है। वह अपनों से ही कटा-कटा रहने लगता है।
पीड़ित इस बात को लेकर हमेशा कंफ्यूज रहता है कि उसे क्या कहना है। वह किसी एक काम में ध्यान नहीं लगा पाता है। कभी-कभी तो वह अपने बचाव में दूसरों के प्रति आक्रामक भी हो जाता है। पीड़ित अपने खयाल और अपनी सोच के अलावा कुछ और मानने के लिए तैयार ही नहीं होता। उसे लगता है कि जो वह सोच रहा है या कर रहा है, वही सही है और बाकी सब गलत।
बिशेषगयों का मानना हैं…
सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है। इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। दिमाग के लिम्बिक सिस्टम में रासायनिक असंतुलन के कारण मतिभ्रम की समस्या उत्पन्न होती है। पीड़ित डरा-डरा सा रहता है। उसे वैसी आवाजें सुनाई देती है, जो वास्तव में नहीं होती। पीड़ित को हर समय लगता है कि उस पर नजर रखी जा रही है। वह अपनी ही बनाई दुनिया में खोया रहना पसंद करता है। अपना
देखभाल करना भी छोड़ देता है। हालांकि बीमारी के शुरुआती दौर में उसे कुछ डर-सा महसूस होने लगता है। वह अपने डर का कारण भी ढूंढना चाहता है, लेकिन समझ नहीं पाता। कई बार लोग इसे उपरी हवा समझ लेते हैं, जबकि यह मानसिक रोग है और इसका उपचार संभव है।
भ्रम के हैं कई रूप
नियंत्रण का भ्रमः
इससे पीड़ित व्यक्ति में एक ऐसा गलत विश्वास या सोच बैठ जाता है कि उसका मन, उसके विचार, या बर्ताव पर किसी दूसरे इंसान का नियंत्रण होता है।
बेवफाई का भ्रमः
इसमें लगता है कि पति या पत्नी का किसी और से अफेयर चल रहा है। अकसर इससे भ्रमित इंसान सुबूत जुटाने की कोशिश में लगता है, जो वास्तव में अफेयर है ही नहीं।
आरोपी मानने का भ्रमः
ऐसे भ्रम में मरीज पश्चाताप या अपराधी होने की गलत भावना का शिकार होता है।
भव्य भ्रमः इसमें पीड़ित सोचता है कि उसमें कुछ विशेष शक्तियां, बहुत ताकत, जानकारी या क्षमताएं मौजूद है, जो किसी दूसरे में नहीं है।
संदर्भ का भ्रमः इसमें पीड़ित को लगता है कि उसके चारों तरफ होने वाली नकारात्मक घटनाएं उससे जुड़ी हुई हैं।
दैहिक भ्रमः इसमें इंसान को बिना किसी वजह लगता है कि वह बीमार है, जबकि वास्तव में वह बीमार नहीं होता।
साजिश का भ्रमः इसमें पीड़ित को लगता है कि लोग उसके खिलाफ साजिश रच रहे हैं। उसे महसूस होता है कि सभी उसके बारे में बातें करते हैं या उसे घूर रहे हैं। रोगी को ऐसा भी लगता है कि जैसे कुछ लोग उसके ऊपर जादू-टोना करवा रहे हैं या फिर उसके खाने में जहर मिलाया जा रहा है।