सांस की यह बीमारी तेजी से फैल रही है, जो टीबी से भी कई गुना घातक है : डॉ बी.पी.सिंह
बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर साल नवंबर के तीसरे बुधवार को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है : जे. पी.सिंह
दैनिक इंडिया न्यूज आर.के.उपाध्याय। बुधवार प्रातः विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस 2022 के अवसर पर सूर्या चेस्ट फाउंडेशन और मिडलैंड हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के डॉक्टर बी.पी.सिंह के सौजन्य से जागरूकता रैली आयोजित की गई।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आए जे.पी. सिंह (अध्यक्ष संस्कृत भारती न्यास अवध प्रान्त) ने इस रैली का नेतृत्व करते हुए महानगर, कपूरथला, चांदगंज होते हुए रैली ई – पार्क महानगर विस्तार में समाप्त हुई। रैली में सैकड़ों युवा व सम्मानित नागरिकों के अलावा हॉस्पिटल के एम्प्लॉय ने बढ़-चढ़ का हिस्सा लिया।
इस अवसर पर डा. बी. पी. सिंह व जे. पी. सिंह सदस्य, उ. प्र. माo संस्कृत शिक्षा परिषद ने ई- पार्क में CIPLA COMPANY द्वारा स्थापित निःशुल्क चिकित्सीय शिविर में अपनी जांचे करा कर शिविर का उद्घाटन किया।
विश्व भर में Chronic Obstructive Pulmonary Disease से लगभग 21 करोड़ लोग इनफ्लुएंस्ड (प्रभावित) है। इस गंभीर बीमारी से संसार भर में जितनी मौते होती है उसका एक चौथाई हिस्सा भारत का है। महिलाओं से ज्यादा यह बीमारी पुरुषों को चपेट में लेती है। इसकी बड़ी वजह धूम्रपान भी है।
COPD बीमारी से जूझ रहे मरीज का समय पर इलाज जरूरी है। जिससे इस बीमारी को घातक होने से रोका जा सकता है। यह बीमारी सिर्फ LUNGS तक ही सीमित नहीं बल्कि Muscles को भी बीमार बना देती है। सी.ओ.पी. डी. को हल्के में लेने पर इसके परिणाम घातक भी हो सकते है। HEART STROKE पड़ने का खतरा भी बढ़ जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि मीडियम साइज की एक सिगरेट पीने से व्यक्ति की छह मिनट की जिंदगी कम हो जाती है। सिगरेट में हानिकारक तत्व मुख्यत: निकोटिन, कार्बन मोनोक्साइड, आरसेनिक और कैडमियम होता है।
यह बातें सांस एवं प्रबंध निदेशक/अध्यक्ष मिडलैंड हॉस्पिटल व अनुसंधान संस्थान के डॉक्टर डा. बी. पी. सिंह ने विश्व क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ दिवस 2022 के अवसर पर कही।
उन्होंने बताया कि AIR POLLUTION के कारण भी सांस के रोगी बढ़ रहे हैं। हालत यह है कि स्मोकिंग नहीं करने वाले भी व्यक्ति भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। इसे आम भाषा में सांस और फेफड़ों की बीमारी कहते हैं। इसमें सांस की नलियां सिकुड़ जाती हैं और उनमें सूजन आ जाती है। बताया कि सीओपीडी एक ऐसी स्थिति है जो फेफड़ों से हवा के प्रवाह को सीमित करती है। मौसम में बदलाव से सीओपीडी की समस्या बढ़ सकती है।
COPD से बचने के उपाय :
घरों में चूल्हे, अंगीठी और स्टोव का प्रयोग न कर गैस चूल्हे का प्रयोग करना चाहिए। वायु प्रदूषण रोकने के प्रयास करने हेतु हर जन को ज्यादा से ज्यादा संख्या में पौधे रोपित करने का दृढ़ संकल्प लेना ही होगा। कूड़े को जलाने की आदत को बदलें, पुराने डीजल और खटारा वाहनों पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए। नियमित रूप से जांच कराएं व आशंका होने पर संबंधित चिकित्सक से मिलें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सी.ओ.पी.डी. दुनिया भर में होने वाली बीमारियों से मौत का तीसरा प्रमुख कारण है। वर्ष 2019 में विश्व में 32 लाख लोगों की मृत्यु इस बीमारी की वजह से हो गयी थी, वहीँ भारत में लगभग पांच लाख लोगों की मृत्यु हुयी थी।
भारत में करीब छह करोड़ रोगी सी.ओ.पी.डी. से ग्रसित हैं।
सिंपटम्स : डॉ. बी. पी.सिंह ने बताया की इस गंभीर बीमारी की शुरुवात में खांसी आती है, समय के साथ कफ बढ़ने लगता है और इसके साथ म्यूकस भी निकलने लगता है। बीमारी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही रोगी की सांस फूलने लगती है और धीरे-धीरे रोगी रोजमर्रा के कामों में भी अपने को असमर्थ पाता है। गले की मांसपेशियां उभर आती हैं और शरीर का वजन घट जाता है। पीड़ित व्यक्ति को लेटने में परेशानी होती है। इस बीमारी के साथ हार्ट स्ट्रोक होने का भी खतरा बढ़ जाता है।
ट्रीटमेंट : COPD TREATMENT में INHELAR चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है जिसे डॉक्टर की एडवाइस पर ही नियमानुसार लिया जाना चाहिए। कफ व अन्य सिमटम्स के होने पर डॉक्टर की काउंसलिंग से संबधित मेडिसिन ली जा सकती है। कफ के साथ गाढ़ा या पीला म्यूकस आने पर डॉक्टर्स एडवाइस से एन्टीबायोटिक्स ली जा सकती है।
रेस्क्यू : COPD बेस्ट प्रिवेंशन स्मोकिंग को बन्द करना है। जो पेशेंट्स शुरुवात में ही स्मोकिंग क्विट कर देते हैं उनको परेशानी कम होती है। इसके अलावा इस बीमारी से पीड़ित कोई व्यक्ति डस्ट, स्मोक के वातावरण में रहता है या वर्क करता है तो उसे तुरंत ही अपनी जगह बदल देना चाहिए।
वोही गांव की महिलाओं को लकड़ी, कोयला या गोबर के कंडे की जगह गैस स्टोव पर खाना बनाना चहिए। इसके अतिरिक्त सी.ओ.पी.डी. के रोगियों को प्रतिवर्ष इन्फ्लूएंजा वैक्सीन बचाव हेतु लगवाना चाहिए, जबकि न्यूमोकोकल वैक्सीन भी जीवन में एक बार लगवाना चाहिए।