उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार: कारणों का विश्लेषण और पार्टी की प्रतिक्रियाएँ

दैनिक इंडिया न्यूज़ नई दिल्ली ।2024 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा। जहां 2019 में पार्टी ने 64 सीटों पर जीत हासिल की थी, वहीं इस बार यह आंकड़ा घटकर मात्र 33 सीटों पर आ गया। इस पराजय के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण और बयान सामने आए हैं, जो भाजपा की स्थिति को स्पष्ट करते हैं।

सामाजिक और आर्थिक मुद्दों का प्रभाव

समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने भाजपा की हार के कई कारण बताए। उनका कहना था कि युवाओं ने भाजपा का समर्थन इसलिए नहीं किया क्योंकि उन्हें नौकरी और रोजगार के मुद्दों पर सरकार से असंतोष था। महिलाओं ने भी भाजपा के खिलाफ वोट किया क्योंकि सरकार ने महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों पर उचित कदम नहीं उठाए। इसके अलावा, पूंजीपतियों ने भी भाजपा से दूरी बना ली क्योंकि उन्हें लगा कि भाजपा अब जीतने की स्थिति में नहीं है।

अरविंद केजरीवाल का बयान

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का यह बयान कि “यदि भाजपा 400 सीटें जीत जाती है तो योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाएगा” भी भाजपा की हार का एक प्रमुख कारण माना जा रहा है। केजरीवाल का यह कथन भाजपा के अंदरूनी कलह को उजागर करता है और यह साबित करता है कि पार्टी के भीतर भी कई मतभेद हैं। इस बयान के बाद भाजपा के बड़े पदाधिकारियों द्वारा इसका खंडन न करना और सही प्रत्याशी को टिकट न देना भी हार का कारण बना।

भाजपा नेताओं की हार

इस चुनाव में भाजपा के कई प्रमुख नेता हार गए। अमेठी से केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी, चंदौली से डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय, जालौन से भानु प्रताप सिंह वर्मा, मुजफ्फरनगर से संजीव बालियान, लखीमपुर खीरी से अजय मिश्र टेनी, मोहनलालगंज से कौशल किशोर और फतेहपुर से साध्वी निरंजन ज्योति जैसी महत्वपूर्ण हस्तियों को पराजय का सामना करना पड़ा। इन हारों ने पार्टी की छवि को गहरा नुकसान पहुंचाया।

वोट प्रतिशत में गिरावट

भाजपा के वोट प्रतिशत में 9 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह गिरावट विशेष रूप से ओबीसी और दलित वोटरों में देखी गई, जो पिछले चुनावों में भाजपा के मजबूत समर्थक रहे थे। इस बदलाव ने भाजपा के कोर वोट बैंक को कमजोर कर दिया।

आंतरिक कलह और संगठनात्मक समस्याएं

चुनावी टिकट बंटवारे में असंतोष और मनमानी के आरोप भी पार्टी के भीतर उठे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मुद्दे पर स्पष्ट रूप से अपनी असहमति जताई थी। यह भी कहा जा रहा है कि कुछ नेताओं की अनदेखी और गलत फैसलों के कारण पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा।

जेपी नड्डा का बयान

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इंडियन एक्सप्रेस के एक इंटरव्यू में कहा था कि “अटल जी के समय भाजपा कमजोर थी, तब संघ की जरूरत पड़ती थी। आज भाजपा बहुत मजबूत हो गई है, हमें संघ की कोई जरूरत नहीं है। भाजपा किसी भी तरह की लड़ाई स्वयं लड़ सकती है।” इस बयान ने पार्टी के भीतर और बाहर कई विवादों को जन्म दिया। कई लोगों का मानना है कि इस बयान ने भाजपा और संघ के बीच तनाव को बढ़ा दिया, जिससे पार्टी को नुकसान हुआ।

भाजपा की प्रतिक्रिया और आगे की रणनीति

इस हार के बाद भाजपा ने इसकी विस्तृत जांच के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है। इस टास्क फोर्स में 60 से अधिक सदस्य शामिल हैं, जो गांव-गांव जाकर हार के कारणों का पता लगाएंगे। पार्टी यह जानने की कोशिश कर रही है कि किसने भीतरघात किया और किस कारण से कोर वोटर उनसे दूर हुए। इसके अलावा, पार्टी के नेताओं की एक टीम हार की वजहों का अध्ययन करने के लिए बनाई गई है, जो विभिन्न विधानसभाओं में जाकर स्थिति का जायजा लेगी।

उत्तर प्रदेश में भाजपा की हार कई जटिल कारणों का परिणाम है। सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर सरकार की विफलताएं, प्रमुख नेताओं की हार, वोट प्रतिशत में गिरावट और संगठनात्मक समस्याएं इस हार के मुख्य कारण रहे हैं। अरविंद केजरीवाल का योगी आदित्यनाथ को हटाए जाने का बयान और जेपी नड्डा का संघ के प्रति उदासीनता का प्रदर्शन भी हार के प्रमुख कारणों में शामिल हैं।

भाजपा अब इन कारणों का विश्लेषण कर रही है ताकि भविष्य में ऐसी गलतियों से बचा जा सके और अपनी स्थिति को मजबूत कर सके। इस हार ने भाजपा को आत्ममंथन करने पर मजबूर कर दिया है और पार्टी अब आगे की रणनीति बनाने में जुट गई है। इसके साथ ही, यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में पार्टी किस तरह से अपनी नीतियों और कार्यशैली में बदलाव करती है ताकि वह पुनः अपनी खोई हुई जमीन वापस पा सके।

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