पिछले 39 साल से अन्न-जल का किया है परित्य
हरिंद्र सिंह दैनिक इंडिया न्यूज लखनऊ।भारतीय हिन्दू धर्म में, अनगिनत मान्य साधु-संतों की गहरी तपस्या लोगों को प्रभावित करती है। उनमें से एक अद्वितीय तपस्वी हैं, श्री श्री 1008 बाबा कालिदास कृष्णानंद परमहंस महाराज, जिन्होंने पिछले 39 साल से अन्न और जल से संन्यास ग्रहण किया है, और दिन में केवल एक बार नारियल पानी पीते हैं।
इन महान तपस्वी संत का महत्वपूर्ण प्रवेश आंवला में अक्षय तृतीया के अवसर पर हुआ। गुरुदेव विभिन्न स्थानों पर देश के 31 गौशालाओं का प्रबंधन करते हैं, और उनका मुख्य आश्रम हरियाणा के बहादुरगढ़, सापला जी में स्थित है।
पीएम मोदी को लेकर बाबा कालिदास ने कह दी यह बात….
मीडिया के साथ बातचीत करते समय, तपस्वी संत श्री श्री 1008 बाबा कालिदास कृष्णानंद परमहंस महाराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंध में, उन्होंने कहा, “वे आरएसएस से जुड़े हुए हैं, और इसी दौरान मुझे उनसे मिलने का मौका मिला। प्रधानमंत्री मोदी से मिलना कोई बड़ी बात नहीं है, वे बहुत ही सरल और सहज व्यक्ति हैं। मेरे पास प्रधानमंत्री मोदी के साथ पुराने और गहरे संबंध हैं, और हमें हमेशा मिलने का मौका मिलता है, और आगे भी मिलता रहेगा।”
39 साल से ऐसे हैं जिंदा…
बाबा कालिदास ने बताया कि उन्होंने 1984 में अन्न जल का त्याग कर दिया था। उन्हें लगा कि नारियल का जो फल है वो शिव रूप में है। बाहर जटा, अंदर कठोर उसके अंदर फल और उसके अंदर जल होता है। नारियल पानी में सभी तत्व विटामिंस मिल जाते हैं। इसलिए वो आज तक नारियल पानी पीकर जीवन जीते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि वो कई साल तक लता, पत्ता, फल फूल खाकर रहे थे। इस दौरान उन्होंने सोचा कि धरती की सबसे पवित्र चीज क्या होगी। उसे खाकर क्यों न जिंदा रहा जाए। नारियल सबसे पवित्र होता है। इसलिए उसी का सेवन करके जीवित हूं।
परमहंस महाराज की शिक्षाएँ लोगों को सादगी, आध्यात्मिक समर्पण और निस्वार्थ सेवा का जीवन जीने के लिए करती है प्रेरित
संत श्री श्री 1008 बाबा कालिदास कृष्णानंद परमहंस महाराज की शिक्षाएँ आध्यात्मिकता, सादगी और आत्म-प्राप्ति के दर्शन में निहित हैं। हालाँकि उनकी शिक्षाएँ विशाल और गहन हैं, यहाँ उनके आध्यात्मिक ज्ञान और मार्गदर्शन के कुछ प्रमुख पहलू हैं:
- सादगी का महत्व: उनकी शिक्षाओं का एक केंद्रीय सिद्धांत सादगी है। वह भौतिक आसक्तियों और इच्छाओं से मुक्त, न्यूनतम जीवन शैली की वकालत करते हैं। उनके अनुसार, सादा जीवन जीना आध्यात्मिक विकास और आंतरिक शांति के लिए अनुकूल है।
- ध्यान और आत्म-साक्षात्कार: संत श्री कालिदास कृष्णानंद परमहंस महाराज आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के साधन के रूप में ध्यान के महत्व पर जोर देते हैं। उनका मानना है कि ध्यान के माध्यम से, कोई भी अपने आंतरिक स्व से जुड़ सकता है और दिव्य उपस्थिति का अनुभव कर सकता है।
- मंत्रों और जप की शक्ति: मंत्रों और पवित्र भजनों का जाप उनकी शिक्षाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। वह अपने अनुयायियों को मन को शुद्ध करने और आध्यात्मिक ऊर्जा का आह्वान करने के तरीके के रूप में नियमित मंत्र जाप में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
- मानवता की सेवा: अपनी कठोर जीवनशैली के बावजूद, वह मानवीय और धर्मार्थ गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल हैं। वह सिखाते हैं कि मानवता की सेवा करना पूजा का एक रूप है और आध्यात्मिक यात्रा का एक अनिवार्य पहलू है।
- भौतिकवाद से अलगाव: वह अपने अनुयायियों को भौतिक संपत्ति और सांसारिक इच्छाओं से खुद को अलग करने के लिए मार्गदर्शन करते है। उनके अनुसार, सच्चा सुख और संतुष्टि आध्यात्मिक कार्यों में पाई जाती है, धन या भौतिक वस्तुओं के संचय में नहीं।
- आध्यात्मिक ज्ञान: संत श्री कालिदास कृष्णानंद परमहंस महाराज विभिन्न आध्यात्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के गहन जानकार हैं। वह अपने शिष्यों को यह ज्ञान प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक अवधारणाओं की गहरी समझ हासिल करने में मदद मिले।
- सार्वभौमिक प्रेम और करुणा: वह सार्वभौमिक प्रेम और करुणा के महत्व पर जोर देते हैं। वह सिखाते हैं कि प्रेम और दया सभी प्राणियों तक फैलनी चाहिए, और करुणा का अभ्यास करना आध्यात्मिक विकास का मार्ग है।
- धर्मों की एकता: उनकी शिक्षाएँ इस विचार को बढ़ावा देती हैं कि सभी धर्म और आध्यात्मिक मार्ग अंततः एक ही दिव्य सत्य की ओर ले जाते हैं। वह सभी धर्मों के प्रति सम्मान को प्रोत्साहित करते हैं और धार्मिक और आध्यात्मिक प्रथाओं की एकता में विश्वास करते हैं।
- अनुशासन और समर्पण: संत श्री श्री 1008 बाबा कालिदास कृष्णानंद परमहंस महाराज की अपनी अनुशासित जीवनशैली उनके अनुयायियों के लिए एक आदर्श के रूप में कार्य करती है। वह किसी की आध्यात्मिक यात्रा में समर्पण, ईमानदारी और अनुशासन की आवश्यकता पर जोर देते हैं।
- आंतरिक शांति और संतुष्टि: वह सिखाते हैं कि सच्ची शांति और संतुष्टि स्वयं के भीतर, आत्म-बोध और परमात्मा के साथ गहरे संबंध के माध्यम से पाई जाती है।
संत श्री श्री 1008 बाबा कालिदास कृष्णानंद परमहंस महाराज की शिक्षाएँ कई लोगों को सादगी, आध्यात्मिक समर्पण और निस्वार्थ सेवा का जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हैं। उनका ज्ञान व्यक्तियों को उनकी आध्यात्मिक यात्राओं में मार्गदर्शन करता है, जिससे उन्हें आंतरिक परिवर्तन और ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिलती है।
इस अद्वितीय तपस्वी ने नशा मुक्ति के लिए छेड़ रखा है विशेष अभियान
1984 से अपने उग्र साधना मार्ग पर, मशहूर बाबा कालिदास कृष्णानंद परमहंस महाराज ने अन्न और पानी का त्याग किया है। वे केवल नारियल पानी पीते हैं और इसे सबसे पवित्र मानते हैं, क्योंकि वे इसे सर्वोत्तम मानते हैं। तपस्वी संत श्री श्री 1008 बाबा कालिदास कृष्णानंद परमहंस महाराज ने भिलाई प्रवास के दौरान घोषित किया कि वे नशा मुक्ति के लिए विशेष अभियान का संचालन कर रहे हैं।
मीडिया के साथ बातचीत के दौरान, बाबा ने उजागर किया कि आज के युवा नशे की ओर बढ़ रहे हैं, जिसके कारण धर्म परिवर्तन भी तेजी से बढ़ रहा है। यह समस्या हमारे देश के भविष्य को प्रभावित कर रही है। हम नशा मुक्ति अभियान के माध्यम से लोगों को धर्म से जुड़ने, नशे को छोड़ने, गौ की सेवा और संरक्षण करने का संदेश दे रहे हैं। इसके साथ ही, हम शांति के मार्ग पर चलने की भी प्रोत्साहना देते हैं।
39 सालों से सिर्फ नारियल पानी पीकर जीवन जीते आ रहे : बाबा कालिदास
वर्ष 1984 में, बाबा कालिदास ने अन्न जल का त्याग किया और इस दौरान उन्होंने बताया कि वे नारियल को भगवान शिव के रूप में मानते हैं। यह फल कठोर होता है और उसके अंदर फल और जल होता है। उन्होंने समझाया कि नारियल पानी में सभी पोषण तत्व और विटामिंस आसानी से मिलते हैं, इसलिए वे नारियल पानी पीकर जीवन जीते आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे कई दशकों तक लता, पत्ता, फल और फूल का सेवन करते रहे हैं, लेकिन फिर उन्होंने सोचा कि धरती की सबसे पवित्र चीज क्या हो सकती है, और उनका उत्तर नारियल था। उन्होंने नारियल का सेवन करना शुरू किया और इससे वे जीवन जीते आ रहे हैं।
आईये यह भी जाने कि 10 महाविद्याएं आखिर है क्या ?
क्या आपको मालूम है कि तंत्र-साधना में, 10 महाविद्याओं का विशेष महत्व होता है। इन महाविद्याओं का उद्भव मां पार्वती या सती के रूप में हुआ था, जिन्होंने दसों दिशाओं में अपने विशेष रूप दिखाए थे। काली इनमें से पहला रूप है, और ये महाविद्याएं तंत्रिक शक्तियों को प्राप्त करने के लिए साधकों द्वारा साधा जाता है।
तांत्रिक साधना में, 10 महाविद्याओं का महत्वपूर्ण स्थान है, जो गुप्त रूप से प्राप्त होती हैं। इन 10 महाविद्याओं का संग्रह काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, भुवनेश्वरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, और कमला के रूप में होता है। ये सभी देवियां एक ही महाविद्या के भिन्न-भिन्न रूप हैं, जिन्हें आधिकारिक तौर पर 10 महाविद्या के रूप में जाना जाता है। इनका दो समूह होता है।
काली कुल और श्रीकुल दो प्रमुख श्री पराशक्ति कुल हैं:
काली कुल में शामिल हैं – मां काली, मां तारा, और मां भुवनेश्वरी।
श्रीकुल में शामिल हैं – मां बगलामुखी, मां कमला, मां छिन्नमस्ता, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भैरवी, मां मांतगी, और मां धूमावती।
देवी शक्ति के 10 रूप और उनकी दिशाएँ हैं:
- काली मां – उत्तर दिशा
- तारा देवी – उत्तर दिशा
- श्री विद्या (षोडशी-त्रिपुर सुंदरी) – ईशान दिशा
- देवी भुवनेश्वरी – पश्चिम दिशा
- श्री त्रिपुर भैरवी – दक्षिण दिशा
- माता छिन्नमस्ता – पूर्व दिशा
- भगवती धूमावती – पूर्व दिशा
- माता बगला (बगलामुखी) – दक्षिण दिशा
- भगवती मातंगी – वायव्य दिशा
- माता श्री कमला – नैरृत्य दिशा
ये देवियाँ दिशाओं को प्रतिष्ठित करती हैं और विभिन्न कार्यों और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पूजी जाती हैं।