दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ ।डीडी इंडिया वेलफेयर ट्रस्ट के संस्थापक व राष्ट्रीय अध्यक्ष हरिंद्र सिंह ने गंगा दशहरा के पावन पर्व पर समस्त प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई व मंगल शुभकामनाएं ज्ञापित किया।उन्होंने अपने संदेश में गंगा दशहरा और वेद माता गायत्री के प्रादुर्भाव के बारे में कुछ उल्लेख किया है।
गंगा दशहरा और वेद माता गायत्री का प्राकट्य दिवस
गंगा दशहरे पर स्नान-दान से कई यज्ञ करने जितना पुण्य प्राप्त होता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भागीरथ ने अपने पितरों को तृप्त करने के लिए अखंड तपस्या की। तपस्या के फलानुसार ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि पर स्वर्ग से धरती पर माँ गंगा का अवतरण हुआ। इसलिए इस पर्व का नाम गंगा दशहरा पड़ा, इस दिन गंगा स्नान, पूजा और दान किया जाता है।
इस पर्व पर गंगा स्नान करने और ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देने से कई यज्ञ करने के बराबर विशेष पूर्ण फल मिलता है। इस दिन सुबह जल्दी गंगा किनारे या किसी तीर्थ स्थान पर गंगाजल से नहाएं। इसके बाद सुगंधित द्रव्य, नारियल, चावल और फूल से गंगा पूजन करें और दीपक जलाएं। इसके बाद गंगा को प्रणाम करें।
गायत्री जन्मोत्सव: वेदमाता का प्राकट्य पर्व
धर्म ग्रंथों के मुताबिक ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को देवी गायत्री प्रकट हुई थीं। इन्हें वेदमाता कहा जाता है यानी सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई हैं। इन्हें भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा गया है।धर्म ग्रंथों में लिखा है कि मां गायत्री की उपासना से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और किसी वस्तु की कमी नहीं होती।
वेदों में प्रमाणित है वेदमाता के पावन अनुग्रह से हमें वैदिक तत्वज्ञान का अमृत- प्राशन करने का सुअवसर प्राप्त होता हो, यही हम सबके हृदय की एकमात्र कामना है —क्योंकि अथर्ववेद के अनुसार इसी से हमारी अन्य सभी इच्छाओं की परिपूर्ति हो जाती है !
स्तुता मया वरदा वेदमाता प्रोच्दयन्ताम् द्विजानाम !
आयुः प्राणं प्रजां पशुं कीर्ति द्रविणं ब्रह्मवर्चसं मह्यं दत्त्वा व्रजत ब्रह्मलोकम !!
मैंने वरदायिनी वेदमाता की स्तुति की है ! यह हम सब को पवित्र करने वाली है ! हमारी प्रार्थना है कि यह उन सबको पवित्र जीवन जीने की प्रेरणा प्रदान करें, जो मानवीय संस्कारों से संपन्न हैं ! यह हमें लम्बी आयु, प्राणशक्ति, श्रेष्ठ संतानें, पशु समृद्धि तथा ब्रह्मतेज प्रदान करें गायत्री ही वेदमाता हैं ! इस गायत्री मंत्र से हम सभी सुपरिचित हैं,
जो इस प्रकार है —
ओsम भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात !।
मंत्र का सामान्य अर्थ इस प्रकार हैं—
हम सभी (सवितुः देवस्य) सबको प्रेरित करने वाले देदीप्यमान सविता (सूर्य) देवता के (तत) उस सर्वव्यापक (वरेण्यम) वरन करने योग्य अर्थात अत्यंत श्रेष्ठ (भर्गः) भजनीय तेज़ का (धीमहि) ध्यान करते हैं, ये (यः) जो (नः) हमारी (धियः) बुद्धियों को (प्रचोदयात) सन्मार्ग की दिशा में प्रेरित करता हैं !
इस मंत्र को गायत्री मंत्र इसलिए कहा जाता हैं, क्योंकि यः गायत्री छंद में निबद्ध हैं !’गायत्री’ का शाब्दिक अर्थ हैं गायक की रक्षा करनेवाली — ‘गायन्तं त्रायते’ यहवेद का प्रथम छंद हैं जिसमे २४ अक्षर और तीन पाद होते हैं ! इसके प्रत्येक पाद में आठ-आठ अक्षर होते हैं ! इस मंत्र को देवता के आधार पर सावित्री मंत्र भी कहा जाता हैं, क्योंकि इसके देवता सविता हैं ! सामान्यरूप से सविता सूर्य का ही नामान्तर हैं, जो maanav जीवन को सर्वाधिक प्रभावित करनेवाले देवता हैं ! अधिक गहराई में जाने पर सविता को सूर्य-मण्डल के विभिन्न देवोँ में से एक माना जा सकता हैं !
गायत्री मंत्र हमारी परम्परा में सर्वाधिक पवित्र और उत्प्रेरक मंत्र हैं ! इसका जप करते समय भगवान सूर्य के अरुण अथवा बालरूपं का ध्यान करना चाहिए ! जप करते समय मंत्र के अर्थ का भलीभांति मनन करना चाहिए !, जैसा कि महर्षि पतंजलि ने अपने योग सूत्र में कहा हैं –‘तज्जपस्तदर्थभावनाम!’ किसी भी मंत्र के जप का अभिप्राय हैं बार-बार उसके अर्थ की भावना करना, उसे मन और मस्तिष्क में बैठाना ! किसी ना किसी सन्दर्भ में, यः मंत्राचारों वेदों में प्राप्त हो जाता हैं ! परम्परा के अनुसार इस मंत्र का साक्षात्कार सर्वप्रथम महर्षि विश्वामित्र ने किया था ! वही इस मंत्र के द्रष्टा अथवा ऋषि हैं ! वैदिक पारम्परिक मान्यता के अनुसार वेद-मन्त्रों में कोई रचयिता नहीं हैं ! सृष्टि के प्रारम्भ , समाधि अथवा गंभीर ध्यान की अवस्था में ये ऋषियों के अंतःकरण में स्वयं प्रकट हुए थे ! जिस ऋषि ने जिस मंत्र का दर्शन किया वही उसका द्रष्टा हो गया ! इस मंत्र का जप विश्व भर में व्याप्त किसी भी उपासना-सम्प्रदाय का कोई भी अनुयायी कर सकता हैं, क्योंकि बुद्धि की प्रेरणा की आवकश्यकता तो सभी सामान रूप से अनुभव करते हैं ! हाँ, ध्यानजप से पूर्व शारीरिक शुद्धि कर लेना आवकश्यक हैं !
किसी भी वेद मंत्र का उच्चारण करने से पूर्व ‘ओsम’ का उच्चारण करना आवकश्यक हैं !’ओsम’ परमात्मा का श्रेष्ठ नाम हैं — इसमें तीन वर्ण हैं –अकार, उकार और मकार! ‘ओsम’ के मध्य में लगी तीन (३) की संख्या इसके त्रिमातृक अथवा पलुप्त उच्चारण कई द्योतक हैं ! स्वरों के ह्र्स्व और दीर्घ उच्चारण से हम सभी परिचित हैं — लेकिन वेद में इसके आगे प्लुत उच्चारण की व्यवस्था भी हैं ! ह्रस्वास्वर के उच्चारण में यदि एक मात्रा का काल लगता हैं, तो प्लुत में तीन मात्राओं का काल लगता हैं ! ‘ओsम’ अथवा ओंकार भी विश्व के प्रायः सभी धार्मिक मतों में किसी ना किसी प्रकार से विद्यमान हैं !
‘भूः’ ‘भुवः’ और ‘स्वः’ –ये तीनो महाव्याहृतियाँ हैं ! ये तीनो क्रमशः पृथ्वी, अनंतरिक्ष और स्वर्ग अथवा द्युलोक के वाचक हैं !
कैसे हुआ था वेदमाता गायत्री का प्रादुर्भाव
मां भुवनेश्वरी, वेदमाता गायत्री और ब्रह्मा जी के बीच एक महत्वपूर्ण कथा है जो पुराने हिंदू पौराणिक ग्रंथों में प्रस्तुत की गई है। यह कथा प्राचीन समय में ब्रह्मा जी की तपस्या और उनके श्रद्धालु भक्तों के सम्बंध में है। चलिए, हम इस कथा को बारीकी से समझते हैं:
कथा के अनुसार, एक समय की बात है, ब्रह्मा जी महायोगी और जगत के सृजनहारक देवता हैं। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए ब्रह्मांड की रचना की थी। ब्रह्मा जी को सृष्टि करने के बाद वे अपनी तपस्या में लग गए, जिसका उद्देश्य ईश्वरीय शक्ति को प्राप्त करना था। ब्रह्मा जी के इस निश्चल तपस्या के दौरान वे बहुत समय तक मानसिक और शारीरिक योगाभ्यास करते रहे।
ब्रह्मा जी के तप की सुविधा के लिए, मां भुवनेश्वरी ने अपनी कृपा प्रकट की और उन्हें वेदमाता गायत्री का प्रादुर्भाव हुआ। गायत्री देवी त्रिदेवी और ब्रह्मा जी की आदि शक्ति हैं, जो ज्ञान और प्रकाश का प्रतीक हैं।
वेदमाता गायत्री देवी ने अपनी कृपा से ब्रह्मा जी की तपस्या को ध्यान में लेते हुए उन्हें एक विशेष वरदान दिया। वह वरदान था गायत्री मंत्र का उपदेश। गायत्री मंत्र एक प्राचीन मन्त्र है जिसे धारण करने से मनुष्य को ज्ञान, बुद्धि, और सामर्थ्य प्राप्त होते हैं। ब्रह्मा जी इस मंत्र की साधना करके अद्यात्मिक ज्ञान में समृद्ध हुए और आदिशक्ति गायत्री के आदेशों का पालन करते हुए सृष्टि के निर्माता बने।
इस प्रकार, मां भुवनेश्वरी का तप और वेदमाता गायत्री का प्रादुर्भाव ब्रह्मा जी की तपस्या को विशेष आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करने में सहायता करते हैं। यह कथा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है और श्रद्धालु लोग इसे ध्यान में रखते हैं ताकि उन्हें ज्ञान और आध्यात्मिकता की प्राप्ति हो सके।