दैनिक इंडिया न्यूज़ , प्रतापगढ़, 28 सितम्बर: जगतगुरु अवधेश प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने अपने पैतृक निवास प्रतापगढ़ में अपने पिता की पुण्यतिथि पर विशेष श्राद्ध कर्म संपन्न किया। इस अवसर पर उन्होंने मीडिया से बातचीत के दौरान पितृपक्ष और श्राद्ध तर्पण की महत्ता पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि पितृपक्ष का समय पूर्वजों के प्रति सम्मान व्यक्त करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए तर्पण करने का सर्वोत्तम अवसर होता है।
पितृपक्ष और श्राद्ध तर्पण का धार्मिक महत्व
जगतगुरु अवधेश प्रपन्नाचार्य जी ने बताया कि पितृपक्ष हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण समय है, जो भाद्रपद पूर्णिमा से शुरू होकर अमावस्या तक चलता है। इस दौरान हम अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं। उन्होंने कहा कि यह केवल धार्मिक कर्तव्य ही नहीं है, बल्कि पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम भी है, जिससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है।
श्राद्ध तर्पण की प्रक्रिया पर विस्तृत जानकारी
जगतगुरु जी ने श्राद्ध तर्पण की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए बताया कि श्राद्ध कर्म में सबसे पहले पितरों का आवाहन किया जाता है और फिर जल, तिल और कुशा का उपयोग कर तर्पण किया जाता है। यह प्रक्रिया श्रद्धा और निष्ठा के साथ की जाती है, जिससे पितर संतुष्ट होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हर व्यक्ति को पितृपक्ष में अपने पितरों का स्मरण कर उनका तर्पण अवश्य करना चाहिए।
परंपराओं को जीवित रखने का आग्रह
जगतगुरु अवधेश प्रपन्नाचार्य जी ने कहा कि आज के समय में कई लोग इन महत्वपूर्ण धार्मिक परंपराओं से विमुख हो रहे हैं, जो चिंताजनक है। उन्होंने सभी से अपील की कि वे इन परंपराओं को जीवित रखें और आने वाली पीढ़ियों को भी श्राद्ध कर्म के महत्व के बारे में जागरूक करें।
अंत में, जगतगुरु ने कहा कि पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध और तर्पण का धार्मिक महत्व असीम है। यह केवल एक कर्मकांड नहीं है, बल्कि पूर्वजों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि और उनके प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है।