पुलिस सुधार की व्यापक जरूरत: एक समग्र दृष्टिकोण

  • भारतीय पुलिस व्यवस्था में रिफॉर्म क्यों नहीं?


हरिंद्र सिंह दैनिक इंडिया न्यूज, लखनऊ।भारत को 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली, लेकिन कई ब्रिटिश कालीन कानून और व्यवस्थाएं आज भी देश में लागू हैं। इनमें से एक प्रमुख कानून है भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1861, जो ब्रिटिश शासकों द्वारा बनाए गए थे। ये कानून भारतीयों पर नियंत्रण रखने और ब्रिटिश सत्ता को बनाए रखने के उद्देश्य से बनाए गए थे। इस लेख में हम इन कानूनों के इतिहास, वर्तमान प्रभाव, और पुलिस सुधार के लिए मॉडल पुलिस एक्ट 2006 की आवश्यकता पर विचार करेंगे।

ब्रिटिश कालीन कानून और उनकी वर्तमान प्रासंगिकता
आईपीसी और सीआरपीसी 1861 का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के लिए भारतीय समाज को नियंत्रण में रखना था। आजादी के बाद भी इन कानूनों में बहुत कम बदलाव किए गए हैं। ये कानून भारतीय समाज की वर्तमान आवश्यकताओं और चुनौतियों को पूरा करने में असमर्थ हैं। उदाहरण के लिए, पुलिस बल आज भी ब्रिटिश कालीन ढांचे और मानसिकता के तहत काम कर रहा है, जिससे पुलिस की छवि और कार्यशैली पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।

आईपीसी और सीआरपीसी में मौजूद खामियां

  1. अमानवीय व्यवहार और यातना: ब्रिटिश काल के दौरान पुलिस को भारतीयों पर अत्याचार करने की छूट दी गई थी। आज भी कई मामलों में पुलिस द्वारा आरोपियों के साथ अमानवीय व्यवहार और यातना की घटनाएं सामने आती हैं।
  2. भ्रष्टाचार: पुलिस बल में भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें हैं, जो ब्रिटिश शासन की मानसिकता का परिणाम है। रिश्वतखोरी और अवैध वसूली आम हो गई है।
  3. जवाबदेही की कमी: पुलिसकर्मियों की जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया धीमी और जटिल है, जिससे पुलिसकर्मी अपने पद का दुरुपयोग करते हैं।
  4. पुरानी प्रक्रियाएं: सीआरपीसी में कई प्रक्रियाएं पुरानी और अप्रासंगिक हो चुकी हैं, जो न्याय प्रक्रिया को धीमा और जटिल बनाती हैं।

मॉडल पुलिस एक्ट 2006 की आवश्यकता
2006 में पुलिस सुधार के उद्देश्य से मॉडल पुलिस एक्ट का गठन किया गया था। इसका उद्देश्य पुलिस बल को अधिक जवाबदेह, पारदर्शी, और संवेदनशील बनाना था। यह एक्ट निम्नलिखित प्रमुख सुधारों की बात करता है:

  1. स्वतंत्र पुलिस आयोग का गठन: इस एक्ट के तहत स्वतंत्र पुलिस आयोग का गठन किया जाना है, जो पुलिसकर्मियों की नियुक्ति, प्रशिक्षण, और पदोन्नति के मामलों की निगरानी करेगा।
  2. पुलिस की जवाबदेही: पुलिस बल की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र जांच संस्थाओं का प्रावधान है, जो पुलिसकर्मियों के खिलाफ शिकायतों की जांच करेंगी।
  3. सामुदायिक पुलिसिंग: जनता और पुलिस के बीच बेहतर संबंध स्थापित करने के लिए सामुदायिक पुलिसिंग को प्रोत्साहित किया गया है।
  4. पारदर्शिता: पुलिस बल की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए विभिन्न सुधारों का प्रस्ताव रखा गया है, जैसे कि शिकायत निवारण प्रणाली और पारदर्शी पदोन्नति प्रक्रिया।

भारत में पुलिस द्वारा किए गए अपराधों के आंकड़े
भारत में पुलिस द्वारा किए गए अपराधों के आंकड़े चिंताजनक हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के अनुसार, हर साल पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज शिकायतों की संख्या हजारों में होती है। 2022 में NHRC को पुलिस के खिलाफ कुल 48,829 शिकायतें प्राप्त हुईं। इनमें से कई शिकायतें पुलिस द्वारा की गई हिंसा, अवैध हिरासत, और यातना से संबंधित थीं। पुलिसकर्मियों की अवैध गतिविधियों और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सख्त निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए।

उदाहरण: बलिया, उत्तर प्रदेश की घटना


एक उदाहरण के रूप में, उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नरही थाना का मामला लिया जा सकता है। यह थाना बिहार के बॉर्डर पर स्थित है, जहां से हर दिन लगभग 1000 ट्रकों का आवा-जावा होता है। यहां के पुलिसकर्मी प्रत्येक ट्रक से 500 रुपये अवैध रूप से वसूलते थे। कई शिकायतों के बाद, एडीजीपी बनारस ने आजमगढ़ के अधिकारियों के साथ मिलकर यूपी एसटीएफ की मदद से थाने पर छापा मारा और अपराधिक स्वभाव वाले पुलिसवालों को गिरफ्तार किया। इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि पुलिसकर्मियों की अवैध गतिविधियों पर निगरानी और नियंत्रण की सख्त आवश्यकता है।

मॉडल पुलिस एक्ट 2006 के लागू होने के लाभ
अगर मॉडल पुलिस एक्ट 2006 को प्रभावी रूप से लागू किया जाता है, तो इससे पुलिस द्वारा किए गए अपराधों में काफी कमी आ सकती है। यह एक्ट पुलिस बल को अधिक जवाबदेह, पारदर्शी, और संवेदनशील बनाने के लिए महत्वपूर्ण सुधारों का प्रस्ताव करता है। इससे पुलिसकर्मियों की जवाबदेही बढ़ेगी, भ्रष्टाचार में कमी आएगी, और जनता और पुलिस के बीच विश्वास बहाल होगा।

न्यायपालिका की भूमिका
न्यायपालिका का भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण भूमिका है। पुलिस सुधार और कानून के अनुपालन में न्यायपालिका की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। अदालतें पुलिस की अवैध गतिविधियों पर कठोर कार्रवाई कर सकती हैं और पुलिसकर्मियों को जिम्मेदार ठहरा सकती हैं। इसके अलावा, न्यायपालिका के माध्यम से पुलिस सुधार कानूनों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सकता है।

समस्याएं और समाधान

  • पुलिस की प्रशिक्षण और मानसिकता: पुलिस बल को नई तकनीकों और संवेदनशीलता के साथ प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। इसके लिए आधुनिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए।
  • जवाबदेही और पारदर्शिता: पुलिसकर्मियों की जवाबदेही तय करने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए स्वतंत्र निगरानी संस्थाओं का गठन आवश्यक है।
  • आधुनिकीकरण: पुलिस बल के आधुनिकीकरण के लिए पर्याप्त संसाधनों और तकनीकों का प्रावधान किया जाना चाहिए।
  • जनता की भागीदारी: पुलिस और जनता के बीच विश्वास बहाल करने के लिए सामुदायिक पुलिसिंग का प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

भारत को आजादी मिले सात दशक से अधिक हो चुके हैं, लेकिन कानूनी और पुलिस व्यवस्था में अभी भी कई सुधारों की आवश्यकता है। मॉडल पुलिस एक्ट 2006 का प्रभावी कार्यान्वयन और ब्रिटिश कालीन कानूनों में सुधार देश की पुलिस व्यवस्था को अधिक उत्तरदायी और जनोपयोगी बना सकता है। पुलिसकर्मियों की अवैध गतिविधियों और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सख्त निगरानी और जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए। न्यायपालिका की सक्रिय भागीदारी और जनता की भागीदारी से पुलिस सुधार के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है, जिससे देश को वास्तव में कानूनी आजादी मिल सके।

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