
दैनिक इंडिया न्यूज मऊ, उत्तर प्रदेश
मऊ।
श्री दक्षिणेश्वर हनुमान मंदिर सेवा समिति द्वारा आयोजित रामकथा में व्यास पीठ से कथावाचक पूज्य विश्वम्भर जी ने प्रभु श्रीराम के वन गमन की कथा सुनाते हुए बताया कि जब चक्रवर्ती सम्राट महाराजा दशरथ ने अपने ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम के राज्याभिषेक की घोषणा करते हैं, तो देवलोक के देवता चिंतित हो जाते हैं और आपस में मंत्रणा कर देवी सरस्वती को मंथरा की बुद्धि फेरने के लिए सहमत करते हैं । मंथरा, कैके ई के मन में अपने पुत्र भरत को राजा के तौर पर देखने और श्री रामचन्द्र जी को वनवास भेजने का विचार डालती है। रानी कैकेई कोप भवन में चली जाती है, जब राजा दशरथ उन्हें मनाने आते हैं तो रानी कैकेई महाराज से दो वरदान मांगती हैं पहला श्रीराम के लिए 14 वर्ष का वनवास और दूसरा भरत का राजतिलक । यह सुनकर राजा दशरथ को श्रवण कुमार के दुर्घटनावश वध पर शांतनु का दिया श्राप याद आता है, जिसमें उन्हें पुत्र वियोग में मृत्यु का श्राप दिया गया था। पिता द्वारा दिए वचन को पुरा करने के लिए श्रीराम और उनके साथ लक्ष्मण और सीता भी वन को प्रस्थान करते हैं और अन्ततः श्रीराम के वियोग में राजा दशरथ प्राण त्याग देते हैं ।
प्रभु श्रीराम वनवास जाने के लिए माँ गंगा के किनारे पहुंचते हैं, जहां केवट उनके पांव पखारने के बाद उन्हें गंगा पार कराता है। गंगा पार करने के बाद प्रभू श्रीराम माता जानकी व भ्राता लक्ष्मण के साथ भारद्वाज ऋषि के आशीर्वाद से आश्रम में कुटी बनाकर विश्राम करते हैं ।
रामकथा से पूर्व भरत भैया, डॉक्टर आर. एन. सिंह, शिवानंद मल्ल, ने व्यासपीठ व रामचरितमानस पाठ का आरती व पूजन किया।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से अमित कुमार गुप्ता, संतोष जायसवाल, अनिल मिश्रा, हरिओम, वैभव, हिमांशु, विनोद गुप्ता, विष्णु, राजकुमार, अनिल मद्धेशिया, उमेश जायसवाल आदि उपस्थित रहे।