लखनऊ(रामकथा का पांचवां दिन)

त्याग की मूर्ति हैं रामायण के पात्र : साध्वी ऋतम्भरा

श्रीराम वनवास और केवट प्रसंग सुन भाव विभोर हुए श्रद्धालु

उदय राज
डी डी इंडिया न्यूज

लखनऊ।

वानप्रस्थ जिम्मेदारियों से मुक्ति का पर्व है। मिल्कियत रखो और मालकियत छोड़ दो। जीवन का उत्तरार्द्ध आए तो दशरथ की तरह दर्पण देखना चाहिए। तीर्थों को अपने भीतर बसा लो। अपने दृष्टिकोण को बदल लो। नज़र बदलेगी तो नज़ारे भी बदल जायेंगे। जीवन स्वर्ग बन जाएगा।

ये बातें बुधवार को साध्वी ऋतम्भरा ने कहीं। सीतापुर रोड स्थित रेवथी लान में चल रही राम कथा के पांचवें दिन उन्होंने राम वनवास और केवट का प्रसंग सुनाया। कथा आरम्भ होने के पूर्व मुख्य यजमान डा. नीरज बोरा ने सपत्नी व्यास पूजा की। प्रतिकूल मौसम के बाद भी खचाखच भरे पाण्डाल में लोगों ने खूब जयकारे लगाये। नाव में विराजमान सीता, लक्ष्मण और राम की मनोहर झांकी के बीच भाव विभोर श्रद्धालुओं ने नृत्य किया तथा झांकी पर पुष्पवर्षा की।








संगीतमय प्रवचन में मोरी नइया में लछिमन राम गंगा मैया धीरे बहो, कभी कभी भगवान को भी भक्तों से काम पड़े के साथ ही मानस की चौपाइयों ने वातावरण को भक्तिमय बनाया।

साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि रामायण के पात्र त्याग की मूर्ति हैं। कैकेयी ने कीर्ति का त्याग किया तो कोई भी किसी से कम नहीं। चारों भाइयों में त्याग की ऐसी भावना जिसमें अयोध्या का सिंहासन फुटबाल बन गया और चौदह बरस प्रभु श्रीराम की चरणपादुका ने शासन किया। साध्वी ने कहा कि आज न्यायालय मुकदमों से भरा है, भाई-भाई, पिता-पुत्र लड़़ रहे हैं ऐसे में मानस के पात्र राह दिखाते हैं।

वन गये तो बन गये मर्यादा पुरुषोत्तम :

साध्वी ने कहा कि माता पिता की आज्ञा हो तो देव भी सहायक होते हैं। आज्ञा पालन ही था कि प्रभु ने वन गमन स्वीकार किया। राम यदि वन न जाते तो भले ही राजा रामचन्द्र कहलाते किन्तु मर्यादा पुरुषोत्तम न होते। उन्होंने कहा कि विधि के विधान को शिव और वशिष्ठ मिटा सकते हैं किन्तु लीलाधर राम ने स्वयं अपना विधान रचा था और लोक हित में मनुज अवतार लिया था।

न टूटे मर्यादा की डोर :

साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि रामायण पराई स्त्री को मातृ भाव से देखने की सीख देता है। मां ने लक्ष्मण के वनगमन के समय कहा कि सीता व राम तुम्हारे भैया-भाभी नहीं अपितु माता-पिता हैं। इनका ध्यान रखना। साध्वी ने कहा कि जीजा-साली, देवर-भाभी के बीच मर्यादा की छोटी और पतली डोर होती है। रिश्तों की डोर टूटनी नहीं चाहिए।

बहू को सौंप दो चाभी :

साध्वी ने पारिवारिक कलह और अशान्ति को दूर करने के लिए मार्ग सुझाते हुए कहा कि दहेज में आलमारी, फ्रीज, गाड़ी आदि लोहा लाओगे तो अशान्ति फैलेगी ही। इनसे बचना है तो मेरा कहना मानो और लोहे की चाभियों का जो गुच्छा है उसे बहू को सौंप दो। उन्होंने दुःख प्रकट करते हुए कहा कि आज झगड़ों के मूल में धन की चाहना है। आश्रम आदि भी इससे रीते नहीं, शिष्य अपने गुरुओं को जहर दे रहे हैं।

गुण देखो अवगुण नहीं :

साध्वी ने कहा कि हर जगह शिकायत ही शिकायत है। हम अवगुण पर तो दृष्टि डालते हैं किन्तु गुण पर नहीं। अगर एक भी गुण पर दृष्टि गयी तो सारी शिकायतें दूर हो जायेंगी। उन्होंने कहा कि सन्त एकनाथ की पत्नी कलहकंठी थी और एक दिन जब वो घर से निकल रहे थे तो गन्दे पानी की बाल्टी उनपर उड़ेल दी। एकनाथ जी ने कहा कि कल तक गरजती थी और आज तो बरस भी पड़ी।

कथा में संघ के प्रान्त प्रचारक कौशल किशोर, भाग प्रचारक सुदीप, नन्दकिशोर अग्रवाल, गिरिजाशंकर अग्रवाल, उमाशंकर हलवासिया, आशीष अग्रवाल, भूपेन्द्र कुमार अग्रवाल ‘भीम’, पंकज बोरा, राजेश अग्रवाल, अनिल अग्रवाल मुन्ना, पार्षद शशि गुप्ता, भारत भूषण गुप्ता, मनोज अग्रवाल, दीपक अग्रवाल, अनुराग साहू, क्रान्ति गुप्ता, डा. ओम नारायण अवस्थी आदि उपस्थित रहे। आरती में हजारों श्रद्धालुओं समेत अनेक जनप्रतिनिधि व गणमान्य विभूतियां भी सम्मिलित हुईं।।।

Share it via Social Media

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *