लखनऊ का ड्रग ऑफिस: प्रशासनिक अनियमितताओं और लापरवाही का बना गढ़

कार्य प्रणाली पर उठे सवाल, फरियादियों को हो रही असुविधा

दैनिक इंडिया न्यूज़,लखनऊ: प्रदेश की राजधानी में स्थित ड्रग ऑफिस अपनी नाकारा व्यवस्था और प्रशासनिक अनियमितताओं के कारण चर्चा में है। कैसरबाग बस अड्डे के सामने रेडक्रॉस अस्पताल की दूसरी मंजिल पर संचालित यह कार्यालय, आम जनता की शिकायतों का समाधान करने में असमर्थ साबित हो रहा है।

ड्रग ऑफिस की कार्यशैली पर सवाल

ड्रग ऑफिस में ड्रग इंस्पेक्टर ने जनता से मिलने के लिए सप्ताह में केवल दो दिन, मंगलवार और शुक्रवार निर्धारित किए हैं। यदि इन दिनों में सरकारी अवकाश पड़ जाए, तो फरियादियों को निराश होकर लौटना पड़ता है। साथ ही, अधिकारियों द्वारा अपने-अपने क्षेत्रों का विभाजन भी असहजता और भ्रम की स्थिति पैदा कर रहा है।

स्थानांतरण का विवाद और अधिकारियों की चुप्पी

जानकारी के अनुसार, यह ड्रग ऑफिस अप्रैल 2010 में FDA विभाग के गठन के दौरान जिलाधिकारी कार्यालय की छत पर बने कमरे में स्थानांतरित किया गया था। उस समय के तत्कालीन ड्रग इंस्पेक्टर के.जी. गुप्ता को निलंबित किए जाने के बाद डी.के. तिवारी ने पदभार संभाला। हालांकि, कुछ ही समय बाद तिवारी ने रेडक्रॉस अस्पताल के पुराने कार्यालय में फिर से कार्य प्रारंभ कर दिया।

रेडक्रॉस अस्पताल प्रशासन द्वारा इसका विरोध भी किया गया, लेकिन अधिकारियों की चुप्पी के चलते यह ड्रग ऑफिस आज भी पुराने स्थान पर चल रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि प्रशासनिक आदेशों की अनदेखी क्यों की जा रही है और उच्च अधिकारियों ने इस मुद्दे पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।

जनता को हो रही परेशानी

सिस्टम में व्याप्त इन अनियमितताओं के कारण जनता को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। फरियादी अपनी शिकायतें लेकर ड्रग ऑफिस पहुंचते हैं, लेकिन उन्हें न तो समय पर अधिकारी मिलते हैं और न ही उनकी समस्याओं का समाधान होता है।

आवश्यकता है कड़े कदम उठाने की

ड्रग ऑफिस की इस कार्यप्रणाली से न केवल जनता का विश्वास कम हो रहा है, बल्कि यह सरकारी प्रशासनिक कार्यों की साख पर भी प्रश्नचिह्न लगा रहा है। संबंधित विभाग और उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को इस मामले में त्वरित कदम उठाकर सुधारात्मक कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि जनता को राहत मिल सके और ड्रग ऑफिस की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया जा सके।

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