दैनिक इंडिया न्यूज,लखनऊ:आज संस्कृतभारतीन्यास अवधप्रान्त कार्यालय, शिव मंदिरपरिसर महानगर लक्ष्मणपुरी मे गीता जयंती के अवसर पर गीता पर उवाच कार्यक्रम जे पी सिंह अध्यक्ष संस्कृतभारतीन्यास, साधना बर्थवाल,विनोद मिश्र,गौरव नायक की उपस्थित मे आयोजित किया गया। ब्रजेश बर्थवाल जनपद अध्यक्ष संस्कृत भारती ने संस्कृत बाल छात्रों,संस्कृत अनुरागीजनों को इस अवसर पर आमंत्रित कर गीता पर विमर्श के साथ पाठ तथा महत्व पर प्रकाश डाला। गौरव नायक संगठन मंत्री अवधप्रान्त ने समस्त उपस्थित बटुकों को संस्कृत के प्रति सचेष्ट करते हुए गीता के कर्म आधारित जीवन शैली तथा श्लोक के सही उच्चारण व व्याकरण से परिचित कराया। बटुकों ने अत्यंत उत्साह के साथ गीता का पाठ उच्च व शुद्ध स्वर से कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। सर्वप्रथम भगवान शिव ने पार्वती जी को,धृतराष्ट्र ने संजय को व कृष्ण ने अर्जुन को गीता ज्ञान से आलोकित किया।तदनंतर व्यास जी महराज ने गणेश जी को सुना कर लिपिबद्ध कराया। भारत मे घटित व श्रुति संकलित महाभारत मे गीता के 700 श्लोकों से अर्जुन को सम्पूर्ण जीवन दर्शन व कर्म आधारित परिणाम से अभिसिंचित कर श्रीमद्भागवद गीता के सबसे पहले दो शब्द- ‘धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे’। इस जगत में हम जीवन जीते है यह एक युद्ध क्षेत्र है। जीवन हमारा कुरुक्षेत्र भी है और धर्म क्षेत्र भी। यह हमारी कर्मभूमि है, जहाँ हम अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करते है।
अर्जुन जो कि गीता के प्रारंभ में अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण युद्ध को लड़ने जा रहा है। किन्तु वह अत्यधिक हताश, निराश, भ्रम, मोह में है। हम भी अपने जीवन में इसी तरह से हताशा और निराशा का सामना करते है। तो इन परिस्थितियों में भगवान श्रीकृष्ण जी समाधान देते है- क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्तवोत्तिष्ठ परन्तप ||