दैनिक इंडिया न्यूज़ लखनऊ।जे पी सिंह सदस्य,उत्तर प्रदेश माध्यमिक संस्कृत शिक्षा परिषद ने गणेश उत्सव के शुभावसर पर अपने निवास पर गणपति बप्पा का स्वागत अभिनन्दन वंदन नमन करते हुए समस्त प्रदेशवासियों को शुभकामना प्रेषित करते हुए अपने संदेश में कहा- भगवान श्री गणेश को देवताओं में सबसे बुद्धिमान माना जाता है इसके साथ ही वह सिद्धि के स्वामी जी हैं जिन की कृपा से हर परिवार में सुख और समृद्धि आती है और लोगों की बुद्धि का विकास भी होता है।
भगवान श्रीगणेश को विघ्नहर्ता कह कर भी बुलाया जाता है क्योंकि उनकी कृपा से परिवार पर आने वाले सारे विघ्न और संकट दूर हो जाते हैं। बिन गणेश जी के किसी भी घर में लक्ष्मी का प्रवेश नहीं होता लक्ष्मी और गणेश दोनों साथ साथ घर में प्रवेश करते हैं और परिवार को सुख तथा समृद्धि प्रदान करते हैं।
गणेश चतुर्थी मनाने का इतिहास मराठा साम्राज्य के सम्राट छत्रपति शिवाजी से जुड़ा हुआ है। ऐसा माना जाता है कि जब शिवाजी महाराज अपनी बाल्यावस्था में थे तो उनकी माता जीजाबाई ने उनके साथ मिलकर गणेश चतुर्थी मनाने की शुरुआत की थी।
जिस समय भारत पर मुगल अपना वर्चस्व जमाने में लगे हुए थे उस समय सनातन संस्कृति को बचाने के लिए छत्रपति शिवाजी ने गणेश चतुर्थी के दौरान मनाए जाने वाले गणेश महोत्सव की शुरुआत कर दी थी। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भारत में हिंदुओं के सभी सार्वजनिक पर्वों पर रोक लगा दी गई थी जिस दौरान बाल गंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के महोत्सव को पुनर्जीवित किया।
जिस दौरान लोग अंग्रेजी हुकूमत के डर के कारण बाहर की अपेक्षा अपने घरों में पूजा पाठ करते थे उस दौरान बाल गंगाधर तिलक ने पुणे में गणेश चतुर्थी को सार्वजनिक रूप से मना कर एक नया आंदोलन शुरू कर दिया जिसके कारण अंग्रेजी अधिकारियों के पैरों तले जमीन खिसक गई। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गणेश उत्सव ने एक अहम भूमिका निभाई जिस दौरान भारत के महान बीर सपूतों/स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जैसे कि बाल गंगाधर तिलक, बीर सावरकर, पंडित मदन मोहन मालवीय और सरोजिनी नायडू को गरमजोशी के साथ आंदोलन करने का सार्वजनिक मंच मिला। जब बाल गंगाधर तिलक ने पुणे में सार्वजनिक रूप से गणेश महोत्सव मनाने की शुरुआत की तो ब्रिटिश हुकूमत भी आंदोलन की आशंका से भयभीत हो गई और इन क्रांतिकारियों का दमन करने का प्रयास करने लगी। लेकिन मुगल और ब्रिटिश हुकूमत ने भले ही भारत को आर्थिक रूप से लूटा हो लेकिन भारत की सांस्कृतिक विरासत का बाल भी बांका नहीं कर सके और आज भी उसी उत्साह और जुनून के साथ प्रतिवर्ष गणेश चतुर्थी का महोत्सव महाराष्ट्र समेत भारत के अन्य राज्यों में धूमधाम से मनाया जाता है।