₹200 करोड़ के बेनामी ‘जमीन कांड’ में 50 अफसरों का पर्दाफाश!

  • जब जनता त्रस्त थी, तब सरकारी बाबू बना रहे थे ‘कुबेर महल’

दैनिक इंडिया न्यूज़, ​लखनऊ। राज्य वसूली एवं सेवा कर (GST) विभाग के लगभग 50 अधिकारियों पर ₹200 करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्ति (मुख्यतः जमीन) जमा करने का गंभीर आरोप सामने आया है। यह घोटाला उस ‘कर वसूलने वाले’ तंत्र के केंद्र में हुआ है, जिस पर देश की अर्थव्यवस्था का भार है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि अधिकांश संपत्ति कोरोना महामारी के कठिन दौर (2020-2023) में अर्जित की गई, जब देश की जनता स्वास्थ्य और आर्थिक संकट से जूझ रही थी। जाँच एजेंसियों के मुताबिक, इन अफसरों के लिए यह आपदा का समय नहीं, बल्कि अकूत संपत्ति बनाने का ‘कुबेर काल’ साबित हुआ।


​आयकर विभाग (Income Tax) की बेनामी संपत्ति इकाई इस मामले की तह तक जा रही है, और यह खुलासा हुआ है कि अधिकारियों ने लखनऊ के मोहनलालगंज, गोसाईंगंज और बख्शी का तालाब जैसे उपनगरीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जमीनें खरीदीं। सवाल यह उठता है कि एक सरकारी अधिकारी, जिसकी आय सीमित होती है, वह ₹200 करोड़ की संपत्ति कैसे खरीद सकता है? जाँच से पता चला है कि बिल्डरों के साथ साठगाँठ करके काली कमाई को ‘सफेद’ करने का एक संगठित रैकेट चल रहा था। इन बिल्डरों ने न केवल अफसरों को कम दाम पर जमीन उपलब्ध कराई, बल्कि रजिस्ट्री में भी फर्जीवाड़ा किया ताकि बाजार मूल्य से कम दिखाकर स्टांप शुल्क और अन्य करों की चोरी की जा सके। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि भ्रष्टाचार केवल ‘वसूली’ तक सीमित नहीं था, बल्कि यह अवैध धन को कानूनी जामा पहनाने के पूरे सिंडिकेट के रूप में काम कर रहा था।


​इस बड़े घोटाले के सामने आने के बाद, सरकार और प्रशासन की उदासीनता तथा संस्थागत विफलता पर गंभीर सवाल उठते हैं। इतनी बड़ी संख्या में अधिकारियों का वर्षों तक एक ही जगह पर टिके रहना और अवैध गतिविधियों को अंजाम देना, विभागीय सतर्कता (Vigilance) और वरिष्ठ प्रबंधन की निगरानी की पूर्ण विफलता को दर्शाता है। अगर किसी विभाग के 50 अधिकारी—जो कर चोरी रोकने के लिए जिम्मेदार हैं—स्वयं ही सबसे बड़े आर्थिक अपराधी बन जाते हैं, तो यह सरकारी तंत्र में नैतिकता के गंभीर ह्रास को दर्शाता है। यह स्थिति उन ईमानदार अधिकारियों के मनोबल को तोड़ती है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं। सरकार की ओर से तत्काल और कठोर कार्रवाई की आवश्यकता है, न कि केवल लीपापोती की।


​सरकार की कार्रवाई: विलंब और अपर्याप्तता का विश्लेषण:


​शुरुआती खबरें सामने आने के बावजूद, सरकार की ओर से इस मामले में अब तक हुई कार्रवाई विलंबित और अपर्याप्त दिखती है। अब तक की रिपोर्टों में केवल कुछ अधिकारियों को जाँच के दायरे में लिए जाने या उनके नाम सूचीबद्ध होने का उल्लेख है। ₹200 करोड़ के इस बेनामी सौदे को देखते हुए, अपेक्षा यह है कि केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर प्रवर्तन निदेशालय (ED) को तुरंत सक्रिय करना चाहिए ताकि धन शोधन (Money Laundering) के कोण की जाँच हो सके और बेनामी संपत्तियों को जब्त करने की प्रक्रिया शुरू की जा सके। केवल निलंबन या छोटे-मोटे ट्रांसफर इस संगठित भ्रष्टाचार को नहीं रोक सकते। जब तक इस पूरे नेक्सस को जड़ से खत्म नहीं किया जाता और दोषियों की संपत्ति जब्त नहीं होती, तब तक जनता में यह संदेश जाएगा कि सरकारी ओहदा भ्रष्टाचार का कवच है। प्रशासन को यह साबित करना होगा कि ‘सबका साथ, सबका विकास’ केवल नारा नहीं है, बल्कि ‘भ्रष्टाचार पर शून्य सहनशीलता’ इसकी आधारशिला है।

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