27 दिसम्बर 2021, लखनऊ (श्रीरामकथा का तीसरा दिन)

सत्य दर्शन के लिए ज्ञान का प्रकाश जरुरी : साध्वी ऋतम्भरा

नहीं भुला सकते गुरुपुत्रों का बलिदान : ऋतम्भरा

राम कथा का तीसरा दिन : उपमुख्यमंत्री समेत विशिष्टजन हुए शामिल

राम जन्म की झांकी देख जयकारों से गूंजा पाण्डाल 

उदय राज
डी डी इंडिया न्यूज

लखनऊ।

सत्य को देखने के लिए निरावरण आंखें चाहिए। रामकथा के दर्पण से हम स्वयं को देख सकते हैं। इससे अन्तःकरण शुद्ध होता है। सूर्य बादलों की ओट में है तो इसका अर्थ नहीं की सूरज नहीं है। हमारे आंखों को बादलों ने ढंका है इसलिए वो नहीं दिखता। माचिस घिसेंगे तो अग्नि प्रकट हो जाएगी। तत्व एक हैं नाम अलग-अलग हैं।

स्वर्ण है किन्तु आभूषणों के नाम अलग अलग हैं। जल यदि जमा हुआ है तो सगुण पिघल गया तो निर्गुण। सत्य के दर्शन के लिए ज्ञान का प्रकाश होना चाहिए।

ये बातें सोमवार को सीतापुर रोड स्थित रेवथी लान में भारत लोक शिक्षा परिषद के तत्वावधान में चल रही राम कथा के तीसरे दिन साध्वी ऋतम्भरा ने कहीं। उन्होंने शिव पार्वती संवाद से जीवन के सूत्र निकालकर श्रद्धालुओं को सौंपे।

रामजन्मभूमि आन्दोलन के
दौरान हुए कारसेवकों के बलिदान तथा गुरुपुत्रों के साथ किये मुगलों की जघन्यता का भी स्मरण कराया। राम जन्म की कथा के साथ सजीव झांकी के रूप में जब महाराजा दशरथ अपनी चारों रानियों व पुत्रों के साथ प्रकट हुए तो पूरा पाण्डाल रामलला के जयकारों से गूंज उठा। साध्वी ने राम का वेश धरे बालक को गोद में लेकर दुलार दिया।

कथा आरम्भ होने के पूर्व मुख्य यजमान डा. नीरज बोरा ने सपत्नीक व्यास पूजा की। उप मुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा समेत अनेक विशिष्ट जनों ने भी व्यास पीठ का आशीर्वाद लेकर कथा श्रवण किया।

साध्वी कहा कि अरुचि हो तो गुड़ भी कड़वा लगता है। वासना की धूल हटाकर स्वयं को जानना समझना चाहिए। ईश्वर की कृपा से अवसर मिलता है जो बार बार दस्तक देता है। चौरासी लाख योनियों के बाद मिली मनुष्य की काया भी अवसर है। जीवन के अनुभव हमें परिष्कृत करते हैं। अभिमान की वजह से हम भले ही अपनी दुर्बलताओं को न स्वीकारें किन्तु अंतःकरण सब जानता है। आंखों की देखी हमेशा सच नहीं होती। दूसरे का आकलन दूर बैठकर नहीं किया जा सकता।

भाव की पवित्रता और विचारों की शुचिता जरूरी है। उन्होंने कहा कि बलपूर्वक सब कुछ नहीं जीता जा सकता। अपनों से हार जाना भी बड़ी जीत होती है। सद्गुणों से ही अनुराग उत्पन्न होता है।

स्वाभिमान को मत ललकारो :

साध्वी ने गत दिनों कानपुर में दिये गये उस भाषण पर तीखी प्रतिक्रिया दी जिसमें कहा गया था कि मोदी-योगी के बाद हिन्दुओं का क्या होगा। उन्होंने कहा कि हमारे स्वाभिमान को मत ललकारो। जब मोदी योगी नहीं थे तब भी भारत की धर्मध्वजा लहरा रही थी। भारत भूमि हजारों मोदी योगी पैदा करेगी। उन्होंने कहा कि बलिदान, तप और भक्ति के कारण सनातन प्रवाह अविरल है। कारसेवकों के रक्त से लाल सरयू की धारा और कोठारी वीरों का बलिदान भुलाया नहीं जा सकता। तीन सौ वर्ष पूर्व हुए गुरुपुत्रों के बलिदान की गाथा सुनाते हुए कहा कि चार पुत्रों के बलिदान पर गुरु गोविन्द सिंह ने कहा था कि चार मुए तो क्या हुआ जीवित कई हजार। पांच सिख हजारों मुगलों को काटकर शहीद हो जाते थे। वीर प्रसूता मातृभूमि है। पुरखों के बलिदान को हम भूल नहीं सकते। 

साध्वी ने कहा कि आसुरी वृत्तियां कम नहीं है वे प्रधानमंत्री के गंगा में डुबकी लगाने पर चिल्लाती हैं। वे असुर कान खोल कर सुन लें कि हम संतों ने अपनी शक्ति मोदी में समाहित कर दी है।
 
लूजर नहीं हैं हम : शिवा और राणा हैं हमारे सुपरस्टार

साध्वी ऋतम्भरा ने मातृ शक्ति का आह्वान करते हुए कहा कि वे बच्चों को शिवा, राणा जैसे नायक और सूर तुलसी जैसे गायकों का इतिहास पढ़ायें। विद्यालयों में यह नहीं सिखाया जाता। उन्होंने कहा कि हमारी तीन पीढ़ियों को गलत इतिहास पढ़ाया गया है। हम लूजर नहीं थे। जीजाबाई ने शिवा को गढ़ा और जन्मदिन पर उपहार मांगा कि सिंहगढ़ के किले पर पुनः भगवा लहराओ। स्वाभिमान की बलिवेदी पर लाखों सतियां न्यौछावर हुईं। मुगलों से दुर्दशा कराने के स्थान पर अग्नि स्नान कर लिया। उन्होंने गन्दी राजनीति पर सती शब्द को कलंकित करने का आरोप लगाते हुए कहा कि जो मर्यादित रहकर धर्म का पालन करे वह सती है।

भारत के सतीत्व के आगे त्रिदेव को भी शिशु बन जाना पड़ता है।

चाह है तो तप करना पड़ेगा :
 
साध्वी ने कहा कि चालीस वर्ष पूर्व जब उन्होंने सन्यास दीखा ली तब एक स्त्री का सन्यासी होना अचरज की बात थी। मुझे छुप कर इस भांति रहना पड़ता था जैसे कि कोई पाप किया हो। राजनीतिक विष के चलते उपजे खालिस्तान की मांग को लेकर उग्र आन्दोलन चल रहा था।

बाबा बालदेव के नेतृत्व में पंजाब में सद्भावना यात्रा निकाली जानी थी। मेरे गुरुदेव मुझे वहां नहीं ले जाना चाहते थे। मैंने कहा कि आखिर आप समेत अन्य संतगण मुझे गृहस्थों से भी गया गुजरा समझते हैं। मेरे अनुरोध पर गुरुदेव ने यही कहा था कि देश धर्म के लिए काम करोगी तो सन्तों का प्रेम मिलेगा। बाद में जन्मभूमि आन्दोलन के समय राजस्थान के सिरोही में हुए धर्माचार्यों के विशाल आयोजन में मुझे यह कहकर मंच पर बैठाया गया कि तुम हम सन्तों की शक्ति हो। उन्होंने कहा कि चाह है तो तप करना पड़ेगा। अपने को योग्य बनाना होगा। हम सबको भारत को वैभवशाली बनाने और उसे उत्कर्ष तक ले जाने के लिए निरन्तर काम करना है।

कथा में अनेक जनप्रतिनिधि व गणमान्य विभूतियां सम्मिलित हुईं। प्रमुख रूप से नन्दकिशोर अग्रवाल, भाजपा नगर अध्यक्ष मुकेश शर्मा, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, सुमेर अग्रवाल, सुरेश कुमार अग्रवाल, राकेश गुप्ता, प्रदीप अग्रवाल, रवीश कुमार अग्रवाल, गिरिजाशंकर अग्रवाल, उमाशंकर हलवासिया, आशीष अग्रवाल, भूपेन्द्र कुमार अग्रवाल ‘भीम’, राजीव अग्रवाल, पंकज बोरा, भारत भूषण गुप्ता, मनोज अग्रवाल, डा. एस.के. गोपाल आदि उपस्थित रहे।।।

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