दाम्पत्य-जीवन को सफल बनाने वाले कुछ स्वर्ण-सूत्र

किसी प्रकार यदि बेचारी को थोड़ा-सा आराम का अवसर मिल भी जाता है तो फिर उनकी ऐसी गप्प और हा-हा-ही-ही चलती हैं कि उसके आराम का सारा समय पलक उठने, गिरने, जम्हाने और अलसाने में ही निकल जाता है और वह फिर थकी-थकी उठ कर दूसरे समय के काम में लग जाती है। यदि सौभाग्य ही कहिये, उनकी पत्नी कलाकार अर्थात् संगीत या वाद्य की जानकार हुई तब तो गारंटी के साथ उसके दिन का ही नहीं रात का भी आराम का समय बहुत-सा बेकार चला जाता है। खा-पीकर आराम से पड़कर पति देवता को संगीत लहरी की इच्छा होती है और वह पत्नी को महफिल लगाने के लिये मजबूर कर देते हैं।

जब संगीतज्ञ पत्नी से विवाह किया है तो फिर उसका लाभ क्यों न उठाया जाये? काम के बाद ही तो वह समय मिलता है, जिसमें उनकी कला का रस लिया जा सकता है। अनेक महानुभाव तो आप आराम से पड़ कर यदि उससे पैर नहीं दबवाते तो आधी-आधी रात तक उपन्यास सुना करते हैं। उनका तो कार्य दस बजे दिन से आरम्भ होता है, पत्नी का यदि चार पाँच बजे से आरम्भ होता है तो इससे क्या। वह तो अपनी जानते हैं पत्नी अपना मरे भुगते।

कपड़े जब घर में ही धुल जाते हैं तो क्या आवश्यक कपड़े इस परवाह से ना पहने जायें कि कम से कम चार पाँच दिन तक साफ रह सकें? हर दूसरे, तीसरे दिन कपड़ों का एक ढेर उसके लिये तैयार रहता है। बच्चों के कपड़ों के साथ वह दोपहर को पति देवता के कपड़े धोती, सुखाती और लोहा करती है। इस प्रकार बहुधा पत्नियों से इतना काम लिया जाता है कि जरा आराम करने का अवसर नहीं मिलता, जिसका फल यह होता है कि उसका स्वास्थ्य खराब हो जाता है, उसका स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है और वह बात-बात पर झल्लाने, रोने लगती है। गृह-कलह आरम्भ हो जाता है।

वे बुद्धिमान गृहस्थ जिन्हें पारस्परिक प्रेम सद्भावना और सुख-शाँति वाँछित है, पत्नी से उतना ही काम लें जितना उचित और आवश्यक है। जो उनके अपने काम हों वे सब स्वयं ही करें। पारिवारिक जीवन में आलस्यपूर्ण नवाबी चलाना ठीक नहीं। पत्नी के पास घर गृहस्थी और बच्चों का पहले से ही इतना काम होता है कि उसे समय नहीं रहता। इस पर अपना काम सौंप कर काम की इतनी अति न कर दीजिये कि उसका शरीर टूट जाये। पत्नी जितनी अधिक स्वस्थ और प्रसन्न रहेगी उतनी ही मधुर और सरस होती चली जायेगी।अखंड ज्योति

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